24 अगस्त 2020

स्त्री-विमर्श के अपने-अपने भ्रम

इधर कुछ दिन से सोशल मीडिया पर कुछ विशेष लोगों की स्त्री-विमर्श से सम्बंधित पोस्ट देखने को मिल रही हैं. कुछ ब्लॉग पर भी इसी तरह की पोस्ट पढ़ने को मिलीं. समाज में बहुत सारे विमर्शों के बीच आज भी दो विमर्श अपनी-अपनी तरह से जिन्दा रखे जा रहे हैं. इनमें एक स्त्री विमर्श है और दूसरा दलित विमर्श. किसी समय में इन दोनों विमर्शों को एक तराजू पर तौलने की कोशिश भी की गई थी. बहरहाल, देखने में आता है कि इक्कीसवीं सदी में खुद को स्थापित करने के बाद भी यदि कहीं से भी एक भावात्मक बिंदु खोजने की कोशिश की जाती है तो इन्हीं दो विमर्शों के नाम पर. अभी चर्चा स्त्री-विमर्श की. खुद को पुरुषों के बराबर मानने वाली, पुरुषों से कन्धा से कन्धा मिलाकर चलने वाली, कहीं-कहीं खुद को पुरुषों से आगे भी बताने वाली स्त्री अचानक से स्त्री-विमर्श के द्वारा खुद को ही कमजोर बताने लग जाती है. ऐसी पोस्ट से वह खुद को कमजोर बताने के साथ-साथ अपने समकक्ष और अपने बाद की पीढ़ी में एक तरह का भय पैदा करके अपना अनुनायी बनाने की चेष्टा करने का प्रयास भी करती है.



असल में नारी-सशक्तिकरण, स्त्री-विमर्श को लेकर असल बिंदु या फिर असल स्थिति क्या है, ये स्त्री-विमर्श के पैरोकारों को भी असलियत में ज्ञात नहीं. स्त्री-विमर्श आज बाजार के हाथों में सिमट चुका है. स्त्री की दशा सुधारने की बात करने वाली, उसकी दशा कमतर बताने वाली स्त्री खुद बाजार के हाथों संचालित हो रही है. नारी की स्थिति को यदि पुरुष द्वारा चित्रित किया जाये तो वो स्त्री को बदनाम करने की साजिश कही जाती है और यदि वही छवि किसी महिला द्वारा दिखाई जाये तो उसे नारी सशक्तिकरण कहा जाता है. नारी के बिना कोई उत्पाद नही बिक सकता. यहाँ नारी को उत्पाद बनाने की बात हो रही है, उसको कम कपडों में उतारने की बात हो रही है तो ये क्या है, नारी-सशक्तिकरण या फ़िर नारी की गरिमा का पतन?

यदि स्त्री-विमर्श, सशक्तिकरण के लिए पिछली सदी की नायिकाओं की बात करें तो महारानी लक्ष्मी बाई को कोई भी नहीं भूला होगा. उस समय परदा-प्रथा आज से अधिक था, महिलाओं की शिक्षा आज से बदतर थी तब भी रानी ने कई राजाओं को संगठित कर अपने झंडे तले, अपने आधिपत्य में लड़वाया था. ये है नारी-सशक्तिकरण का उदहारण. रानी ने तो कम कपडों का सहारा नहीं लिया था, वे तो किसी फैशन शो का हिस्सा नहीं थीं. फिलहाल समझाने से कुछ नहीं होगा क्योंकि समाज को चलाने वाले नहीं चाहते कि अब ये दो ध्रुव- स्त्री,पुरूष- एक होकर किसी समस्या का हल निकालें. दोनों में संघर्ष बना रहे, बाज़ार चमकता रहे, नारी अपनी झूठी शान में, पुरूष अपने झूठे अहंकार में भटकता रहे. इसी से बिकेंगे अंडरवीयर, शराब, ब्लेड और भी बहुत कुछ पर किसी कम कपडों में बलखाती नारी के साथ. यही तो है आज का नारी-सशक्तिकरण.

.

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें