26 अगस्त 2020

राधा अष्टमी

प्रेम की बात होती है तो राधा-कृष्ण का नाम ही सबसे पहले और अत्यंत पावन स्वरूप में सामने आता है. यद्यपि राधा-कृष्ण का आपस में विवाह न हो सका तथापि उनके अमर प्रेम को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा है. इसे संयोग हो कहा जाना चाहिए कि राधा-कृष्ण की इस अमर जोड़ी का जन्मदिन भी एक ही तिथि को पड़ता है. जी हाँ, कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक पंद्रह दिन पश्चात भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी मनाई जाती है. राधा अष्टमी को राधा जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. वैदिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर में इसी दिन वृषभानु और कीर्तिजी की पुत्री के रूप में राधा का जन्म हुआ था. ऐसा माना जाता है कि कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखने वाला यदि राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता है तो उसे कृष्ण जन्माष्टमी का सम्पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है.



उत्तर भारत में इस जन्मोत्सव को विशेष रूप से मथुरा, वृंदावन और बरसाना के मंदिरों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है. भक्तजन कृष्ण जन्माष्टमी के बाद यहाँ के मंदिरों में राधा जी के दर्शन अवश्य करते हैं. शास्त्रगत मान्यता है की भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण और लक्ष्मी जी ने राधा जी के रूप में जन्म लिया था.  राधा और कृष्ण के प्रेम सम्बन्धी प्रसंगों को लेकर अलग-अलग जनश्रुतियाँ हैं. इसके साथ-साथ हिन्दी साहित्य में इनके प्रेम को रास से सम्बंधित करके भी अलग-अलग कवियों ने प्रेमपरक रचनाएँ की हैं कहीं-कहीं कवित्व के आधिक्य के चलते और मनोभावों के पूर्वाग्रह ने राधा-कृष्ण को लेकर अत्यंत अश्लील चित्रण भी किया है. ऐसा बहुतायत में देखने को मिलता है कि जब भी सनातन धर्मी मान्यताओं से पूर्वाग्रह रखने वालों ने राधा-कृष्ण के जीवन को लेकर कुछ न कुछ लिखा है अथवा कहा है तो रासलीला को आधार बनाकर उसका अश्लील, अशोभनीय चित्रण ही किया है.

आज के समय में जबकि सभी धर्मों की अपनी-अपनी मान्यताओं का अपने विवेक से पालन किया जा रहा है तब सनातन संस्कृति को मानने वालों से इसकी अपेक्षा की जाती है कि वे भी राधा के चरित्र को, उनके जीवन को जानने-समझने का प्रयास करें.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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