शिवलिंग
को गुप्तांग की संज्ञा क्यों?
अब सनातन संस्कृति के लोग खुद ही शिवलिंग को शिव
भगवान का गुप्तांग समझने लगे हैं और दूसरे हिन्दुओं को भी ये गलत जानकारी देने लगे
हैं। ऐसी भ्रामक स्थिति में सही तथ्यों को जानना बहुत जरूरी है।
कुछ
लोग शिवलिंग की पूजा की आलोचना करते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को बताया जाता है कि हिन्दू
लोग लिंग और योनि की पूजा करते हैं। उन मूर्खों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है और
अपने छोटे-छोटे बच्चों को सनातन संस्कृति के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते
हैं। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है, इसे देववाणी भी कहा जाता है। लिंग का अर्थ संस्कृत
में चिन्ह, प्रतीक होता है जबकी जननेंद्रिय को संस्कृत मे शिशिन
कहा जाता है। इस दृष्टि से शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। इसे ऐसे भी और सहज
रूप में समझा जा सकता है कि पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग
का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। अब यदि
जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य की जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते हैं वे बतायें कि
क्या स्त्री लिंग के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए?
शून्य,
आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड
और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है
कि आकाश स्वयं लिंग है। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड
(क्योंकि ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्ष/धुरी (axis) ही लिंग
है। शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है और ना ही शुरुआत।
शिवलिंग
का अर्थ लिंग या योनि नहीं है। दरअसल यह गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों यवनों के द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर
दिए जाने पर तथा बाद में मुगलों और षडयंत्रकारी अंग्रेजों के द्वारा इसकी व्याख्या
से उत्पन्न हुआ है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओं में
अलग-अलग अर्थ निकलते हैं। उदाहरण के लिए यदि हम हिन्दी के एक शब्द सूत्र को
ही ले लें तो सूत्र का मतलब डोरी/धागा, गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता
है। जैसे कि नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र इत्यादि। उसी प्रकार अर्थ शब्द का भावार्थ
: सम्पति भी हो सकता है और मतलब, आशय, अभिप्राय
(मीनिंग) भी। बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न,
निशानी, गुण, व्यवहार या
प्रतीक है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने
के कारण इसे लिंग कहा है तथा इसे कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है। जैसे प्रकाश
स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग,
ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)।
ब्रह्माण्ड
में दो ही चीजे हैं, ऊर्जा और प्रदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा
ऊर्जा है। विज्ञान का भी यही सिद्धांत है e=mc2
इसी
प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं। ब्रह्मांड में
उपस्थित समस्त ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड
की आकृति है। शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-अनादि एकल रूप है।
यह पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक भी है अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का
और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है बल्कि दोनों समान हैं।
अब
बात करते है योनि शब्द पर। मनुष्य योनि, पशु योनि, पेड़-पौधों की योनि, जीव-जंतु योनि आदि। योनि शब्द का
संस्कृत में प्रादुर्भाव, प्रकटीकरण अर्थ होता है। जीव अपने कर्म
के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है। कुछ धर्मों में पुनर्जन्म की मान्यता
नहीं है, इसीलिए वे योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते हैं। जबकि हिन्दू धर्म
मे 84 लाख योनि बताई जाती हैं यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं। अब तो वैज्ञानिकों ने
भी मान लिया है कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़, कीट,
जानवर, मनुष्य आदि) हैं।
पुरुष
और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है। अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए
मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है। लिंग का तात्पर्य प्रतीक से
है, शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक, दीपक की प्रतिमा
बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई। बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं। हवा
में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न
करती है। इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया ताकि निर्विघ्न
एकाग्र होकर ध्यान लग सके। इसका कुछ विकृत, गंदी मानसिकता वाले गोरे अंग्रेजों के गंदे
दिमागों ने इसमें गुप्तांग की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली। इसके
पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण बहुत सारे अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित
किया गया। आज भी बहुतायत हिन्दू इस दिव्य ज्ञान से अनभिज्ञ हैं।
हिन्दू
सनातन धर्म व उसके त्यौहार विज्ञान पर आधारित हैं जोकि हमारे पूर्वजों, संतों, ऋषियों-मुनियों तपस्वियों की देन है। आज विज्ञान
भी हमारी हिन्दू संस्कृति की अद्भुत हिन्दू संस्कृति व इसके रहस्यों को सराहनीय दृष्टि
से देखता है व उसके ऊपर शोध कर रहा है।
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(एक
सन्देश के रूप में प्राप्त इस जानकारी के वास्तविक लेखक की जानकारी नहीं है. इसे
जानकारी की दृष्टि से भ्रमित लोगों के बीच प्रसारित किया जाए.)
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
तर्क पूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंतर्क और आस्था के तराज़ू पे रख कर बख़ूबी विवेचना की है आपने ... साधुवाद ...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
विचारणीय और ज्ञानवर्धक आलेख।
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