08 जुलाई 2020

एक बार अंतिम युद्ध कर लो, शायद जीत जाओ

फिल्म इंडस्ट्री में एक कलाकार ने आत्महत्या क्या की, ऐसा लगने लगा जैसे देश की पहली आत्महत्या है. कुछ लोग इसे हत्या भी बता रहे. एक पल को इस पर विचार कर लिया जाये, तब भी जिस तरह से समाज की युवा पीढ़ी इस पर अपना दिमाग केन्द्रित किये है, लग रहा है जैसे देश में पहला केस है जो हत्या से संदर्भित है. इसी अवधि में कई और हत्याएँ हो चुकी हैं. पूरे के पूरे परिवार को नृशंस तरीके से मौत के घाट उतार दिया है मगर एक कलाकार के लिए धरती हिला देने वालों के दिमाग पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा इन हत्यायों से.


बहरहाल, सभी का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है, सभी से अपनी तरह का लगाव होता है, संभव है कि उस कलाकार से भी वैसा लगाव रहा हो. इस एक आत्महत्या की घटना के पहले भी और इसके बाद भी समाज में इधर आत्महत्याओं का एक सिलसिला सा चल पड़ा है. कहीं किसी शिक्षक द्वारा, कहीं किसी पत्रकार द्वारा, कहीं किसी बेरोजगार द्वारा, कहीं किसी परिवार के मुखिया द्वारा ऐसा किये जाने की खबरें आ रही हैं. सबके अलग-अलग हालात रहे होंगे, इससे इंकार नहीं मगर एक सवाल उठता है कि उसके आत्महत्या करने से क्या हालात सुधर गए होंगे? क्या जिन परिस्थितियों से हारकर उसने आत्महत्या की होगी, वे स्थितियाँ अब सही हो गई होंगीं? परिवार को जिस कष्ट में न देख पाने के कारण किसी व्यक्ति ने अपनी जान ले ली क्या अब वे परिजन उस कष्ट से मुक्त हो गए होंगे? यहाँ बस इतना हुआ कि व्यक्ति स्वयं जिस कारण से परेशान रहा होगा वह उनसे मुक्त हो गया. उसके बाद उसके परिजन किस कष्ट से जूझ रहे होंगे, उसे अब कोई चिंता नहीं. उसके बीवी, बच्चे अब किस गली में भीख माँग रहे होंगे, उसे किसी की चिंता नहीं. उसके बूढ़े माँ-बाप किसके सहारे अपना जीवन गुजारेंगे इसके बारे में भी कोई फ़िक्र नहीं.


आत्महत्या करके वह व्यक्ति खुद को सभी कष्टों से मुक्त कर लेता है या कहें कि कायराना हरकत दिखाते हुए दुनिया से, समाज से मुँह छिपा लेता है. अपने आपको कमजोर साबित करते हुए अपनी भी परेशानियों को अपने परिजनों के सिर पर थोप जाता है. हमारी नजरों में यह निश्चित ही कोई वीरतापूर्ण कदम नहीं कहा जायेगा, शेष सबकी अपनी राय. इसी संबंध में हमारा मानना है कि हारने या आत्महत्या के पहले एक बार अंतिम युद्ध कर लो, शायद जीत जाओ.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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