जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो बिना याद किये याद आती रहती हैं, चाहते हुए भी भूली नहीं जाती हैं. ऐसी स्थिति के लिए घटनाओं के साथ-साथ उनसे जुड़ी तारीख भी महत्त्वपूर्ण होती है. घटनाओं को भुलाना भी चाहो तो उससे जुड़ी तारीख उस घटना को भूलने नहीं देती है. ऐसी ही तारीख है किसी भी वर्ष की अंतिम तिथि अर्थात 31 दिसम्बर. यही तारीख थी उस शाम को जबकि हम अपने दोस्तों के साथ बाजार घूमा-फिरी का इंतजाम करने में लगे थे और उसी समय मोबाइल पर मिले समाचार न चौंका दिया. साले साहब की काँपती, रोती आवाज़ ने ससुर साहब के न रहने की बुरी खबर सुनाई. एकदम से समझ ही नहीं आया कि ये हो कैसे गया? अभी दो-तीन घंटे पहले ही कार्यक्रम बना था अगले दिन का और अचानक से ये खबर.
यही
वे पल होते हैं जबकि समझ आता है कि सबकुछ समय के हाथों में होता है और इंसान अकारण
सबकुछ अपने हाथों में नियंत्रित किये रहने के झूठे ख्याल में बना रहता है. आये दिन
ये कर देने, वो कर देने, ऐसा कर लिया, वैसा कर लिया, यह योजना बना ली, वह योजना
बना ली जैसी स्थितियों से सभी दो-चार होते रहते हैं. ऐसी घटनाओं के बाद समझ आना
चाहिए कि यहाँ ज़िन्दगी का एक पल का भरोसा नहीं और इंसान है कि ज़िन्दगी भर का
इंतजाम करने में लगा रहता है.
बहरहाल, साल के जाने वाले पल में न चाहते हुए भी वे पल, उस शाम के वे पल याद आ ही जाते हैं. उन्हीं यादों के साथ आगे बढ़ने की प्रवृत्ति भी विकसित होती है. ऐसा करना चाहिए क्योंकि यदि किसी पल में दुःख है तो उसी पल में ख़ुशी भी होती है. दुःख का एहसास करते हुए सुख का स्वागत करना चाहिए और जीवन-यात्रा को सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिए. दुःख हमें ज़िन्दगी का फलसफा सिखाते हैं और सुख जीवन में उन्हीं दुखों पर मरहम लगाने का काम करते हैं.
आज इस वर्ष 2020 के अंतिम दिन पर ससुर साहब को श्रद्धांजलि सहित कामना यही कि आने वाला साल सभी के लिए सुखद हो.
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