27 अक्टूबर 2020

वोट बनने की जगह अब नागरिक बनना होगा

समाज में एक नागरिक के रूप में यहाँ के मंत्री भी रहते हैं और एक साधारण सा काम करने वाला भी. इसी नागरिक के रूप में एक प्रशासनिक अधिकारी की पहचान होती है तो एक सामान्य से क्लर्क की. इसी में बहुत बड़ा व्यापारी भी शामिल होता है और इसी में एक अत्यंत गरीब व्यक्ति भी. पद, प्रतिष्ठा, धर्म, जाति के आधार पर किसी की नागरिकता का निर्धारण नहीं होता बल्कि सभी इसी समाज के नागरिक कहे जाते हैं. ये और बात है कि पद, प्रस्थिति, प्रतिष्ठा, धन आदि के द्वारा उसको अलग स्थान दिया जाने लगता है. इसी अलग स्थान दिए जाने की मानसिकता के कारण देश के सभी राजनैतिक दलों ने नागरिकों को अपने हाथों का खिलौना बना दिया है. ये नागरिक अब महज नागरिक न होकर जाति, धर्म, क्षेत्र, राजनैतिक विचारधारा के लोग बना दिए गए हैं.


समाज में किसी भी घटना के बाद हम सभी उसके पहले हुई घटना के सापेक्ष राजनैतिक दलों की प्रतिक्रिया की तुलना करने लगते हैं. एक पल रुक कर सोचिए कि क्या राजनैतिक दलों ने वाकई किसी भी घटना पर प्रभावित पक्ष के लिए संवेदनात्मक रूप से कार्य किया है? इसमें किसी एक दल को दोषी नहीं ठहराया जा रहा है बल्कि सभी दल एकसमान रूप से दोषी हैं. उनके लिए कोई भी घटना महज एक घटना ही नहीं होती वरन एक तरह का मंच होती है, जिसके माध्यम से वे अपने दल के लिए अधिक से अधिक सहानुभूति, अधिक से अधिक मतदाता, अधिक से अधिक वोट का जुगाड़ करने की कोशिश करते हैं. उनके किसी भी घटना के सन्दर्भ में उठने वाले कदमों की हम आलोचना करते हैं और उसी कदम की किसी अन्य घटना के सापेक्ष समर्थन भी करने लगते हैं. असल में एक नागरिक के रूप में हम सभी लोग ही स्थिर नहीं हैं. हमें किसी भी घटना के सापेक्ष खुद भी ज्ञात नहीं होता है कि हम चाहते क्या है? हम चाह क्या रहे हैं?




किसी भी घटना के हो जाने पर एक नागरिक के रूप में हमारी प्रतिक्रिया होने से पहले ही हम सभी खुद को धर्म, जाति, क्षेत्र, राजनैतिक विचारधारा के खाँचे में फिट कर लेते हैं. अब खाँचे में फिट हो जाने के बाद हम सभी की दृष्टि, सोच का दायरा सीमित हो जाता है. इसी सीमित दृष्टि के कारण हम उस घटना के सन्दर्भ में राजनैतिक दलों से किसी तरह की प्रतिक्रिया की अपेक्षा करने लगते हैं. समाज के नागरिक बनने के बजाय आलोचक बनके राजनैतिक दलों की पिछली किसी भी घटना पर उपजी प्रतिक्रिया की तुलना में लग जाते हैं. यही वह बिंदु होता है जहाँ कोई भी अपराधी अपने आपको मजबूत स्थिति में पाता है. वह समझ लेता है कि उसके अपराध का विरोध, उसके कृत्य का विरोध हम एक नागरिक के रूप में कभी करने की स्थिति में नहीं हैं. हम किसी भी अपराधी के कृत्यों के विरोध के लिए भी राजनैतिक दलों का मुँह ताकने लगते हैं.


इसी तरह की मानसिकता ने समाज में नागरिकों को कमजोर किया है और अपराधियों को बढ़ावा दिया है. हम सभी को एक नागरिक के रूप में स्वयं में सक्षम होना चाहिए. समाज में होने वाली किसी भी घटना के सन्दर्भ में हम सभी को एकजुट होकर अपराधियों का विरोध करना चाहिए. यदि समाज के सभी नागरिक एकसमान रूप से एकजुट होकर किसी भी अपराधी के कृत्य का विरोध करने उतर पड़ेंगे तो किसी भी बड़े से बड़े अपराधी की हिम्मत नहीं कि वह अगली बार किसी तरह का अपराध करे. घटना किसी भी प्रदेश में हो, किसी भी व्यक्ति के साथ हो, अपराधी का निशाना बेटी है या बेटा, युवा है या वृद्ध, गरीब है या अमीर इन सबका आकलन करने के बजाय अपराधी का विरोध होना चाहिए. यदि हम सभी एक नागरिक के रूप में एकजुट होकर ऐसा नहीं कर पाते हैं तो अपराधी खुलेआम सड़क पर अपराध करते रहेंगे, राजनैतिक दल हम नागरिकों को अपने वोट में बदलते रहेंगे.


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