26 नवंबर 2020

यादें न जाने कहाँ से कहाँ ले जाती हैं

अपने इस ब्लॉग पर जब लिखना शुरू किया था तो समझ ही नहीं आता था कि इस पर सभी विषयों में लिखना है या फिर किसी विषय विशेष पर ही यहाँ लिखें? समय के साथ ब्लॉग लेखन होता रहा, यहाँ कई-कई विषयों पर लिखना होता रहा. ऐसे विषयों में सामाजिक और राजनैतिक विषय ज्यादा रहे. राजनीति एक ऐसा विषय है जिस पर देश का प्रत्येक व्यक्ति बोलने की दम रखता है. घर के कमरे से लेकर सड़क पर पान की दुकान तक लोग प्रधानमंत्री को, मुख्यमंत्री को सलाह देते दिख जायेंगे. ऐसे-ऐसे लोग राजनीति के हथकंडों से विदेशी मामलों को सुलझाते मिल जायेंगे, जिनसे अपने घर के मसले नहीं सुलझते. बहरहाल, कई-कई बार ऐसे विषयों पर लिखने से समस्या हुई, लोगों से बहस भी हुई तो लगा कि अपने इस ब्लॉग को विवादों से दूर रखना है. इसी में विचार किया कि विषयवार अलग-अलग ब्लॉग बना लिए जायेंगे और अपने इस ब्लॉग पर सिर्फ अपने बारे में ही लिखा जायेगा.


इसी सोच के साथ बहुत समय से यहाँ विवादित विषयों पर किसी तरह की कलम नहीं चलाई है. कोशिश रहती है कि अपने बारे में, अपने बचपन के बारे में, अपने रिश्तों के बारे में, अपने संबंधों के बारे में, अपने दोस्तों के बारे में, अपने अनुभवों के बारे में यहाँ लिखा जाये. ऐसा किया भी जा रहा है मगर एक बहुत बड़ी समस्या सामने आ जाती है. जब भी यहाँ लिखने की शुरुआत की जाती है तो टाइप करना भूल जाते हैं और बस अपने अतीत में विचरण करने लग जाते हैं. किसी एक घटना को लेकर लिखना शुरू करते हैं और फिर उसके साथ सूत्र से सूत्र जुड़ते चले जाते हैं. एक घटना से दूसरी घटना, एक बात से दूसरी बात निकलते-निकलते मूल बात से, असल घटना से बहुत दूर ले जाती है. खट्टी-मीठी यादों में घूमते-टहलते जब वापस वर्तमान में आते हैं तो यही भूल जाते हैं कि लिखने क्या बैठे थे.


आज भी कुछ ऐसा हुआ. बचपन की किसी घटना पर लिखना चाहते थे, शुरू भी किया मगर फिर वही कहानी. कुछ फोटो, कुछ यादों के सहारे न जाने कहाँ तक चले गए. वापस आना हुआ तो उन्हीं यादों की इतनी खुमारी थी कि सबकुछ भुला बैठे. अब फिर याद करेंगे, सोचेंगे कि क्या लिखने बैठे थे. याद आ गया तो आप सबको भी अपने साथ यात्रा करवाएँगे.


अपनी बिटिया की तरह हम भी करते थे बचपन में ऐसी शरारतें 


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