25 नवंबर 2020

देवोत्थान एकादशी पर गन्ने और सूप का महत्त्व

कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह दीपावली के बाद आती है. इसको देवोत्थान एकादशी के साथ-साथ देवउठान एकादशी, देवउठनी एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी आदि भी कहा जाता है. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि आषाढ़, शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव शयन करते हैं. इसके पश्चात् उनका जागना कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी को होता है. इसीलिए इसे देवोत्थान (देवउठनी) एकादशी कहा जाता है. कहा जाता है कि भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन करने के पश्चात् इसी दिन जागे थे. विष्णु जी के शयन के इन चार महीनों में हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी मांगलिक कार्य का आयोजन करना निषेध है. भगवान के जागने के बाद ही चातुर्मास का अंत हो जाता है और सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.



देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है. इस दिन गन्ने और सूप का विशेष महत्व होता है. इसी दिन से किसान गन्ने की फसल की कटाई शुरू करते हैं. कटाई के पहले उनके द्वारा गन्ने की विधिवत पूजा की जाती है और इसे भगवान को चढ़ाया जाता है. पूजन पश्चात् गन्ने को प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है. गन्ने के पूजन के साथ-साथ इस दिन घरों में सूप पीटने की परम्परा भी है. ऐसा माना जाता है की ऐसा करके महिलाएँ भगवान विष्णु के घर में आने की कामना करती हैं. सूप पीटना दरिद्रता भगाने का सूचक भी माना जाता है. आज भी गन्ना पूजन और सूप पीटे जाने की परम्परा बनी हुई है.



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