06 सितंबर 2020

क्या वाकई हर किसी को नहीं मिलता यहाँ प्यार ज़िन्दगी में

‘हर किसी को नहीं मिलता यहाँ प्यार ज़िन्दगी में, खुशनसीब है वो जिसको है मिली ये बहार ज़िन्दगी में’ इस गीत की ये पंक्तियाँ बड़े ही दार्शनिक भाव से आये दिन किसी न किसी मंच से पढ़ने को मिलती हैं. इस दार्शनिक भाव के पीछे प्यार की परिभाषा को कितना संकुचित करके बताया जाता है, इस पर कभी किसी का ध्यान नहीं गया. इस बारे में शायद इन पंक्तियों का उदाहरण देने वालों ने भी विचार नहीं किया होगा और न ही उन लोगों ने विचार किया होगा जो इनके दार्शनिक भाव को बड़ी ही आत्मीयता से ग्रहण करने सहमति में अपनी गर्दन हिलाते दिखते हैं.


इन्हीं पंक्तियों को सुन-सुन कर दार्शनिक बने घुमते लोगों से एक ही सवाल कि उनके लिए प्यार का अर्थ क्या है? यह एक सवाल जब भी हमने इन पंक्तियों पर दार्शनिक बने लोगों से पूछा तो बजाय जवाब देने के वे लोग अगल-बगल ताकते नजर आये. कुछ ऐसा ही हाल उन लोगों का भी रहा जो इन पंक्तियों में बहुत बड़ा दर्शन छिपा देखते हैं. अब एक बार फिर उन पंक्तियों को पढ़िए और गौर करिए कि क्या वाकई प्यार ऐसी चीज है जो सबको नहीं मिलता? या विषमलिंगियों के बीच आपस में होने वाला प्यार सबको नहीं मिलता? दो व्यक्तियों के बीच (वो भी विषमलिंगी) के बीच पनपने वाले प्यार को प्यार की सम्पूर्णता पर लागू क्यों मान लिया जाता है? क्यों प्रेमी-प्रेमिका के बीच के प्यार की स्थिति को प्यार की व्यापक अवधारणा पर स्वीकार कर लिया जाता है?


इन पंक्तियों पर दार्शनिकता उड़ेलने वाले खुद अपने आपको देखें और बताएँ कि क्या वाकई प्यार उनको बिलकुल नहीं मिला? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्यार की परिभाषा को बस लड़का-लड़की के बीच सीमित कर देने के कारण वे प्यार का सन्दर्भ ही भुला बैठे? इस तरह का तथाकथित दर्शन ओढ़े रहने वाले एक बार उन दिनों से अपने जीवन पर निगाह डालना शुरू कर दें, जबसे कि वे कहते हैं कि होश संभाला है, क्या वाकई उन्हें प्यार न मिला? क्या ऐसे लोगों के लिए माता-पिता, भाई-बहिन अथवा उनके परिजनों से मिलने वाले प्यार का कोई महत्त्व नहीं? क्या ऐसे लोगों के लिए उनके दोस्तों के प्यार का कोई अर्थ नहीं? क्या ऐसे लोगों के लिए उनके सहयोगियों, उनके शुभचिंतकों से मिलते प्यार के कोई मायने नहीं?

संभव है कि ऐसा ही हो तभी तो बावली सी सूरत के साथ ऐसी पंक्ति को अपने जीवन का दर्शन बनाये बैठे हैं, ये लोग. ऐसे किसी भी गीत की पंक्तियों को महज आनंद के लिए, संगीत प्रेम के सन्दर्भ में सुना जाना ही सुखद होता है. इन गीतों में अपना ही एक दर्शन छिपा है और उस दर्शन को किसी संकुचित सन्दर्भ में नहीं बल्कि व्यापक सन्दर्भ में देखे जाने की आवश्यकता है. यह विचारणीय यह है कि यदि कोई दर्शन किसी व्यापक अवधारणा को संकुचित करे तो वह दर्शन नहीं बल्कि क्षणिक मनोभाव है. यही मनोभाव सम्बंधित गीत के लिए भी है क्योंकि उसे सम्बंधित फिल्म के विशेष दृश्य, कहानी की माँग के रूप में लिखा, फिल्माया गया है न कि जीवन-दर्शन के लिए. जीवन का प्यार सम्बन्धी दर्शन इतना है कि प्यार एक व्यापक अवधारणा है जो सर्वत्र सुख का संचार करता है. प्यार स्व की भावना नहीं बल्कि पर की भावना से परिपूर्ण होता है. काश कि गीतों की पंक्तियों में भटकते लोग प्यार का वास्तविक अर्थ समझ पाते, समझने का प्रयास कर पाते.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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