कहते हैं कि जब वक्त व्यक्ति के साथ नहीं होता है तो ऊँट पर बैठे उस व्यक्ति को कुत्ता भी काट लेता है. ऐसा महज कहावतों में नहीं है बल्कि सत्य है. बहुत से लोग समाज में ऐसे होते हैं जो बहुत ज्यादा श्रम नहीं करते हैं मगर अपने भाग्य, किस्मत के दम पर बहुत आगे निकल जाते हैं. इसी के विपरीत बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो अनथक प्रयास करते हैं मगर उसके बाद भी वे उतना प्रतिफल नहीं प्राप्त कर पाते हैं, जो उनकी मेहनत को मिलना चाहिए था. ऐसे लोगों के कारण ही भाग्य की, किस्मत की अवधारणा समाज में पुष्ट हुई है.
आज इस संक्षिप्त पोस्ट का उद्देश्य ही महज इतना है कि हम सभी लोग समझ सकें कि वास्तविक सत्य क्या है और बनाया हुआ सत्य क्या है. यदि वाकई समाज को वैज्ञानिकता से, वैचारिकता से सजाना-सँवारना है तो निश्चित रूप से ऐसे लोगों की असलियत को सामने लाने का काम करना होगा जो दूसरे लोगों के सहारे भाग्य और किस्मत के नाम पर दूसरों को पीछे करने में लगे हुए हैं.
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