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गलती की क्या सजा हो सकती है? ये गलती पर निर्भर करता है या सजा देने वाले की
मानसिकता पर? अब सजा देने वाले के मन की कोई क्या जाने मगर जहाँ तक हमारी
व्यक्तिगत राय है तो कोई भी सजा उसकी गलती के आधार पर ही निर्धारित होनी चाहिए. ऐसा
इसलिए क्योंकि सजा देने वाले की मानसिकता में परिवर्तन होते रह सकते हैं मगर गलती
एक जैसी ही होगी, वह चाहे किसी भी जगह हो, किसी के साथ हो. गलती कई बार जानबूझ कर
होती है, कई बार अनजाने में हो जाती है. इसके अलावा कई बार गलती करने के पीछे एक
उद्देश्य होता है. यह उद्देश्य दो तरह से हो सकता है, एक सकारात्मक और एक
नकारात्मक. अब आप कहेंगे कि गलती भी की जा रही और वह भी सकारात्मक. जी हाँ, ऐसा
होता है.
सकारात्मक गलतियाँ हम सभी ने की होंगी, आज भी करते होंगे. याद करिए अपने बचपन को. याद आया कुछ, जब आप मित्र-मंडली किसी ऐसे काम को करके आते हैं कि जिस पर कुछ न कुछ सजा मिलनी निश्चित है तब उस समय उस गलती की जिम्मेवारी कोई ऐसा व्यक्ति अपने सिर ले लेता है जो कम से कम सजा का भागी बनेगा. एक घटना अपनी याद आती है, जबकि हम लोग स्कूल में से समोसे खाने के लिए अपने मित्र को बाहर निकालते थे. उस गलती कि क्लास छूट रहा, पकडे गए तो सजा उसी मित्र को मिलेगी, हम सभी मित्र करते थे. वह बालपन की अबोध गलती थी, पता नहीं आज इसे गलती कहा जायेगा या कि कुछ और. बहरहाल, उन दिनों की तरह दिल युवावस्था में भी अबोध बना रहा, गलतियाँ करता रहा.
बचपन की तमाम गलतियाँ भुला दी गईं, उनकी कहीं न कहीं माफ़ी भी मिल गई मगर एक गलती ऐसी हो गई जिसकी माफ़ी मिलती न दिख रही. वह गलती भी सकारात्मक विचार के कारण पैदा हुई. असल में स्वभावगत एक कमी हमारे अन्दर हमेशा से रही है कि दोस्ती में सबकुछ कुर्बान कर देने तक की मंशा रखते हैं. हमारे घरवालों को बहुत बार हमारे इस स्वभाव से बहुत ज्यादा परेशानी होती है. इसके बाद भी न घरवाले अपनी आदत से बाज़ आते हैं और न हम ही अपनी आदत छोड़ पाते हैं. इसी आदत के चलते दो दोस्तों या कहें दोस्तों से ज्यादा वाली स्थिति के बीच समन्वय बनाने बैठ गए. अब बैठे तो बस बैठे ही रह गए. इस समन्वय के बीच ऐसी ग़लतफ़हमी उपजी कि हम आज तक अपराधी बने सजा भुगत रहे हैं.
इस बारे में कहना कुछ नहीं क्योंकि हम मानते हैं कि गलती हमारी है. गलती ये कि दो लोगों के बीच में कभी नहीं आना चाहिए भले ही सबकी आपस में मित्रता है. गलती ये कि कभी भी संबंधों को बचाए रखने का प्रयास नहीं करना चाहिए भले ही सम्बन्ध आपस में ही क्यों न बिखरते हों. गलती ये भी कि कभी ये नहीं समझना चाहिए कि जो आपके करीब है वो आपकी बात को महत्त्व देगा. खुद को हमेशा सबसे अलग हाशिये पर समझना चाहिए और अपने आपको बचाने की कोशिश करनी चाहिए. फ़िलहाल तो सबक मिला है, इस घटना से. आगे अपने स्वभाव को देखते हैं कि नियंत्रण में आता है या नहीं.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
उपयोगी आलेख।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख
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