18 नवंबर 2020

मिलजुल कर महफ़िल सजाएँ

जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आसपास होता है या फिर अकेले हैं चले आओ, जहाँ हो आदि गीत की पंक्तियाँ दिल के उदास होने पर किसी अपने के अपने आसपास होने की गवाही दे रही हैं. दिल के उदास होने और उस उदासी में किसी अपने के पास होने की अभिलाषा करना इंसान को इंसान से जोड़े रखने की संकल्पना को पुष्ट करती है. यह एकजुटता, पारिवारिकता मानवीय आधार पर निर्मित अनेकानेक मान्यताओं, परम्पराओं का वैज्ञानिक आधार रही है. वसुधैव कुटुम्बकम महज एक विचार नहीं, चंद शब्द नहीं वरन अपने आपमें एक समृद्ध अवधारणा है, जिसके द्वारा इंसान को न केवल इंसान से बल्कि इंसान को प्रकृति के अंग-अंग से समन्विति बनाये रखने को बल मिलता है. आधुनिकता के वशीभूत हमने न केवल वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को छिन्न-भिन्न किया वरन अपने आपको नितांत अकेलेपन का शिकार बना लिया. तकनीकी, ज्ञान, कार्य की असीमित व्यस्तता के बीच भी इंसान किस कदर अकेला पड़ गया है इसे महानगरों के साथ-साथ छोटे-छोटे नगरों, कस्बों में भी सहजता से देखा जा सकता है. किसी समय छोटे-छोटे नगरों, कस्बों, गाँवों आदि को प्रेम-स्नेह-सौहार्द्र के, आपसी सहयोग के, समर्पण के रूप में प्रस्तुत किया जाता था किन्तु आज इन सबको भी आधुनिकता की बयार में बदलते देखा जा सकता है.



आधुनिकता का आलम ये है कि इंसान के संगठित रूप में रहने को अब कबीलाई संस्कृति समझा जाने लगा है; खिलखिलाकर, ठहाका मारकर हँसने को अब ज़ाहिलाना हरकत करार दिया जाता है; अंतरंगता दिखाने को चापलूसी समझा जाने लगता है; गले मिलने, आत्मीयता जताने को अवैध संबंधों से जोड़कर देखा जाने लगता है, ऐसे में दिल का उदास होना, अकेला होना लाजिमी है. उत्सव, त्यौहार, आयोजन अब हर्ष-उल्लास का विषय नहीं वरन विवाद का विषय बनने लगे हैं, ऐसे में इंसान को भरे-पूरे होने का एहसास कैसे हो? दोस्तों की महफ़िल कहीं दूर हो गई है, सांझ ढलने से देर रात चलने वाली हँसी-मस्ती की आवारगी अब देखने को नहीं मिलती है. बच्चों के लिए खेल के मैदानों को बड़ी-बड़ी इमारतों ने निगल लिया है, अब वे मैदान में मस्ती करने के स्थान पर मोबाइल, टीवी, वीडियो गेम के सामने अकेले-अकेले अपनी सक्रियता प्रदर्शित करते हैं. बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सबको अकेलापन सालता भी है और विडम्बना देखिये कि यही अकेलापन उन्हें पसंद भी आता है, या कहें कि अकेलेपन से लगातार जूझते रहने के कारण ये अकेलापन उन्हें पसंद आने लगता है. अकेलेपन का ये रोग ऐसे लोगों के मन-मष्तिष्क में इस कदर हावी हो जाता है कि किसी का साथ, मित्रों की संगत, महफ़िलों की रौनक, हंसी-ठहाके ऐसे लोगों को अकेलेपन की तरफ और ज्यादा धकेलते से मालूम पड़ते हैं.

 

इससे पहले कि हमारे परिवार के बीच में अकेलेपन का भयावह साया किसी सदस्य को अपनी गिरफ्त में ले, किसी बच्चे को अवसाद की तरफ ले जाये, किसी युवा को अपराध की तरफ धकेले, हम सबको एकजुटता की आवश्यकता है. हम सभी को सहयोग की, अपनत्व की महफ़िल सजाकर अपने लोगों को अपने लोगों के बीच उपस्थित करना होगा. एक-दूसरे से करते हैं प्यार हम, एक-दूसरे के लिए बेक़रार हम या फिर साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जायेगा... आदि गीतों की पंक्तियाँ स्मृति में बसाकर सबको एकसाथ गाना-गुनगुनाना होगा.


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