दीपावली के आते ही प्रदूषण ज्यादा दिखाई देने लगता है. विगत कई वर्षों से ऐसा देखने में आ रहा है कि जैसे ही किसी हिन्दू पर्व का आना होता है वैसे ही ज्ञान देने वालों की संख्या में वृद्धि होने लगती है. दीपावली पर पटाखे न चलाने की सलाह, होली पर रंग न खेलने की सलाह. एक पर्व के कारण प्रदूषण का फैलना और दूसरे के कारण पानी की बर्बादी को मुख्य कारण बताया जाता है. आज जब भी ऐसी बातों को देखते हैं तो याद आता है वर्षों पुराना समय, स्मृति में कौंध जाते हैं अपने बचपन के दिन. उस समय तो आज से ज्यादा पटाखे चलते थे, हम सब आज से ज्यादा पटाखे चलाते थे मगर कभी धुएँ का, प्रदूषण का रोना नहीं रोया गया. ऐसे में आज समझना होगा कि इस धुएँ की वास्तविक समस्या क्या है.
इस पर चर्चा बाद में, पहले अपनी दीपावली की चर्चा जो पुराने दिनों में हम सभी ने बड़ी मस्ती से मनाई है, की कुछ बातें. सभी चाचा लोग सपरिवार उरई नियमित रूप से आया करते थे. पटाखों की संख्या तो निश्चित थी ही नहीं. सबकी उम्र के अनुसार खूब सारे पटाखे दिन में धूप में सुखाये जाते या कहें कि उनकी नमी को दूर किया जाता. इक्का-दुक्का पटाखे तो हम बच्चे लोग बस ये जाँचने के नाम पर ही चला मारते कि पटाखे सही से सूखे हैं या नहीं. किसी तरह इंतजार करते-करते शाम आती. शाम को पूजन के बाद सबसे ज्यादा जल्दी छत पर जाकर दिए, मोमबत्तियाँ लगाने की, पटाखे चलाने की रहती.
पटाखे चलाते समय सावधानी पूरी तरह से रखी जाती इसके बाद भी ऐसी कोई न कोई घटना हो जाती जो लम्बे समय तक हँसी पैदा करती. लम्बे समय तक क्या, कुछ घटनाएँ तो ऐसी हैं कि आज तक उनकी चर्चा करके ठहाके लगाये जाते हैं. कभी अनार का रुक-रुक कर चलना, कभी चखरी का उछल-उछल कर घूमना, कभी राकेट का बजाय ऊपर जाने के छत के ही चक्कर लगा लेना आदि ऐसी घटनाएँ हैं जो हर दीपावली पटाखे चलाते समय अपने आप याद आ जाती हैं.
अब शासन के निर्देशों पर ही पटाखे चलाने का समय निर्धारित हो गया है. आवाज़ का, रौशनी का, पटाखों का मानक तक निर्धारित कर दिया गया है. अबकी समाचार आ रहे हैं कि बहुत सी जगहों पर पटाखों को बैन कर दिया गया है. पर्यावरण की चिंता करती सरकारों ने कभी अपने आसपास देखा है कि पटाखों के अलावा और कहाँ से प्रदूषण फ़ैल रहा है? तमाम कारखाने, तमाम कारें, टैक्सी आदि इतनी बुरी तरह से धुआँ फैलाते हैं कि उनके आगे पटाखों का धुआँ कहीं नहीं ठहरता. इसके बाद भी सबके निशाने पर दीपावली ही है. सड़क पर चलती कारों, घरों, कार्यालयों में चौबीस घंटे चलते एसी के कारण होने वाले प्रदूषण की, पर्यावरण नुकसान की चिंता किसी सरकार को नहीं है. इस तरह की मानसिकता से एक सवाल दिमाग में हर बार कौंधता है कि कहीं त्योहारों के समय का ये नाटक हिन्दू त्योहारों-पर्वों को सीमित करने की, समाप्त करने की कोई साजिश तो नहीं?
हमने भी बचपन में खूब पटाखे चलाए.
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