समय
के बदलाव के साथ विगत कुछ वर्षों में जिस तेजी से परिवर्तन आये हैं वे अकल्पनीय
हैं. समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से परिवर्तन देखने को मिले हैं.
तकनीक के विकास ने बहुत सी वस्तुओं में क्रांतिकारी बदलाव किये हैं. बदलाव के बहुत
सारे क्षेत्रों में मोबाइल और ऑटो-मोबाइल में जबरदस्त परिवर्तन देखने को मिल रहा
है. पिछले कई सालों के सामाजिक, तकनीकी परिवर्तन पर नजर दौड़ाई जाये तो जिस तेजी से
इन दो क्षेत्रों में बदलाव आया है, उतना किसी और क्षेत्र में नहीं आया है.
मोबाइल
को हाथ में लेकर टहलते, दौड़ते, भागते या फिर किसी भी काम को करते-करते बतियाते समय
एक पल को याद आता है एक डोर से बंधा, सीमित दूरी तय करने वाला बेसिक फोन. बेसिक फोन
के साथ याद आता है घंटों नंबर डायल करने के लिए पुराने समय के फोन में लगी रिंग का
घुमाया जाना. इसमें भी बदलाव उस समय हुआ जबकि रिंग की जगह बटनों ने ले ली. फोन में
बदलाव आया मगर नंबर लगने की जटिलता में कमी नहीं आ सकी. इक्का-दुक्का घरों की शान
बने फोन को ललचा कर देखने वालों की संख्या में कमी उस समय आनी शुरू हुई जबकि
गली-गली, कोने-कोने में पीसीओ का खुलना शुरू हो गया.
वह
दौर भी अपने आपमें अलग अनुभव देने वाला रहा है. एक दौर वो था जबकि फोन कॉल की दो
दरें ही काम किया करती थीं. दिन भर फुल चार्ज वाला हिसाब और रात आठ बजे से आधी
दरों पर एसटीडी कॉल की सुविधा. इसी में आगे जाकर अलग-अलग तीन-चार तरह की दरें
निर्धारित की गईं. यही वो दौर था जबकि पीसीओ सुविधा के कारण लोगों से बातचीत करना
सहज होता जा रहा था. पीसीओ में लगी लाइन और लोगों की आँखें कॉल मीटर पर लगी रहतीं.
यदि एक बार में किसी व्यक्ति का नंबर नहीं मिलता और पीसीओ पर भीड़ है तो फिर उस
व्यक्ति को तीन-चार बार ही रीडायल करने की सुविधा भीड़ की सहमति से मिल पाती थी.
तकनीक
में परिवर्तन का दौर आ चुका था. बेसिक टेलीफोन में भी परिवर्तन आना ही आना था. मोबाइल आने के पहले बेसिक टेलीफोन ने अपने बदलाव की आहट को सुन-समझ लिया था. ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि हमें लगता है कि उसी बदलाव ने मोबाइल को जन्म दिया होगा. संभव है कि आप लोग अंदाजा लगा चुके हों, उस बदलाव के बारे में. बेसिक टेलीफोन और मोबाइल के बीच की कड़ी में बेसिक का ही अवतार बनकर उभरा कॉर्डलेस फोन. वैसे यह एक तरह से बेसिक टेलीफोन के उस उपकरण का विकास था किन्तु जिस तरह से उसे लेकर दस-बीस मीटर तक की पहुँच बना ली गई, तारों की बंधी-बंधाई सीमा-रेखा से मुक्ति मिली, उसने निश्चित ही एक बड़ा बदलाव किया होगा. इसी के चलते मोबाइल का जन्म हुआ.
बेसिक फोन में भी परिवर्तन देखने को मिला और वह मोबाइल के रूप में बिना किसी तार के लोगों की जेब तक पहुँच गया. आज के स्मार्ट फोन को अपनी ज़िन्दगी बना चुकी इस पीढ़ी के लिए यह समझना ही कठिन होगा कि कैसे मैसेज टाइप करने के दौरान कुछ अक्षरों को टाइप करने के लिए एक बटन को तीन-तीन, चार-चार बार दबाना होता था. आज लगभग मुफ्त कॉलिंग वाली स्थिति का अनुभव कर रही पीढ़ी के लिए यह सोच पाना भी मुश्किल है कि उस समय जब मोबाइल का जन्म हुआ तो न केवल आउटगोइंग कॉल के लिए पैसे देने पड़ते थे बल्कि इनकमिंग कॉल का भी भुगतान करना पड़ता था. मोबाइल का होना उस समय एक स्टेटस सिम्बल तक बन गया था.
बेसिक फोन में भी परिवर्तन देखने को मिला और वह मोबाइल के रूप में बिना किसी तार के लोगों की जेब तक पहुँच गया. आज के स्मार्ट फोन को अपनी ज़िन्दगी बना चुकी इस पीढ़ी के लिए यह समझना ही कठिन होगा कि कैसे मैसेज टाइप करने के दौरान कुछ अक्षरों को टाइप करने के लिए एक बटन को तीन-तीन, चार-चार बार दबाना होता था. आज लगभग मुफ्त कॉलिंग वाली स्थिति का अनुभव कर रही पीढ़ी के लिए यह सोच पाना भी मुश्किल है कि उस समय जब मोबाइल का जन्म हुआ तो न केवल आउटगोइंग कॉल के लिए पैसे देने पड़ते थे बल्कि इनकमिंग कॉल का भी भुगतान करना पड़ता था. मोबाइल का होना उस समय एक स्टेटस सिम्बल तक बन गया था.
तकनीक
के इस तीव्र विकास में एक गैजेट ऐसा भी आया था जो अपना विकास देख पाने के पहले ही एकदम
से गायब हो गया था. याद आया आपको वह गैजेट? पेजर को भूले नहीं होंगे वे लोग
जिन्होंने उसे देखा, उपयोग किया होगा. स्मार्ट फोन के साथ कुश्ती लड़ती आज की पीढ़ी ने
शायद पेजर नाम सुना भी नहीं होगा. बहरहाल, उस समय जबकि मोबाइल का किसी व्यक्ति के
पास स्टेटस सिम्बल हुआ करता था, तब हमारे एक परिचित अपने परिचितों पर रोब दिखाने
के लिए मोबाइल की जगह पर टीवी का रिमोट कसे रहते थे. याद आ गया होगा, बेल्ट में बंधा
एक कवर और उस कवर में बड़ी हिफाजत से रखा गया मोबाइल. चूँकि इनकमिंग कॉल भी खर्चीली
होती थी, इस कारण न सबको नंबर दिया जाता था, न सबकी बात करवाई जाती थी. सो किसी को
क्या खबर कि कमर में कवर में मोबाइल सुरक्षित रखा हुआ है या फिर टीवी का रिमोट मगर
हमारे उन परिचित ने इसी तरह महीनों अपने परिचितों पर कथित मोबाइल की हनक बनाये
रहे.
आज
के स्मार्ट फोन के साथ एप्प का होना उसकी सजावट बना हुआ है. बहुत हुआ तो कोई अच्छा
सा डिजायनर कवर उसकी शोभा बढ़ाने लगा. इसके उलट कीबोर्ड वाले मोबाइल के दौर में
तमाम सारे साजो-सामान उनको सजाने के लिए आया करते थे. मोबाइल में बाँधने वाली रंग-बिरंगी
डोरी, पारदर्शी कवर, कॉल-मैसेज आने के पहले उनके सिग्नल पाकर चमकने वाले स्टीकर,
गुच्छे आदि मोबाइल को शोभायमान बनाया करते थे. बाद में मोबाइल की कई तरह की
रंग-बिरंगी बॉडी बाजार में आ जाने के बाद मोबाइल का बाहरी आवरण भी बदलने लगा था. उपभोक्ताओं
की मानसिकता, उनकी रुचि के अनुसार मोबाइल कंपनियों ने भी कई तरह के बदलाव अपने
मोबाइल में करना शुरू कर दिए थे. कॉल आने के साथ लाइट का चमकना, कीबोर्ड का रंगीन
बनाया जाना, रंगीन बॉडी का आना, मोबाइल में अलग-अलग तरह की लाइट का लगातार चमकते
रहना आदि उस दौर के मोबाइल को खूबसूरत बनाने में लगे थे.
उन
सादा मोबाइल के साथ-साथ स्लाइडिंग मोबाइल, फोल्ड होने वाले मोबाइल, दो सिम के
मोबाइल का आना भी लोगों को सम्मोहित कर रहे थे. आज बहुतेरे व्यक्ति हजारों-लाखों रुपये
के मोबाइल अपने हाथों में लिए घूमते हैं, स्लिम मोबाइल, घड़ी वाले मोबाइल सहित तमाम
तरह के कीमती मोबाइल बाजार में उपलब्ध हैं मगर वे उस तरह का आकर्षण पैदा नहीं कर पा
रहे हैं, जैसा कि बटन वाले मोबाइल पैदा करते थे.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत सुन्दर आलेख। टेलीफ़ोन और मोबाइल से जुड़ी तमाम बातें और यादें ज़ेहन में घूम गई। एक कॉल के लिए लम्बी क़तार में खड़े होना। मोबाइल पेजर का ज़माना। मोबाइल आया तो चार शब्द एक बटन, फिर भी ढेरों कविताएँ लिख लेती थी और अक्सर मुझसे सारी डिलीट हो जाती थी टचस्क्रीन फ़ोन आया तो मुझसे किसी को भी कॉल हो जाता था। ग़ज़ब ग़ज़ब बदलाव के साक्षी रहे हम। अब की पीढ़ी के लिए हमारी पीढ़ी अजूबा है जिसके समय में न टी वी न कम्प्यूटर न मोबाइल फिर हमलोग ख़ुश कैसे रहते थे।
जवाब देंहटाएंउपयोगी और ज्ञानवर्धक जानकारी।
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