04 जुलाई 2020

यादों में भटकना और भविष्य की चिंता

पुराने दिनों में कितना लौटा जाये? कितने दिनों तक स्मृति वन में विचरण किया जाये? ये सवाल एक हमारे मन में ही नहीं वरन बहुत से लोगों के मन में भी उठते होंगे. एक समय तक यादों की दुनिया में रहना अच्छा लगता है मगर एक समय बाद यही यादें परेशान भी करती हैं और वापस वर्तमान में जाने को विवश करती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मन में अतीत, वर्तमान और भविष्य लगातार अपनी चहलकदमी करते रहते हैं. एक पल में मन यादों के आँचल में सुख की छाँव में आनंदित होता है कि अगले पल वाल भविष्य की चिंता में डूब जाता है. यहाँ भी वह एक पल को चैन से नहीं रुकता है और एक झटके में वर्तमान में आकर खड़ा हो जाता है.


मन की इस तीव्रतम आवाजाही में दिल की स्थिति बड़ी विकट हो जाती है. वह कहीं भी सुकून से नहीं रह पाता है. यादें उसे सुख भी देती हैं, मुस्कान भी देती हैं तो आँसू भी लाती हैं, दुखी भी करती हैं. यही दिल भविष्य की चिंता में परेशान भी दिखाई देता है. ऐसे में आजकल जबकि बहुतायत लोगों के पास काम की कमी है और समय की अधिकता है तो वे लोग दो ही स्थितियों में विचरण कर रहे हैं. या तो वे यादों के साथ अपना समय बिता रहे हैं या फिर भविष्य में जाकर आने वाले स्थिति का आभास करने में लगे हैं. यह स्थिति न तो सुखद कही जाएगी और न ही संतोषजनक.


यदि गंभीरता से विचार किया जाये तो वर्तमान हालातों में सिर्फ यादों के साये में टहलते रहने से कुछ नहीं होने वाला. यादों की सुखद छाँव का अनुभव करते हुए भविष्य के लिए कुछ नए-नए आयामों पर विचार करना होगा. अभी जो हालात हैं उनको देखते हुए कहा नहीं जा सकता है कि वर्तमान के कौन-कौन से आधार भविष्य की इमारत बनाये जाने योग्य सुरक्षित रहेंगे. अभी तो वर्तमान की नींव ही बहुत सी जगह दरकती दिखाई पड़ रही है. ऐसे में बहुत सारे समय का सदुपयोग किये जाने की आवश्यकता है. वर्तमान की स्थिति का आकलन करते हुए सभी को अपने भविष्य का नया आधार सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जो लोग शासकीय सेवाओं में नियमित वेतन के साथ अपने कार्यों का संपादन कर रहे हैं, वे कम परेशान हैं मगर वे लोग जो निजी सेवाओं में संलग्न हैं, वे लोग जो बहुत छोटे स्तर पर अपना काम कर रहे हैं, ज्यादा परेशान हैं. ऐसे लोगों को अपने व्यापार की स्थिति, उनके नए आयामों के बारे में विचार करने की आवश्यकता है.

समय इस समय भले ही सबके पास खूब है मगर सबके दिल-दिमाग-मन एकसमान स्थिति में स्थिर नहीं हैं. सभी के सामने आजीविका को लेकर, रोजगार को लेकर, परिवार को लेकर, भरण-पोषण को लेकर लगातार संघर्ष की, मंथन की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में भरे पेट वालों के लिए यादों में विचरण करना सहज हो सकता है मगर जिनके सामने भरण-पोषण की असमंजसता है, समस्या है उनके लिए यादों में विचरण करने का सुख लेना सहज नहीं. वे अपने वर्तमान को स्थिर करते हुए भविष्य को मजबूत आधार देने का विचार करने में लगे हैं, उसी की योजना में विचरण कर रहे हैं.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

7 टिप्‍पणियां:

  1. मानव् मन का बहुत ही मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया आपने राजा साहब | सच कहा आपने सौ फीसदी कि हमें बीते कल के साथ ही अब आने वाले कल के लिए भी बहुत कुछ सोचना होगा इस वैश्विक आपदा के बाद | इत्तेफाकन मैंने अभी अभी एक आलेख इसी विषय पर प्रस्तुत और प्रेषित किया है | सामयिक और सार्थक पोस्ट हमेशा की तरह

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'नदी-नाले उफन आये' (चर्चा अंक 3754)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  3. चित्त की चंचलता है या भट्काव....

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  4. इस समय हर कोई चिंतामग्न है। सबकी अपनी अपनी समस्या।

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  5. आज के सौर में स्वाभाविक है की यादों से जीवन नहीं काटने वाला ... ख़ुद को तैयार करना होगा भविष्य के लिए जो कठिन है ... ये अलग बात है की यादें रहेंगी ...

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