15 फ़रवरी 2020

कांग्रेस की टीम बी है आआपा?

दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों के आने के बाद खूब बमचक मची हुई है. कोई कुछ कह रहा है, कोई कुछ बता रहा है. कुछ लोगों को यह सुनकर बुरा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी को हमने कांग्रेस की टीम बी कह दिया. यह सही है. इसे एकबारगी चुनाव में मिले मतों के आधार पर खुद ही देख लीजिये. बहुत सी बातों का जवाब चुनाव परिणामों में ही छिपा हुआ था, जिसे देखकर भी इसलिए अनदेखा कर दिया गया क्योंकि भाजपा-विरोधी मानसिकता के आगे और कुछ देखना ही नहीं था. जिस सच को देखकर भी अनदेखा किया गया यदि वह सामने लाया जाता तो आआपा के कार्यों को आधार मिलना मुश्किल होता.

2013 के चुनाव परिणामों के मुकाबले आआपा को 2015 में सभी सत्तर सीटों पर अधिक मत प्राप्त हुए. यह महज संयोग नहीं कहा जायेगा कि कांग्रेस ने 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2015 के चुनावों में दो सीटों, मंगोल पूरी और मतिया महल को छोड़ शेष 68 सीटों पर बहुत ही कम मत प्राप्त किये. यहाँ कांग्रेस के मतों का कम होना उतना आश्चर्यचकित नहीं करता जितना इस बात के लिए करता है कि बहुत से सीटों पर यह कमी दो से पाँच गुनी तक रही है. यदि इस आँकड़े के परिदृश्य में भाजपा की सीटें देखें तो भाजपा ने महज 17 सीटों पर 2013 के मुकाबले 2015 में कम मत हासिल किये अर्थात उसे 53 सीटों पर पिछले चुनाव के मुकाबले अधिक मत मिले. इनमें कुछ सीटों पर यह अंतर सौ मतों से भी कम का रहा. क्या इसे महज एक संयोग कहकर अनदेखा किया जा सकता है?


इस तरह के मतों को देखकर विश्लेषण करने वाला, सांख्यिकी सम्बन्धी आँकड़ों से खेलने वाला कोई भी विद्यार्थी प्रथम दृष्टया ही बता सकता है कि ये पूरा खेल मत-स्थानांतरण का है. कोई भी साधारण से साधारण विश्लेषक इसे खेल कहने का दुस्साहस कर सकेगा क्योंकि ये मामला 2015 विधानसभा चुनाव तक ही सीमित नहीं रहा. भाजपा या कहें कि मोदी विरोधियों ने अपने कदम से और मतदाताओं के रुझान से इसका एहसास कर लिया कि आआपा को अन्ना आन्दोलन के समय मिले समर्थन और उसके बाद 2015 में मतों के ट्रांसफर से भाजपा विरोध में कांग्रेस का विकल्प अथवा उसकी टीम बी बनाया जा सकता है. इसी कारण से दिल्ली में मोदी विरोध में, भाजपा विरोध में सभी दल किसी न किसी रूप में एकजुट बने रहे. इन दलों ने खुलकर मोदी का विरोध किया, भाजपा का विरोध किया मगर आपस में एक-दूसरे का विरोध करने से बचते रहे.  

परदे के पीछे चलने वाले खेल में कमी नहीं आई बल्कि उसे और मजबूती प्रदान की जाने लगी. इसमें केन्द्र सरकार के निर्णयों को आधार बनाकर अनावश्यक विरोध बनाये रखा गया. समूची दिल्ली में केन्द्र सरकार के विरोध के बहाने मोदी को हराने की कोशिशें चलती रहीं. आम आदमी पार्टी के कामों को खूब बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाने लगा. चुनावों में स्थिति कुछ और ही बनती, यदि परदे के पीछे की सांठ-गांठ जमीन पर न उतरती. मतदाता किसी न किसी रूप में भाजपा के पक्ष में अपना मन बना चुके थे मगर शाहीन बाग का विरोध कहीं न कहीं मतदाताओं को भाजपा के, मोदी के खिलाफ करने की साजिश रचता नजर आया. इन सबके बाद भी विधानसभा 2020 के चुनावों में आम आदमी पार्टी जीतने के बाद भी अपना पिछला कारनामा करने में असफल रही. 2015 के चुनाव के मुकाबले इस बार वह मात्र 35 पर ही ज्यादा मत प्राप्त कर सकी. भाजपा को 2015 के मुकाबले  57 सीटों पर अधिक मत प्राप्त हुए. कांग्रेस ने कुल 06 सीटों पर अधिक मत प्राप्त किये. इसे भी संयोग कहकर टाला नहीं जा सकता कि 70 सीटों की विधानसभा में कांग्रेस को मात्र 08 सीटों पर पाँच अंकों में मत प्राप्त हुए, उनमें भी महज तीन सीटों में वह बीस हजार या उसके आसपास में सिमट गई. ये और बात है कि भाजपा इसके बाद भी महज आठ सीटों पर ही विजय हासिल कर सकी.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें