आज
ओपीएस भाईसाहब किसी को नहीं रोक रहे होंगे ज़िन्दाबाद कहने पर...
आज
से लगभग तीन दशक पहले ऐसी स्थिति नहीं थी. तब ओपीएस भाईसाहब हम लोगों को रोकते थे अपने
नाम की ज़िन्दाबाद बोलने पर. साइंस कॉलेज, ग्वालियर हॉस्टल का
अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है, उतना ही जगमगाता हुआ वर्तमान भी
है. ये और बात है कि वर्तमान में हॉस्टल संचालित नहीं है मगर इसके आरम्भ होने से लेकर
इसके चलने तक के सभी भाई आज भी एकसूत्र में बंधे हुए हैं.
वो
1990-91 का दौर था जबकि भाईसाहब को NSUI के जिलाध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी गई थी. हम हॉस्टल के सभी भाइयों को कांग्रेस
और भाजपा से मतलब होते हुए भी व्यक्तिगत स्तर पर राजनैतिक दलों से कोई मतलब नहीं था,
आज भी नहीं है. राजनैतिक स्थितियाँ सदैव किसी एक व्यक्ति के पक्ष में
नहीं रहती हैं, कुछ ऐसा ही भाईसाहब के साथ भी था. वे तब माधवराव
सिंधिया जी के बहुत करीब थे और उनका जिलाध्यक्ष बन जाना सिंधिया जी के अन्य बहुत से
करीबियों को पसंद नहीं आया.
बहरहाल,
हम लोगों के लिए यह प्रसन्नता का विषय था कि हमारे बड़े भाई को बड़ी जिम्मेवारी
मिली है. हम सभी तत्परता से उनके साथ लगे हुए थे. उन्हीं दिनों माधवराव सिंधिया जी
का ग्वालियर आना शताब्दी ट्रेन से होता था. हम सभी हॉस्टल के भाई ओपीएस भाईसाहब के
निर्देशन में रेलवे स्टेशन सिंधिया जी के स्वागत में पहुँच जाते.
ट्रेन
आने के बहुत पहले से लेकर ट्रेन आने तक तमाम बड़े-बड़े नेताओं की ज़िन्दाबाद होती रहती.
हॉस्टल में चीखने-चिल्लाने के मामले में एमपीसिंह कुशवाह भाईसाहब और हमारा कोई जोड़
नहीं था. परीक्षाओं में बहुविकल्पीय की नक़ल के लिए बनाये गए रोलनंबर के लिए हम दो लोगों
को कार्य सौंपा जाता था. (इस बारे में बाद में)
रेलवे
स्टेशन पर बहुत सारे बड़े-बड़े नेताओं की ज़िन्दाबाद के बीच हम हॉस्टल के भाई ओपीएस भाईसाहब
का नाम लेकर ज़िन्दाबाद के नारे लगाना शुरू कर देते. हम सभी भाइयों की समवेत आवाज़ इतनी
तेज होती कि पूरा स्टेशन भाईसाहब के नाम से गूँज उठता.
उस
समय भाईसाहब दौड़ते-दौड़ते हम सबको शांत करने की कोशिश करते. चूँकि उनका जिलाध्यक्ष बनना
बहुत से बड़े नेताओं को रास नहीं आ रहा था, वे सब भाईसाहब को हटवाने
के लिए लगे हुए थे. ऐसे में भाईसाहब को डर लगता होगा कि हम भाइयों का उत्साह उनके लिए
नकारात्मक न हो जाये.
ऐसा
कभी नहीं हुआ. ओपीएस भाईसाहब ने जिस तरह धैर्य का परिचय दिया, अपनी लड़ाई को बीच में नहीं छोड़ा, उसका सुफल अब लगभग तीन
दशक बाद उनको मिला. हम सब बहुत प्रसन्न हैं कि ये प्रतिफल अकेला उनका नहीं,
हम भी हॉस्टल भाइयों का है. हम सबने भाईसाहब के संघर्ष को देखा है,
उनकी सक्रियता को देखा है.
आज
रेलवे स्टेशन पर नहीं बल्कि इस सार्वजनिक मंच से चिल्लाकर कहते हैं ओपीएस भदौरिया.....
ज़िन्दाबाद..... भले ही इस आवाज़ में एमपीसिंह भाईसाहब स्वर नदारद है... मगर हम हॉस्टल
के सभी भाई आवाज़ कम न होने देंगे, आज भाईसाहब भी अपनी ज़िन्दाबाद
बोलने के लिए हमें क्या किसी को नहीं रोकेंगे.
हम
सभी भाइयों की तरफ से.... ओपीएस भदौरिया भाईसाहब.... ज़िन्दाबाद.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
समय बदलते देर नहीं लगती है।
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