16 दिसंबर 2020

सहायता करने की सच्ची मानसिकता का प्रेरणादायी उदाहरण

सुबह लगभग दस बजे का समय है. बाजार में हलचल अभी शुरू होती जा रही है. दुकानें भी आराम-आराम से खुलती दिख रही हैं. ऐसी ही सामान्य सी सुस्त सुबह में सड़क के किनारे एक महिला बेहोशी की हालत में सड़क किनारे गिरी हुई है. वह अकेली नहीं है बल्कि उसके आसपास कई लोगों की भीड़ भी है. भीड़ भले ही ऐसी न हो जिसे बहुत बड़ी भीड़ कहा जाये मगर इतनी अवश्य है जो सड़क किनारे अचेतावस्था में गिरे किसी भी व्यक्ति की मदद कर सकती है. उस सुबह की भीड़ भी इतनी थी जो उस महिला की सहायता कर सकती थी. इसके बाद भी भीड़ बस तमाशा बने उस महिला को देखे जा रही थी. रुकने वाले रुक जाते थे और रुक कर एक नजारा देख चलने वाले फिर अपने रास्ते चल देते थे. उस रुकी भीड़ में कुछ युवा भी थे, कुछ पुरुष भी, कुछ लड़के भी मगर जिस तरह से स्त्री, पुरुष विभेद विगत कुछ वर्षों में समाज में बना दिया गया है, उससे शायद उनकी भी हिम्मत न पड़ रही थी उस महिला की सहायता करने की. इसके अलावा पुलिस, कानून के तमाम चकल्लस देखते हुए भी बहुत से लोग उस सड़क किनारे बेहोश पड़ी महिला से दूरी बनाये रखे होंगे.


उसी समय एक महिला का सड़क के दूसरी तरफ से निकलना हुआ. दूसरी तरफ से इसलिए क्योंकि उस सड़क पर आवागमन के लिए बने डिवाईडर न केवल सड़क को अलग-अलग भागों में बाँट रहे थे बल्कि सड़क पर चलने वालों को भी दो हिस्सों में अलग-अलग किये हुए थे. समाज में सभी एक प्रवृत्ति के नहीं होते, ठीक वैसे ही जैसे कि हमारे शरीर से जुड़ी सभी उँगलियाँ एक जैसी नहीं होतीं. इस एक जैसी प्रवृत्ति न होने के कारण अपनी स्कूटी से सड़क के दूसरी तरफ से चली जाने वाली उस महिला ने सड़क के दूसरी तरफ, डिवाइडर के उस पार कुछ असामान्य सा देखा-समझा. उस महिला ने स्कूटी को वापस सड़क किनारे गिरी अचेत महिला के पास लाकर रोका और फिर जैसा कि किसी भी जागरूक, संवेदित व्यक्ति को करना था, उसने अपना काम शुरू किया.


स्कूटी से उतर कर उस महिला ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाल कर अचेत महिला को होश में लाने का उपक्रम शुरू किया. सजग महिला की हिम्मत, उसकी सक्रियता देख आसपास खड़े कुछ युवकों ने भी अपना सहयोग देना शुरू किया. इतनी देर के बाद जब भीड़ का हिस्सा न बन, एक सक्रिय महिला ने अपनी सजगता दिखाई तो उस अचेत महिला की बंद हथेलियों में से एक में कोई फोटो सी दिखाई दी और दूसरी में एक मोबाइल नंबर लिखा नजर आया. या भी सबकुछ भीड़ को नहीं बल्कि उस स्कूटी वाली महिला को नजर आया. उन्होंने अपने मोबाइल से तत्काल उस नंबर पर बात की. वो नंबर उस अचेत महिला के किसी रिश्तेदार का नहीं था. अब भी स्थिति ज्यों की त्यों थी कि वो महिला कौन है? वह सड़क पर अचेत क्यों पड़ी हुई है? उसके हाथ में लिखा नंबर किसका है? उसकी दूसरी हथेली में दबी फोटो किसकी है? वह यहाँ अचेतावस्था में कैसे पहुँची?


इस बीच उस जागरूक महिला के कहने पर किसी व्यक्ति ने एम्बुलेंस को फोन करके बुलाया. तब तक महिला भी कुछ होश में आती नजर आई. एम्बुलेंस आकर उस महिला को जिला चिकित्सालय ले गई. सक्रिय, जागरूक महिला अपने कार्यक्षेत्र को चल दी, भीड़ अपने-अपने विचार-तर्क गढ़ते हुए अपने-अपने रास्ते चल दी. बात यही समाप्त नहीं हुई, जो सजग रहता है, वह सदैव सजग रहता है. अचेत महिला की सहायता को रुकी उस महिला ने लगातार अपने फोन से चिकित्सालय प्रशसान से, पुलिस प्रशासन से संपर्क बनाये रखा. अंततः जब सुखद खबर ये मिली कि वह अचेत महिला, जो किसी संदेहास्पद वस्तु के खा लेने से अचेत हो गई थी, अब स्वस्थ है, खतरे से बाहर है.


यह पूरी घटना जनपद जालौन के उरई शहर की है. इस घटना को यहाँ सामने लाने का उद्देश्य महज इतना है कि उरई जैसे छोटे से शहर में भी जहाँ कि परिचय का दायरा आसानी से बड़ा किया जा सकता है, वहाँ भी सड़क किनारे अचेत पड़ी एक महिला सहायता को तरसती है. उसके चारों तरफ जमा भीड़ सिर्फ तमाशबीन बनी रहती है. इसके पीछे भले ही कानूनी लफड़े की बात हो या स्त्री, पुरुष विभेद की बात मगर स्थिति सुखद नहीं कही जाएगी.


अब आपको मिलवा दें उस महिला से जो अचानक से उस रास्ते से गुजरीं और बिना किसी लफड़े, समस्या की परवाह करते हुए उस अचेत महिला की सहायता में जुट गईं. वे डॉ० विश्वप्रभा त्रिपाठी हैं जो वर्तमान में गांधी महाविद्यालय, उरई में मनोविज्ञान विभाग में कार्यरत हैं साथ ही संगीत, समाजसेवा के क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति बनाये हुए हैं. वे जनपद के ही नहीं बल्कि प्रदेश के अत्यंत प्रतिष्ठित परिवार से सम्बद्ध हैं. सामाजिक सक्रियता बनाये रखना, लोगों की मदद करना उनके खून में है, उनके स्वभाव में है. इसी के चलते उन्होंने बिना किसी तरह की देरी किये, बिना अच्छा-बुरा सोचे उस अचेत महिला की सहायता की.




इस घटना को सामने लाने का उद्देश्य यही है कि हममें से बहुत से लोग कानूनी दांव-पेंच, पुलिस प्रशासन के रवैये से डर कर, घबरा कर बहुत बार सहायता देने से बचते हैं. ऐसा होना नहीं चाहिए. यदि हम अपने आपमें सशक्त हैं, ईमानदार हैं और निस्वार्थ भाव से किसी की सहायता कर रहे हैं तो किसी तरह की समस्या नहीं आती है. हम सभी को डॉ० विश्वप्रभा त्रिपाठी जी के इस कदम से सीखने की आवश्यकता है, प्रेरणा लेने की आवश्यकता है. इसी तरह से एक-एक करके समाज की नींव बनती है, समाज की आधारशिला मजबूत होती है, समाज की इमारत भव्य बनती है.



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वंदेमातरम्

1 टिप्पणी:

  1. वाकई समाज की नींव लोकतंत्र की आधारशिला एक एक नागरिक से मिलकर ही सार्थक व मजबूत बनती है हम सभी को आदरणीय विश्वप्रभा जी से प्रेरणा लेनी चाहिए

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