ज़िन्दगी बहुत कुछ दिखाती है, बहुत कुछ सिखाती है. हमारा अपना ये मानना है कि हमें अपनी ज़िन्दगी के साथ-साथ बाकी लोगों की ज़िन्दगी से भी कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत कुछ ऐसा होता है जो हमारी ज़िन्दगी में गुजरता ही नहीं और उसे हम दूसरों की ज़िन्दगी से ही सीख सकते हैं. सीखने का यह क्रम इतना विशाल होता है जो लगता है कि एक ज़िन्दगी में समाप्त ही नहीं होगा, यदि कोई व्यक्ति वाकई कुछ सीखना चाहता है. सीखना एक प्रक्रिया है जो सतत चलती है उसी तरह ज़िन्दगी भी एक प्रक्रिया है जो सतत चलती है. अब समझने की बात ये है कि सीखने के साथ-साथ ज़िन्दगी को समझना है या ज़िन्दगी के साथ-साथ सीखना है.
लोगों को इसी जगह आकर संशय होता है. वे समझ नहीं पाते हैं कि ज़िन्दगी और सीखने में क्या साम्य है और क्या अंतर है. लोगों का तो पता नहीं पर हमने हर पल ज़िन्दगी से कुछ न कुछ सीखा है और यही कारण है कि ज़िन्दगी के अपने हर पल को मौज में बिताने की कोशिश की है. बीते पल को खींच कर वर्तमान पर थोपने की कोशिश नहीं की और भविष्य की चिंता में वर्तमान को ख़राब नहीं किया. बहुत से लोगों के लिए यह आलोचना का विषय हो सकता है कि कैसे एक व्यक्ति अपने भविष्य की चिंता न करता होगा. सही है, भविष्य के बारे में सभी लोग सोचते हैं, हम भी विचार करते हैं मगर इसके लिए अपना वर्तमान ख़राब नहीं करते हैं. लोग भविष्य के बारे में क्या विचार करते हैं, कभी इस पर उन्हीं लोगों ने विचार किया? बच्चों का जीवन, उनकी पढ़ाई, उनका कैरियर, उनके लिए संपत्ति, अपने लिए बुढ़ापे का इंतजाम, अपनी वृद्धावस्था के लिए आर्थिक सशक्तता आदि-आदि लोगों के वर्तमान का अंग होता है.
समझना चाहिए इस बात को कि आखिर जिस ज़िन्दगी में ठीक अगले पल का भरोसा नहीं वहाँ हम इंसान कई-कई साल का प्रबंध करने में जुट जाते हैं. इस चक्कर में बहुत से लोग अपना वर्तमान ख़राब कर लेते हैं. एक पल को रुक कर सोचिये कि क्या ये सही है? क्या आने वाले अनिश्चित कल के लिए निश्चितता से भरे आज को ख़राब करना उचित है? आज को पूरी शक्ति, पूरे आनंद के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए. इसका मतलब ये नहीं कि हम आने वाले कल के लिए लापरवाह हो जाएँ मगर हमें ध्यान ये रखना है कि आने वाले कल के लिए हम आज का समय बर्बाद न करें. यही ज़िन्दगी की सत्यता है कि जो आज है वही हमारा अपना है, शेष तो सपना है, वो चाहे बीता हुआ कल हो या आने वाला कल.
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