सामूहिकता का भाव-बोध लोगों के बीच से क्यों कम होता जा रहा है या कहें कि समाप्त होता जा रहा है, यह समाजविज्ञानियों के लिए शोध का विषय होना चाहिए। जैसा आजकल दिख रहा है, उसके अनुसार किसी एक क्षेत्र में नहीं बल्कि लगभग सभी क्षेत्रों में सामूहिकता का अभाव होता जा रहा है। इसके चलते न केवल व्यक्ति खुद को अकेला महसूस कर रहा है बल्कि परिवार भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। ऐसा होने के कारण लोगों में अवसाद पनप रहा है। ऐसी स्थिति के चलते अनेक विसंगतियाँ देखने को मिल रही हैं। स्वार्थ की भावना भी ऐसी ही एक विसंगति है। इनके निदान के लिए सबसे पहले वे कारण खोजे जाने चाहिए जिनकी वजह से सामूहिकता का अभाव हो रहा है।
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#कुमारेन्द्र
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