05 जुलाई 2020

अपनी ज़िन्दगी की उम्र खुद से पूछो

लोग कहते हैं कि ज़िन्दगी बहुत छोटी होती है और हम कहते हैं कि अपने साथ न हों तो ज़िन्दगी बहुत लम्बी हो जाती है. आखिर ज़िन्दगी के बड़े-छोटे होने का पैमाना क्या है? कैसे माना/नापा जायेगा कि किसी कि ज़िन्दगी छोटी है, किसी की ज़िन्दगी बड़ी है. लोगों की उम्र से, लोगों के जिंदा रहने से यदि ज़िन्दगी की उम्र का अंदाज़ा लगाया जाता है तो यह भ्रामक पैमाना है. यदि एक पल को इसी के सन्दर्भ में हम इतिहास पर नजर डालें तो रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, आज़ाद, अशफाक आदि वीरों की ज़िन्दगी बहुत छोटी कही जानी चाहिए. इन लोगों ने तो बहुत कम उम्र इस जहाँ में बिताई है. उम्र के अनुसार बहुत कम दिनों तक इस संसार में रहने के बाद भी आजतक इनके नाम का स्मरण करने वाले लोग मौजूद हैं. आज भी इनके प्रति श्रद्धा रखने वाले लोग हैं.



जहाँ तक हमारा अपना व्यक्तिगत रूप से मानना है कि किसी भी व्यक्ति को ज़िन्दगी देने के पीछे कोई न कोई मकसद काम करता है. उसके ज़िन्दगी जीने का कोई उद्देश्य ही उसे ज़िन्दगी जीने का लिए प्रोत्साहित करती है. किसी न किसी तरह का सपना उसे आगे बढ़ने के लिए विवश करता है. आज के दौर में बहुत से लोग अपने जीवन को सिर्फ अपने परिजनों तक ही केन्द्रित करके रख लेते हैं. आज भी बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके लिए ज़िन्दगी का अर्थ अपने परिवार का भरण-पोषण करना मात्र है. इसे संकुचित सोच कहा जा सकता है. संभव है कि बहुत से लोग इसे अपना दृष्टिकोण न स्वीकारते हों मगर हमारी ये व्यक्तिगत राय है कि यदि व्यक्ति का दायरा किसी भी तरह से सामाजिक नहीं है, यदि उसके आसपास दस-बारह ऐसे मित्रों का समूह नहीं जिनके सामने किसी तरह की लाभ-हानि का कोई अर्थ नहीं तो वह ज़िन्दगी नहीं है.

ज़िन्दगी का अर्थ मात्र साँस लेना नहीं. ज़िन्दगी का अर्थ महज दिल का धड़कना नहीं. ज़िन्दगी का अर्थ महज लम्बी उम्र पा लेना नहीं. इन सबके उलट ज़िन्दगी वह है जो किसी व्यक्ति को सदैव प्रसन्न रखे. उसके सामने किसी भी तरह की स्थिति हो वह उसे परेशान न होने दे. कैसा भी माहौल हो उसे अकेले न रहने दे. आज के व्यावसायिक दौर में ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है. जिनके साथ ऐसी स्थिति है उन्हें आवारा, सड़कछाप, परिवार के प्रतिनकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाला कहा जाने लगता है. आज जैसा माहौल बना हुआ है, एक बार उसका आकलन, उसके सन्दर्भ में अपने आसपास का आकलन करने की आवश्यकता है. क्या वाकई आज के दौर में महज अपने परिवार तक सीमित व्यक्ति खुश है? क्या महज अपने चार-छह लोगों के परिजनों तक सीमित व्यक्ति अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट/प्रसन्न है? सवाल तो बहुत हैं मगर प्रत्येक व्यक्ति आज खुद सवाल अपने आपसे पूछे, अपने आपसे जवाब दे.

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