वैश्विक
स्तर पर जबसे कोरोना वायरस का हमला दिखाई दिया है तबसे सभी देश लगातार उसके खिलाफ लड़ाई
सी छेड़े हुए हैं. संभवतः वैश्विक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगा जबकि एक विश्वयुद्ध
सा मंजर दिख रहा है, बस शत्रु ही सामने नजर नहीं आ रहा है. सभी
देशों को भली-भांति ज्ञात है कि उनका शत्रु कौन है. उनको ये भी जानकारी है कि ये शत्रु
किस तरह से और कहाँ-कहाँ आक्रमण कर रहा है. इसके बाद भी इससे निपटने के कारगर तरीके
अभी तक विकसित नहीं हो सके हैं.
वैश्विक
स्तर पर भी और हमारे देश में भी कोरोना से बचने के उपाय लगातार किये जा रहे हैं इसके
बाद भी एक तरह की अनिश्चितता सी बनी हुई है. आरंभिक दौर में सरकार ने संक्रमण गति को
कम करने के लिए, इस श्रंखला को तोड़ने के लिए लॉकडाउन भी लागू
किया मगर इससे उतने सुखद परिणाम सामने नहीं आये जितनी कि अपेक्षा की जा रही थी. सरकारों
को, लोगों को भली-भांति ज्ञात था कि लॉकडाउन इस बीमारी का एकमात्र
और अंतिम समाधान नहीं है, इसके बाद भी वायरस की श्रंखला तोड़ने
के लिए इसका समुचित पालन किया गया. अब जबकि अनलॉक की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है,
कोविड टेस्ट की संख्या बढ़ गई है तो कोरोना से संक्रमित होने वालों की
संख्या में भी लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है. इस बढ़ती संख्या के साथ-साथ सुखद
एहसास यह है की इस वायरस से संक्रमित लोगों के स्वस्थ होने वालों की संख्या भी बढ़ रही
है.
अभी
जबकि विश्व स्तर पर किसी देश ने कोरोना वायरस का इलाज किये जाने का दावा नहीं किया
है, किसी भी मेडिकल संस्था ने इसके इलाज का कोई निश्चित फार्मूला
भी नहीं बताया है ऐसे में बिना इलाज के मरीजों का स्वस्थ होना एक आश्चर्य माना जा रहा
है. मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोगों के द्वारा दावा किया जा रहा कि जिसकी प्रतिरोधक क्षमता
अच्छी है, उसे या तो कोरोना संक्रमण होगा नहीं और यदि हुआ तो
वह जल्द स्वस्थ हो जायेगा. इसी के दूसरी तरफ सभी लोगों को सावधान रहने पर जोर दिया
जा रहा है है. लोगों को मास्क बाँधने के लिए, मुँह-नाक ढँकने
के लिए लगातार प्रेरित किया जा रहा है. इस बीमारी से लड़ते-लड़ते कई महीने निकल गए मगर
अभी भी कोई ठोस धरातल पर नहीं खड़ा हो सका है. अभी भी इसके लक्षणों पर संशय बना हुआ
है, इसकी संक्रमण दर पर संशय बना हुआ है, इसके संक्रमण होने अथवा न होने को लेकर भी विमर्श चलता रहता है.
इन
सबके बीच लगातार संशय का माहौल बना दिखाई देता है. समय के साथ आम नागरिकों में सरकारी
कार्य-पद्धति पर, नीतियों पर, मेडिकल क्षेत्र
से जुड़े लोगों की बातों पर संदेह किया जाने लगा है. यहाँ एक बात विशेष रूप से गौर करने
वाली है कि जबसे देश में कोरोना ने अपने कदम पसारे हैं तबसे चिकित्सा क्षेत्र में कोई
दूसरी बीमारी दिखाई ही नहीं दे रही है. अब मरने वालों की जो संख्या आ रही है,
मरने वालों की जो खबरें आ रही हैं वे बहुतायत में या कहें शत प्रतिशत
कोरोना से होती बताई जा रही हैं. क्या वाकई ऐसा ही है? क्या इस
समय देश भर में जितनी मौतें हो रही हैं वे सिर्फ कोरोना से हो रही हैं? क्या अन्य बीमारियों से मरने वालों की संख्या शून्य हो गई है? कई बार मन में संशय उठता है कि इन सबके पीछे कहीं कोई वैश्विक साजिश तो नहीं?
इसके पीछे कहीं कोई बहुत बड़ा खेल तो आम नागरिकों के साथ तो नहीं खेला
जा रहा है?
ऐसा
इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यह बात सभी चिकित्सक या कहें कि चिकित्सा सेवा से जुड़े
लोग बेहतर तरीके से जानते हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण उसी दशा में होना है जबकि
किसी भी तरह से संक्रमण मुँह-नाक के सहारे अन्दर चला जाए. किसी संक्रमित व्यक्ति के
छूने से कोरोना संक्रमण नहीं फैलना है. इसके बाद भी लगभग सभी जगहों से किसी दूसरे मरीज
को चिकित्सा सेवा सहज उपलब्ध नहीं हो पा रही है. किसी भी तरह की बीमारी का इलाज करवाने
के पहले मरीज को कोविड टेस्ट से गुजरना पड़ रहा है. ऐसा तब हो रहा है जबकि डॉक्टर्स
पूरी तरह से किट में काम कर रहे हैं.
इसके
साथ-साथ कोरोना के नाम पर किसी बड़ी साजिश का, किसी उच्च स्तरीय
मिलीभगत, खेल का संदेह इस कारण भी है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु
के बाद उसकी भी जाँच करवाई जा रही है और उसके कोरोना संक्रमित होने पर उसकी मृत्यु
की गणना कोरोना से मरने वालों के साथ की जाने लगती है. आखिर ऐसा क्यों? जब उसकी मृत्यु कोरोना संक्रमण निर्धारित होने के पहले हो चुकी है तो फिर उसकी
मौत को कोरोना से होने वाली मौतों के साथ क्यों जोड़ा जा रहा है? संभव है कि अन्य सुरक्षा कारणों से मरने के बाद भी जाँच के द्वारा कोरोना संक्रमण
मृत देह से और जगहों पर फैलने के इरादे से ऐसा किया जा रहा हो मगर ऐसे में भी ऐसी मृत्यु
को कोरोना से होने वाली मौतों के साथ जोड़ना तर्कसंगत नहीं है.
एक
और बिंदु ऐसा है जो संदेह जगाता है. आखिर कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या बताते समय
मात्र उतनी ही संख्या क्यों नहीं बताई जा रही जितने मरीज वर्तमान में एक्टिव हैं?
आखिर ठीक पहले मरीज से लेकर अद्यतन संख्या बताने के पीछे क्या कारण है?
क्यों इसमें वह संख्या भी शामिल है जो स्वस्थ हो चुके हैं? क्यों इसमें वह संख्या बताई जाती है जिनकी मृत्यु हो चुकी है?
कोरोना
मामले में जिस तरह से जल्दबाजी में कदम उठाये गए उनको लेकर शायद इसलिए भी कुछ कहना
उचित नहीं क्योंकि इस तरह का संकट अकेले हमारे देश पर नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व
इसी से जूझ रहा है. सभी के लिए यह बीमारी एकदम नई थी और सुरक्षात्मक कदमों के बारे
में किसी को कोई जानकारी नहीं थी. ऐसे में उपायों को लेकर, सुरक्षा
सम्बन्धी बिन्दुओं को लेकर लगातार सीखने और गलतियाँ करने वाली स्थिति बनी रहना स्वाभाविक
है मगर इसकी आड़ में शेष बीमारियों के प्रति गैर-जिम्मेवाराना रवैया अपना लेना किसी
भी दृष्टि से उचित नहीं है. ये स्थितियां ऐसी हैं जो कहीं न कहीं संदेह को बढ़ाती हैं.
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