क्या
हम लोग गाँवों की तरफ लौटना पसंद करेंगे? क्या हम शहर की भौतिकतावादी ज़िन्दगी को
आज तक जीने के बाद अब गाँव में जीवन बिताना स्वीकार करेंगे? ऐसे और भी सवाल उस समय
भी उठे थे जबकि चीनी वायरस कोरोना के चलते लगाये गए लॉकडाउन में मजदूरों की,
श्रमिकों की वापसी गाँव के लिए हुई थी. इस तरह के सवाल उस समय भी हमारे मन में
उभरे थे जबकि पिताजी के देहांत के पश्चात् गाँव के पैतृक घर की स्थिति देखी थी. उस
घर के आँगन में, छत पर, चौक पर, वहाँ की छोटी सी फुलवारी में हमने अपना बचपन
बिताया है, गर्मियों की छुट्टियाँ बिताई हैं इस कारण तो उस घर, आँगन से लगाव होना
स्वाभाविक ही है. इसके साथ-साथ उस मकान से अपने पुरखों की तमाम स्मृतियों को जुड़े
हुए देखा है, उनकी कहानियों को सुना है, उस घर के अनेक किस्सों को सुना है इसके
चलते भी उस जगह से लगाव होना सहज है.
बाबा
जी के देहांत के पश्चात् गाँव के घर में जाना-रहना एकाधिक बार ही हुआ. उनके बाद
कभी-कभार ही जाना होता रहा. धीरे-धीरे यह आना-जाना भी बंद सा हो गया. गाँव के मकान
की तरफ विचार इसलिए भी नहीं आया क्योंकि अभी वह पिताजी की देखरेख में था. उस घर
में बाद में रहने का मौका भले ही न मिला हो मगर हमेशा एक सपना मन के कोने में कहीं
दुबका बैठा रहता. सोचते थे कि ज़िन्दगी के एक पड़ाव पर आने के बाद पुरखों की उस
विरासत पर बहुत भव्य इमारत बनवाई जाएगी. एक निश्चित समय तक कुछ न कुछ करने के बाद
सारी आपाधापी से दूर उसी की छाँव में रहा जायेगा. चूँकि घर का पैतृक मकान बहुत बड़ा
है, इसलिए यह भी विचार आता था कि उस मकान के एक हिस्से में गाँव के बच्चों के लिए
विद्यालय खुलवा दिया जायेगा.
कालांतर
में स्थितियाँ बदलती रहीं मगर मन के कोने में सजा वह सपना ज्यों का त्यों बना हुआ
है. अब जबकि परिवार की नई पीढ़ी (हमारी और हमारे बाद वाली) में से किसी का गाँव आना
या कहें कि वापस लौटना असंभव है. सभी भाई अपने-अपने कार्यों, रोजगार के कारण घर से
बहुत दूर हैं. ऐसे में संभव है कि आने वाले समय में पैतृक घर-जमीन को निकालने की
सहज, समवेत स्वीकृति बन जाये. हमारा सपना भी पूरा होगा या नहीं यह अभी कहा नहीं जा
सकता है क्योंकि परिस्थितियाँ जिस तेजी से इस वर्ष बदलीं हैं, आने वाले समय में
उनका क्या स्वरूप होगा इसका आकलन नहीं किया जा सकता. ऐसा नहीं कि गाँव में रहना आज
के समय में मुश्किल हो गया है. आज भी हमारे परिचित में अनेक लोग ऐसे हैं जिन्होंने
बहुत सुख-सुविधाओं भरा जीवन बड़े-बड़े शहरों में व्यतीत करने के बाद वृद्धावस्था में
गाँव में निवास करना ही पसंद किया.
आने
वाले समय के बारे में अभी से कुछ कहना संभव नहीं. भविष्य की किसी योजना के फलीभूत
होने के बारे में अभी से कोई भविष्यवाणी नहीं. इसके बाद भी पैतृक घर में गाँव के
बच्चों के लिए स्कूल खोलने का सपना किसी न किसी हाल में पूरा करने का प्रयास किया
जायेगा. उस जमीन पर जहाँ कभी हमारे पुरखों की उपस्थिति रही हो, जिस जगह का अपना
इतिहास रहा हो उस जगह पर भव्य इमारत न बने मगर एक छोटी झोपड़ी बनाने का सपना पूरा
करने का प्रयास होगा. भले ही उसमें स्थायी रूप से निवास करने का अवसर न मिले मगर
क्षणिक रूप से वहाँ कुछ पल गुजार कर बीते दिनों का अनुभव लेने का प्रयास किया जायेगा.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
गाँव का माहौल भले ही बहुत बदल गया हो मगर वहाँ की आवोहवा हमेशा बुलाती है। गाँव में वापसी और मन की इच्छा पूरी हो शुभकामना है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंईश्वर आपकी कामना पूर्ण करें।
सुन्दर लेख अपनी ख्वाहिश को पूरा कीजिए
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