26 मई 2020

गर्मी के दिनों का वो शीतल एहसास

गर्मी अब अपना असर दिखाने लगी है. इधर एक-दो दिन से नौतपा भी आरम्भ हो गए हैं. यह एक खगोलीय घटना है जो ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ होती है. इस वर्ष यह घटना 25 मई से आरम्भ हुई जबकि सूर्य का प्रवेश कृतिका से रोहिणी नक्षत्र में होगा. खगोल विज्ञान के अनुसार इस दौरान धरती पर सूर्य की किरणें सीधी लम्बवत पड़ती हैं. जिस कारण तापमान अधिक बढ़ जाता है. बुन्देलखण्ड में तो तापमान का वैसे भी चरम स्थिति पर पहुँच जाता है. इस बार गर्मी नौतपा से कुछ दिन पहले से ही अपना असर दिखाने लगी.


गर्मी के दिन शुरू होते ही याद आने लगते हैं वे दिन जबकि घर में न कूलर हुआ करता था. एसी जैसी कोई चीज भी होती है, तब कल्पना में भी नहीं था ऐसा कुछ. उन दिनों आज की तरह घरों में घुसे रहने का चलन भी नहीं था. हाँ, इसे चलन ही कहा जायेगा क्योंकि आज बार-बार कहने के बाद भी घर के लोग ही छतों पर जाना पसंद नहीं करते हैं. उन दिनों शाम का बेसब्री से इंतजार हुआ करता था. दिन भर की गर्मी से बचते हुए शाम के आते ही छतों को पानी से नहला दिया जाता था. उनकी दिन भर की गर्माहट शांत होते ही छत हम सबके लिए बिस्तर भी बनती, खाने की मेज भी बनती, पढ़ने की मेज भी बनती. और तो और बच्चों के लिए खेल का मैदान भी बन जाती थी. रात में पड़ोस के सभी परिवारों का छत पर जुटना, अपनी-अपनी छत पर रहने के बाद भी एकसाथ भोजन करने का एक पारिवारिक एहसास स्वतः ही बन जाता था. किसी के घर से सूखी सब्जी, किसी की छत से अचार का आना, किसी की छत तक आम का पना पहुँच जाना ऐसे होता था जैसे सभी डायनिंग टेबल पर एकसाथ बैठे हों.


ऐसा नहीं कि रात ही ऐसे हँसते-खेलते कटती थी. दोपहर भी बड़ी सुखद लगती थी. आज के जैसी गर्मी तो नहीं होती थी मगर इतनी अवश्य होती थी कि गर्मी समझ आये. तब घर में कूलर नहीं हुआ करता था. खिड़कियों, दरवाजों पर खस की टटियाँ लग जाया करती थीं. कुछ-कुछ समयांतराल में उनको पानी से भिगाना पड़ता था. भीगने के कारण उनसे छनकर आती हवा ठंडक के साथ सुगंध का एहसास भी करवाती थी. पूरा कमरा सुगन्धित ठंडक से भरा रहता था. हम भाइयों के बीच कई बार उसमें पानी के छिड़काव के लिए लड़ाई भी हो जाया करती थी. गर्मी के उन दिनों में हम लोगों के लिए यही एक खेल हुआ करता था.

अब कूलर, एसी की आदत पड़ी हुई है लोगों में. ऐसे में खश के परदे भी यदा-कदा देखने को मिलते हैं. पिछली बार कोई चार-पाँच साल पहले दोपहर में एक व्यक्ति की आवाज़ ने चौंका दिया. वह खस की टटियाँ बनाता था. उसी से परदे की तरह से कुछ बनवा लिए गए थे. जिनके द्वारा कुछ साल उसी खुशबू का, उसी ठंडक का एहसास फिर किया गया. अब फिर इंतजार है. हो सकता है फिर कोई आये और खस की उसी सुहानी खुशबू भरी ठंडक से भर जाए. इंतजार उस रात का भी है जबकि मोहल्ले भर के लोग फिर एकसाथ मिल बाँट कर भोजन कर रहे होंगे.

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