03 जुलाई 2020

स्वच्छंद उड़ान के लिए तैयार करना चाहिए बच्चों को

बच्चों के लिए जुलाई का आना पिछले वर्ष तक उत्साह का समय होता था. इस वर्ष गर्मियों की छुट्टियाँ आईं भीं और चली भी गईं मगर छुट्टियों जैसा माहौल न बना सकीं. इन गर्मियों में सभी अपनी-अपनी जगह कैद होकर रहे. न कोई कहीं घूमने जा सका, न बच्चे लोग अपनी दादी-नानी के घर जा सके. इन दिनों में छुट्टियों जैसा माहौल भले ही रहा हो मगर मजा उन छुट्टियों जैसा नहीं आया जैसे कि पिछले साल तक आता रहा. इस बार बीच परीक्षाओं के समय से शैक्षणिक संस्थाओं के बंद होने ने बच्चों को घर की कैद में डाल दिया. इस कैद में वे अपने शौक को पूरा कर सकते थे, उनको विकसित कर सकते थे मगर भविष्य की अंधी दौड़ में दौड़ते अभिभावकों, संस्थाओं के कारण उन बच्चों को भारी-भरकम बोझ का सामना भी करना पड़ा. यह बोझ ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से, बेहिसाब होमवर्क के माध्यम से आता रहा. 

इस आपदा के दौर में जबकि अभी कुछ भी निश्चित नहीं हो पा रहा है, अभी सबकुछ जैसे धुँध में है, अभी हर तरफ अनिश्चितता का दौर बना हुआ है तब भी लोगों में भागमभाग मची दिखती है. अभी भी लोग एकतरफ अपनी जान बचाने की कोशिश में लगे हैं तो कुछ हैं जो इस माहौल में भी कैरियर की चिंता में लगे हैं. समझ से परे है कि ऐसे दौर में भी बच्चे हँसना-खेलना छोड़कर चिंताग्रस्त हैं. समझना होगा कि ये समय सबके लिए एकसमान है. सम्पूर्ण विश्व अभी एक जैसी स्थिति में खड़ा है. जो हाल इस देश के बच्चे की शिक्षा का हो रहा है कमोबेश वैसा ही हाल कहीं विदेश के बच्चों का भी है. सभी जब एक ही पायदान पर हैं तो फिर बजाय चिंता के बच्चों को, उनके अभिभावकों को उनको स्वच्छंद उड़ान के लिए तैयार करना चाहिए.


विगत तीन माह से अधिक के समय ने एक सबक सबको दिखाया ही है, सीखा किसने है ये बात और है कि इंसान के सोचने से कुछ नहीं होना, उसकी भविष्य की बनी योजनाओं का कोई मतलब नहीं, उसके द्वारा बनाये जा रहे तमाम आधारों का कोई आधार नहीं. ऐसे में भी यदि कोई सीख न ले तो वह उसकी बेवकूफी कही जाएगी. सोचिये एक पल को इतनी लम्बी छुट्टियाँ मिलने के बाद कोई कहीं नहीं जा सका. वे परिवार भी जो सप्ताह में दो-तीन दिन मॉल, फिल्म, और बाहर के भोजन में गुजारते थे, वे भी इन दिनों घर के अन्दर बंद रहे. जो ये कहते हुए बहुत ज्यादा गौरवान्वित होते थे कि उनके बच्चे जंक फ़ूड खाए बिना रह ही नहीं पाते, वे भी इस समय दाल-रोटी खाकर दिन बिता रहे हैं. वे जो गर्मियों में बजाय अपने घर के किसी हिल स्टेशन पर रहना पसंद करते थे, वे भी अब इसी गर्मी में अपनी दिनचर्या बिता रहे हैं.

अभिभावकों को समझना चाहिए कि जुलाई भले आ गई है मगर अभी संस्थान बंद हैं, यदि वे अभी इन तीन महीनों में अपने बच्चों को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी, स्वाभिमानी, रचनात्मक, सहयोगी आदि न बना सके हैं, इस बारे में कुछ न सिखा सके हैं तो जुलाई से अपने घर को ही कोई शैक्षणिक संस्थान समझकर उनको यही सिखाने का काम करें. पाठ्यक्रम की पढ़ाई ज़िन्दगी भर होती रहेगी, वे ज़िन्दगी भर करते रहेंगे मगर ज़िन्दगी के लिए जो सीखना है वह इसी दौर में आसानी से समझाया जा सकता है, सिखाया जा सकता है. यही सबकुछ ज़िन्दगी भर काम आएगा, शेष तो समझिये कि नौकर बनाने के लिए, किसी की नौकरी करवाने के लिए ही है.


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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

5 टिप्‍पणियां:

  1. आज के समय की सबसे जरूरी और सचेत करती हुई सार्थक पोस्ट | आज सबका ध्यान बाक़ी साफ तरफ है मगर बच्चों की तरफ नहीं है | ऐसे में जबकि बच्चे अपने स्कूल अपने सहपाठियों ,शिक्षकों से दूर होने को विवश हैं तो ऐसे में बहुत ही आवश्यक है की उन्हें ऐसी रचनात्मकता की और मोड़ा जाए | बहुत सुन्दर पोस्ट और बात राजा साहब

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  2. सुंदर सार्थक पोस्ट और अनुकरणीय संदेश भी
    प्रणाम स्वीकार कीजियेगा

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  3. मुझे तो लगता है कि स्कूली पढ़ाई को लेकर बेवजह अभिभावक परेशान हैं। बच्चे घर में हैं, अपनी मनमर्ज़ी कर लें। जब एकबार सब खुल जाएगा फिर तो पूरी ज़िन्दगी पढ़ाई नौकरी घर और उसकी समस्याएँ। स्कूल से जुड़ा व्यवसाय बंद न हो इसलिए बच्चों को शिक्षक रोज़ दो घंटा आॉनलाइन पढ़ाएँ लेकिन उस पढ़ाई में सामान्य ज्ञान और सामाजिकता का मनोविज्ञान पढ़ाया जाए।

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