09 जुलाई 2020

खातिरदारी नहीं सार्वजनिक सजा मिले अपराधियों को

इसे शायद मानवाधिकार का उल्लंघन माना जायेगा मगर हमारा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि दुर्दांत अपराधियों को, आतंकियों को सार्वजनिक रूप से अत्यंत कष्टकारी और दुखद मौत देनी चाहिए. उनको दी जाने वाली सजा इतनी भयावह और दर्दनाक हो कि आने वाले समय में लोग अपराध करने से डरें. फाँसी या फिर आजीवन कारावास किसी भी रूप में कोई सजा नहीं. फाँसी के बाद अपराधी तो सभी तरह के कष्टों से मुक्त हो गया, भुगतता है उसका परिवार. इसी तरह से आजीवन कारावास में अपराधी बड़े ही चैन की नींद लेते हैं. दुर्दांत अपराधियों का और उनके रसूख की जानकारी आज जन-जन को रहती है, ये और बात है कि व्यक्ति अपनी और अपने परिवार की जान की चिंता करते हुए उसे सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं करता है.



व्यक्तिगत स्तर पर हमारा मानना है कि किसी भी तरह के ऐसे अपराधियों को, जिनका बहुत सारे केस में हाथ है, जिनका आपराधिक इतिहास भी प्रमाण सहित प्रशासन के पास है उनके सम्बन्ध में किसी तरह की रियायत नहीं होनी चाहिए. अपराधियों को जिन्दा बनाये रखना, उनकी खातिरदारी करते रहना किसी भी तरह की अकलमंदी नहीं है. ये कहना कि उनके द्वारा सबूतों को इकठ्ठा कर लिया जायेगा, रसूखदार लोगों पर शिकंजा कस लिया जायेगा, सिर्फ टहलाने की बातें हो सकती हैं. देश में बहुत से अपराधी ऐसे हैं जिनको अभी तक जिन्दा रखा गया है, जिनसे बहुत सारे प्रमाण मिल चुके हैं मगर कोई बताये कि किस रसूखदार के गिरेबान में आज तक पुलिस ने हाथ डाल पाया है? हत्या, अपहरण, बलात्कार सहित ऐसे अनेक मामले हैं जिनमें संरक्षण गृह की बालिकाओं तक के साथ अपराध किया जाता है, किस मामले में आजतक किसी रसूखदार व्यक्ति की गिरफ़्तारी हुई है? किसी एक केस का नाम लेकर बाकी दूसरे केसों को कमजोर बताना यहाँ मकसद नहीं है, यहाँ बस यही बताना है कि सबूतों का इकठ्ठा किया जाना, अपराधियों के बयानों पर रसूखदारों पर शिकंजा कसने की बातें बस जनता को टहलाने के लिए हैं.

एक-दो बार नहीं, अनेक बार ऐसी खबरें सामने आई हैं जबकि रसूखदारों से सम्बन्ध रखने वाले अपराधियों को जेल में वीआईपी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाती रही हैं. बहुत से अपराधी ऐसे हैं जिनके बारे में साफ़ तौर पर मीडिया में आता रहा है कि वे जेल से भी अपने आपराधिक कृत्यों को सहजता से संचालित करते रहते हैं. आये दिन जेल में मोबाइल का मिलना, अन्य सामानों का मिलना इसी बात की तरफ इशारा करता है. ऐसे में किसी भी दुर्दांत अपराधी को जिन्दा रखते हुए, उसकी खातिरदारी करते हुए किसी न किसी रूप में प्रशासन को ही हतोत्साहित करना है. प्रशासन की अपनी ही जिम्मेवारियाँ कम नहीं हैं, ऐसे में अपराधियों की खातिरदारी करवाने से बचना चाहिए. यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि जिस तरह का तंत्र हमारे समाज में अब स्थापित हो चुका है, वहाँ किसी भी रसूखदार पर हाथ डालना सहज नहीं. ऐसे में अपराधियों से मिलने वाले सबूतों, प्रमाणों का अचार डालने से बेहतर है कि उनको सार्वजनिक रूप से ऐसी सजा दी जाये जिसे देखकर, सुनकर बाकियों के हाथ-पैर काँप जाएँ. न सही पूरी तरह से मगर बहुत हद तक अंकुश लगेगा अपराध पर, ऐसा हमारा व्यक्तिगत रूप से मानना है. हाँ, इसके लिए अपराधियों के मानवाधिकारों की चिंता करना बंद करना होगा.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

5 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा। ऐसे अपराधियों को सार्वजनिक सज़ा मिलनी चाहिए। पीड़ित के मानवाधिकार के साथ सबको होना चाहिए न कि अपराधी के। लेकिन मुश्किल यही है कि पुलिस, प्रशासन, मीडिया... सब बिकाऊ है। उचित कार्रवाई हो कैसे।

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