साइंस
कालेज, ग्वालियर में बी०एस-सी० में प्रवेश के बाद हॉस्टल में
हमारे रहने की व्यवस्था की गई। हॉस्टल के नाम से उस समय पूरे शरीर में सिरहन सी दौड़
जाती थी। डर लगा रहता था रैगिंग का। घर में किसी से यह कहने का साहस नहीं हो पा रहा
था कि हम हॉस्टल में नहीं रहेंगे। मरता क्या न करता की स्थिति में हमने हॉस्टल में
प्रवेश किया। पहले दिन हमें छोड़ने हमारे पिताजी और चाचाजी आये। पिताजी और चाचाजी ने
हमारे आने से पहले ही सीनियर्स (यहाँ यह स्पष्ट कर दें कि हमारे हॉस्टल में
सीनियर, जूनियर जैसी कोई शब्दावली आपस में चलन में नहीं थी, आज भी नहीं है. हम सभी
भाई के रिश्ते से उस समय बंध जाते थे, आज तक बंधे हैं.) से मुलाकात कर ली थी क्योंकि
घर के लोग भी रैगिंग के नाम से परेशान हो रहे थे? उस समय
मिले चंदेल भाईसाहब लोगों ने उनको आश्वस्त किया कि यहाँ रैगिंग के नाम पर ऐसा वैसा
कुछ भी नहीं होता है। हॉस्टल गेट पर सबसे पहले हमारी मुलाक़ात अनुराग से हुई,
उसने भी बी०एस-सी० प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था।
हॉस्टल
में दो-तीन दिन अच्छी तरह से कटे। लगभग हर शाम को सभी लोग छत पर या बाहर लॉन में एकत्र
होते और हँसी-मजाक चलता रहता। इसी बीच थोड़ी बहुत रैगिंग भी होती रहती पर मारपीट से
कोसों दूर। हाँ, उन दो-चार लोगों को अवश्य ही दो-चार हाथ पड़े
जिन्होंने अपने बड़े भाइयों के साथ बदतमीजी की।
एक
रात लगभग दस साढ़े दस बजे होंगे, हॉस्टल के गेट पर दो-तीन मोटरसाइकिल
और स्कूटर रुकने की आवाजें सुनाईं दीं। थोड़ी देर की शांति के बाद हमारे हॉस्टल के चौकीदार,
जिसे हम लोग उनकी उम्र के कारण बाबा कहते थे, ने
आकर मैस में पहुँचने को कहा। अब तो डर के मारे हालत खराब क्योंकि ऐसा सुन रखा था कि
किसी दिन वरिष्ठ भाईसाहब लोग रात को आते हैं और उसी समय जबरदस्त रैंगिंग होती है यहाँ
तक कि मारपीट भी। डरते-डरते डाइनिंग हॉल में पहुँचे, वहाँ तमाम
बड़े भाई पहले से ही मौजूद थे। उन सभी छात्रों को जो हॉस्टल में पहली बार प्रवेश लिए
थे, उन्हें दीवार से सट कर खड़े होने को कहा गया। ऐसे छात्रों
में बी०एस-सी० प्रथम वर्ष के अलावा दूसरे और तीसरे वर्ष के छात्र तो थे ही साथ में
एम०एस-सी० के छात्र भी थे। हाल के बीचों-बीच पड़ी मेज के एक ओर हॉस्टल में रह रहे
बड़े भाई बैठे हुए थे, उन्हीं के साथ वे पुराने भाईसाहब लोग भी
बैठे हुए थे, जो कुछ देर पहले आये थे.
सबसे
पहले हम सबका परिचय उन लोगों से करवाया गया, कोई राजनीति कर रहा
था तो कोई ठेकेदारी। कोई कहीं नौकरी में था तो कोई अपना कारोबार कर रहा था। सबका परिचय
जानने के बाद हम लोगों का परिचय शुरू हुआ। सभी का परिचय हो जाने के बाद शुरू हुआ रैगिंग
का सिलसिला। रैगिंग के नाम पर सभी को कुछ न कुछ करके दिखाना था। किसी को नाचना पड़ा
तो किसी को गाना था। किसी को लड़की बनके किसी लड़के के सामने प्यार का इजहार करना था
तो किसी को पंखे का अपना दुश्मन मानकर गालियाँ सुनानी थीं। किसी दूसरे को ऐसा करते
देख मजा आता किन्तु हँस भी नहीं सकते थे क्योंकि हँसे तो बनाया गया मुर्गा। जिसका भय
था वह नहीं हुआ यानि कि मारपीट लेकिन खड़े-खड़े पैरों की हालत खस्ता हुई जा रही थी। किसी
लड़के के कुछ न कर पाने पर, किसी के द्वारा कुछ न बता पाने पर
पता चला कि सभी को हाथ उठाकर खड़ा करने की सजा मिली। अब खड़े हैं आधा घंटे तक हाथ ऊपर
किये। इस बीच सभी बड़े भाई उठकर चाय पीने चले गये और कह भी गये कि हम चाय पीने जा रहे
हैं तब तक जैसे हो वैसे ही बने रहना। कोई मुरगा बना था, कोई एक
पैर पर खड़ा था, किसी को हाथ उठाने की सजा तो कोई किसी और रूप
में सजा काट रहा था। समय गुजरता जा रहा था और भाईसाहब लोग थे कि आने का नाम ही नहीं
ले रहे थे। लगभग डेढ घंटे के बाद उन लोगों का आना हुआ।
आने
के बाद सभी की सजा समाप्त हुई। उन सभी बड़े भाइयों ने हम सभी को कुछ टिप्स दिये कि कैसे
मिलजुल कर रहना है। बताया कि प्रत्येक को अपने से बड़े का सम्मान करना है। सभी की मदद
करनी है, यह भी बताया कि घर से दूर होने के कारण हम सभी को घर
की तरह से रहना है। इन सबके बीच समय खिसकते-खिसकते सुबह के पाँच बजने तक पहुँच
गया. भाईसाहब चलने को हुए और अपने साथ हम सभी को चलने को कहा. हम सभी हँसी-मजाक के
माहौल में उनके साथ रेलवे स्टेशन तक गये. वहाँ पहुँच कर एक रेस्टोरेंट में हम सभी
ने बढ़िया चाय-नाश्ता किया। रात भर की थकान, रैगिंग का डर तब तक
निकल चुका था।
इसके
बाद भी हॉस्टल में रैगिंग हुई मगर चुहल भरी। हाँ, मारपीट की घटना
भी किसी दो-चार के साथ ही हुई, वो भी एक-दो झापड़ों तक की.
ऐसा भी तभी हुआ जबकि अगले ने कोई बदतमीजी की. आज भी हॉस्टल की वो आत्मीयता भरी रैगिंग
बहुत याद आती है।
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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