हिन्दी दिवस का स्वयंभू आयोजन किया जाये और हिन्दी पर ही लोगों द्वारा ज्ञान न दिया जाये, ऐसा संभव नहीं. आज इस दिवस पर सोशल मीडिया पर बुरी तरह से संदेशों की, ज्ञान की बरसात हो रही है. हिन्दी सही है या हिंदी, सितम्बर सही है या सितंबर, शुभकामनाएँ सही है या शुभकामनाएं जैसा एक सवाल उठाया था, जिस पर देशकाल, वातावरण के अनुसार सबके अपने-अपने मत मिले. तकनीक के आज के दौर में जबकि सभी लोग ज्ञानवान हैं, अथाह प्रतिभासंपन्न हैं ऐसे में किसी को सुझाव देना भी खतरे से खाली नहीं होता है. हिन्दी में सम्बन्ध में इसे और भी गम्भीरता से लिया जा सकता है.
सोशल मीडिया के अतिशय उपयोग ने हिन्दी का उपयोग भी बढ़ा दिया है. इस अत्यधिक उपयोग ने जहाँ एक तरफ कुछ सुगमता प्रदान की है वहीं कुछ सीमाबंदी के कारण गलतियों को स्वीकारने को भी विवश किया है. सम्भव है कि आज जबकि राजभाषा आयोग के तमाम सुझावों को लगातार अपनाया जा रहा है, तब ऐसे बिन्दुओं को गलती कहना भी बहुत से लिख्खाड़जनों को पसंद नहीं आएगा. फिलहाल तो कुछ बिन्दु व्याकरण सम्मत और कुछ वर्तनी आयोग आपके समक्ष.
यदि हिन्दी सही या हिंदी पर ही विचार करें तो इसे समझने के लिए पञ्चम वर्ण के व्याकरणिक नियम पर ध्यान देना होगा. व्याकरण नियमों के अनुसार ऐसे शब्द में सम्बन्धित वर्ग के पञ्चम वर्ण का आधा लगाया जाना चाहिए. वर्णमाला के अनुसार निम्न वर्ग हैं.
क ख ग घ ङ (क वर्ग)
च छ ज झ ञ (च वर्ग)
ट ठ ड़ ढ ण (ट वर्ग)
त थ द ध न (त वर्ग)
प फ़ ब भ म (प वर्ग)
व्याकरण नियम के अनुसार हिन्दी शब्द लिखे जाने में द के पूर्व पञ्चम वर्ण को आधा करने लगाया जाना है. यहाँ द वर्ण त वर्ग में है. अतः इस वर्ग का पञ्चम वर्ण न आधा होकर द के पूर्व आएगा. इसीलिए हिन्दी शब्द सही है. इसी तरह यदि लिखना हो सितम्बर तो सितंबर लिखना व्याकरण नियम के अनुसार शुद्ध नहीं है. आप स्वयं बोलकर देखिये तो आपको ज्ञात होगा कि ब वर्ण के पूर्व पञ्चम वर्ण आधा होकर लगेगा. वर्ण ब शामिल है प वर्ग में. इसलिए इस वर्ग का पञ्चम वर्ण म आधा होकर ब के पूर्व लगेगा. इसीलिए सितम्बर सही है न कि सितंबर.
ये तो हुआ व्याकरणिक ज्ञान. इधर भाषाई विकास के लिए लगातार सरकारी प्रयास होते रहे हैं. इनमें अनेक आयोग के माध्यम से भाषा को सरल से सरल बनाये जाने के लिए नियम भी बनाये गए. इसके साथ-साथ कम्प्यूटर के आने के बाद से और हिन्दी भाषा के वैश्विक रूप से प्रयोग किये जाने एक बाद से भी इसके सरलीकरण करने का वैश्विक दवाब भी देखने को मिलता रहा है. इसी के चलते वर्तनी आयोग ने पञ्चम वर्ण के प्रयोग को सरल बना दिया. उसके अनुसार व्याकरणिक कठिनाई को दूर करते हुए सीधे-सीधे अनुस्वार को मान्यता दे दी. उसके अनुसार पञ्चम वर्ण को आधा करके लगाने, सम्बंधित वर्ग को पहचानने की समस्या को दूर करते हुए सम्बंधित वर्ण के ऊपर बिंदी (ध्यान दें बिन्दी नहीं, जिसे अनुस्वार कहते हैं) लगाने को मान्यता दी.
कम्प्यूटर के प्रयोग के चलते भी पञ्चम वर्णों के प्रयोग में दिक्कत सामने आ रही थी. ऐसे में वर्तनी आयोग की इस सिफारिश को सहज भाव से स्वीकार करने के बजाय कम्प्यूटर की सुविधा ने इस परिवर्तन को स्वीकार लिया. यही कारण है कि अब हिंदी भी सही है, सितंबर भी सही है, शुभकामनाएं भी सही है. वर्तनी आयोग की अनुस्वार और अनुनासिक को लेकर भी एक सिफारिश है, जिसके अनुसार वह अनुस्वार यानि कि बिन्दु में और अनुनासिक अर्थात चन्द्रबिन्दु में भेद नहीं करता है. उसका मानना है कि इसके उपयोग को सम्बन्धित शब्द के प्रयोग के अनुसार समझ लिया जाए. हंस और हँस शब्द की व्याख्या करते हुए उसका कहना है कि इन दो शब्दों का जहाँ, जिस सन्दर्भ में प्रयोग हो रहा हो वहाँ इसके भाव को समझते हुए उसका अर्थ निश्चित कर लिया जाए.
फिलहाल, आज हिन्दी दिवस पर इतना ही ज्ञान पर्याप्त है. आप सभी को शुभकामनाएँ, १४ सितम्बर २०२०, हिन्दी दिवस की. खुश रहें, हिन्दी को समृद्ध करने के लिए लगातार प्रयत्नशील रहें.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-09-2020) को "मेम बन गयी देशी सीता" (चर्चा अंक 3826) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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