22 नवंबर 2020

बचपन के साथी से दिल की बातें कहने का मन है

बचपन के उन दिनों में समझ न थी कि डायरी लेखन क्या होता है? डायरी लिखने के नाम पर क्या लिखा जाता है? शैतानी, मस्ती, मासूमियत भरे उन दिनों में बाबा जी ने हम भाइयों को एक दिन डायरी देते हुए डायरी लेखन को प्रोत्साहित किया. पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या लिखना होगा इसमें. बाबा जी हम लोगों को खेल-खेल में बहुत सी जानकारियाँ देते रहते थे. घर के अलावा सुबह की सैर के समय भी बहुत सी व्यावहारिक जानकारियाँ, पढ़ाई से सम्बंधित जानकारियाँ बाबा जी हम तीनों भाइयों को देते थे. उस दिन डायरी हाथ में लिए खड़े थे और एक-दूसरे का मुँह देख रहे थे. ग्यारह-बारह वर्ष की हमारी अवस्था में डायरी लेखन जैसा नया सा शब्द सामने आ गया. पहले तो लगा कि कोई पढ़ाई जैसा काम होगा मगर जब बाबा जी द्वारा डायरी लेखन के बारे में, उसमें क्या लिखना है, कैसे लिखना है आदि समझाया गया तो बिना एक पेज, एक शब्द लिखे डायरी लेखन कलात्मक समझ आया.


नई-नई डायरी मिली थी, नया-नया काम मिला था सो पहले दिन ही रात को सोने के पहले कुछ लिखा गया. अब तो ठीक-ठीक याद भी नहीं कि उस रात लिखा क्या था डायरी में मगर दूसरी सुबह बाबा जी को दिखाकर यह पुष्टि करनी चाही थी कि जो लिखा है वो सही है या नहीं. बाबा जी की तरफ से शाबासी मिली तो डायरी लिखने की तरफ रुझान बढ़ा. समय गुजरता रहा, लेखन का शौक था ही तो डायरी लेखन भी साथ-साथ चलता रहा. आरम्भिक वर्षों में नियमितता नहीं बन सकी थी, लेखन भी उसी बालसुलभ मानसिकता से भरा हुआ था. क्या खेला, स्कूल में क्या किया, किसके साथ शरारत की, स्कूल से घर वापसी में क्या-क्या शैतानियाँ सड़क पर की गईं, किसके साथ मारपीट हुई, किसके साथ लड़ाई की आदि-आदि घटनाएँ डायरी में सजती रहीं.




स्कूल से निकल कर हम कॉलेज आ गए और डायरी लेखन का शौक भी कुछ परिपक्वता प्राप्त करने लगा था. उन्हीं दिनों हॉस्टल में किसी दिन डायरी गायब कर दी गई. नितांत व्यक्तिगत विधा होने के बाद भी डायरी पढ़ी गई, बवाल मचा और अंततः डायरी को फाड़ कर फेंक देना पड़ा. उस एक घटना ने बहुत आहत किया और कई वर्षों तक डायरी का लिखा जाना नहीं हो सका. डायरी भले न लिखी जा रही थी मगर मनोभावों को किसी न किसी रूप में लिखते रहते. कभी कविताओं के रूप में लिखते तो कभी लेख के रूप में. कभी-कभी मन करता तो किसी कागज़ पर लिख कर उसे पढ़ते और फिर फाड़कर  रद्दी में बदल देते. कुछ वर्षों बाद फिर डायरी लेखन शुरू किया मगर कुछ समय बाद उस लेखन को भी फट जाना पड़ा. मन के भाव मन में ही कैद रहने लगे.


समय के साथ तकनीक ने अपनी करवट बदली, उसके साथ-साथ बहुत कुछ बदल गया. इसी बदलाव में ब्लॉग सामने आया. मानो मन के विचारों को पंख मिल गए हों. अब खूब लिखा जाने लगा. इसके बाद भी कागज-कलम की संगत से मोह न छूटा. डायरी के रूप में न सही बल्कि अन्य रूपों में मनोभावों का लिखना होता रहा. अब फिर मन कर रहा है डायरी लिखने का. कागज़-कलम के साथ अपनी दोस्ती को और आगे ले जाने का साथ ही तकनीकी मित्र ब्लॉग को भी साथ में लेकर सफ़र करने का. डायरी लेखन से या कहें कि मन के भावों को प्रकट कर देने से बहुत शांति मिलती है. दिमागी उथलपुथल को भी बहुत आराम मिलता है. देखा जाये तो खुद में भी एक तरह की शक्ति का आभास होता है. ऐसा शायद इसलिए होता होगा क्योंकि डायरी लेखन ईमानदारी माँगती है और कोई व्यक्ति अपनी पूरी ईमानदारी से अपना सत्य लिख रहा है तो वह अपने को ही मजबूत कर रहा है.


लिखना तो बराबर होता रहा है, इसलिए लेखन का संकोच कतई नहीं है. विचारों की लहरें फिर उछाल मार रही हैं डायरी लेखन के लिए. अपने बचपन के साथी के साथ फिर से यात्रा करने की इच्छा है. उसके साथ फिर अपने दिल की, अपने मन की बातें कहने का, बाँटने का मन है.


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