दिल, दिमाग, देह आदि पर विज्ञान ने खूब काम किया है मगर अभी तक ऐसी कोई सफलता इस क्षेत्र में दिखाई नहीं देती जबकि व्यक्ति को यादों से मुक्त किया जा सके। मन को नियंत्रित करने के लिए योग, ध्यान आदि की सलाह दी जाती है और देखने में आया है कि इनसे भले ही मन का भटकना कम हो जाए पर यादों से छुटकारा नहीं मिल पाता। ऐसा लगता है जैसे यादें भी साँस लेने की तरह से अनिवार्य स्थिति है जो व्यक्ति के जीवन के साथ ही समाप्त होती है।
जब यही अटल सत्य है तो फिर यादों के साथ परेशानी कैसी? साँसों के आने-जाने को कोई भी समस्या नहीं मानता, इससे परेशानी का अनुभव नहीं करता। ऐसे ही विचार यादों के सम्बन्ध में रखने चाहिए। जो यादें मन को प्रसन्न करें उनको अपने साथ रख लेना चाहिए और जिन यादों से कष्ट हो उनको उसी मोड़ पर छोड़ कर आगे बढ़ जाना चाहिए। आखिर जीवन आगे बढ़ने का ही नाम है।
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