29 जून 2020

एकाकी होता जाता इंसान

चीनी वायरस कोरोना के कारण जन-जीवन अस्तव्यस्त होता नजर आ रहा है. लॉकडाउन के चार चरणों के बाद जब देश में अनलॉक की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो भी लोगों में एक तरह का डर बैठा हुआ है. ये और बात है कि बहुत से लोग इस डर का प्रदर्शन कर दे रहे हैं और बहुत से इसे छिपाने में सफल हो जा रहे हैं. कोरोना संकट के इन दिनों में व्यक्ति अपने परिजनों के साथ बना हुआ है. पिछले दो-तीन महीनों में उसके द्वारा अपने आपको व्यस्त रखने के कई उपाय किये गए. नए-नए कामों से लोगों को परिचित करवाया गया. इसके बाद भी बहुत से व्यक्ति अब इस सबसे ऊबन महसूस करने लगे हैं. रोज की एक बंधी-बंधाई सी दिनचर्या को बिताते-बिताते लोगों में आलस्य, ऊबन आना स्वाभाविक है.



असल में इन्सान अपने जीवन की आपाधापी में इस कदर खो गया था कि उसे अपना वर्तमान दिखाई देना बंद हो गया था. वर्तमान को पूरी तरह नजरंदाज करके वो सिर्फ और सिर्फ भविष्य को सुखमय बनाने के लिए भागा जा रहा था. उसके कामों से लोग अपने भविष्य को कितना सुरक्षित रख पाये हैं, ये तो इसी कोरोना काल में समझ आ गया है. भविष्य को लेकर सबके सब आज भी, अभी भी नितांत अनिश्चय में हैं. कितनी बड़ी विडम्बना है कि आज व्यक्ति घर-परिवार के बीच भी अकेला महसूस कर रहा है. विश्वग्राम की परिभाषा के बाद भी वह एकाकी दिख रहा है. लोगों में एक तरह की शून्यता भर गई है. इसका एक कारण खुद को किसी भी कला से न जोड़ पाना भी है. इस शून्यता में उन्हें व्यक्ति की कला उसके बाहरी आवरण, बाहर चकाचौंध से प्रभावित करती है, शेष दशा में कला उनके लिए क्षणिक मनोरंजन का माध्यम मात्र होती है.


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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

2 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ से परिचय कराता लेख

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  2. असल में इन्सान अपने जीवन की आपाधापी में इस कदर खो गया था कि उसे अपना वर्तमान दिखाई देना बंद हो गया था. वर्तमान को पूरी तरह नजरंदाज करके वो सिर्फ और सिर्फ भविष्य को सुखमय बनाने के लिए भागा जा रहा था. उसके कामों से लोग अपने भविष्य को कितना सुरक्षित रख पाये हैं, ये तो इसी कोरोना काल में समझ आ गया है. भविष्य को लेकर सबके सब आज भी, अभी भी नितांत अनिश्चय में हैं. कितनी बड़ी विडम्बना है कि आज व्यक्ति घर-परिवार के बीच भी अकेला महसूस कर रहा है.

    यथार्थ की तस्वीर को उजागर करती है आपकी ये पोस्ट ,सब उकताने लगे
    है अब

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