31 दिसंबर 2019

आँखों की बारिश को आसमानी बारिश के आँचल में छिपा लौट आए


वो आज की ही तारीख थी, 31 दिसम्बर. तैयारियाँ ख़ुशी की स्थिति में चल रही थीं और उसी समय दुखद खबर का आना हुआ. जहाँ जाना था, जाना उसी दिशा में हुआ; उसी मंजिल को हुआ मगर अब जाते समय मन की स्थिति अलग थी. सबकुछ समझने के बाद भी न समझने जैसी स्थिति बनी हुई थी. हाथ से निकल चुकी स्थिति के बाद भी सबकुछ अपने हाथों से ही संभालने वाली स्थिति बनानी थी. एक पल में, एक फोन कॉल में सारी की सारी स्थिति बदल गई. रास्ते भर माहौल को हल्का बनाये रखने का प्रयास रहा मगर वातावरण स्वतः ही बोझिल हो जाता. मित्र सुभाष का आना हुआ रात की सर्दी की आवारगी करने के मूड के साथ और जाना हुआ एक बोझिल माहौल को जबरन खुशनुमा बनाये रखने की मानसिकता के साथ. परिवार के एक व्यक्ति के हमेशा-हमेशा के लिए चले जाने की खबर को बीमारी में बदलने की स्थिति को बनाये रखना आवश्यक भी था. इसी स्थिति को बनाये रखने की कठिनता के साथ काली रात को तय किया जा रहा था. 

31 दिसम्बर की रात थी. सामाजिकता के चलते और दुनिया भर में मनाई जाती परम्परा के कारण रास्ते में लोगों के शुभकामना सन्देश आते रहे, फोन भी आते रहे. खुद को नियंत्रित करते हुए सबके साथ तादाम्य बनाने का प्रयास किया जाता रहा. अगला दिन जैसे खुद भी भाव व्हिवल था. एक जनवरी की ठण्ड भरी सुबह और घर का माहौल भी परिजन के अचानक चले जाने से एकदम सर्द बना हुआ था. उसी सर्द माहौल में प्रकृति भी खुद पर नियंत्रण नहीं रख पा रही थी. परिजनों की आँखों से बारिश हो रही थी तो आसमान लगातार बारिश करने में लगा हुआ था. झमाझम बारिश के बीच अंतिम यात्रा शुरू हुई. अंतिम विदाई की उस संवेदनात्मक, भावनात्मक घड़ी में बारिश के बीच आँखों की बारिश और खुद को संयत करते हुए अपने परिवार के एक और परिजन का अचानक चले जाना आहत किये हुए था. हमारे श्वसुर साहब का अचानक चले जाना सबको हतप्रभ कर गया था. दोपहर ही बात हुई और उन्हीं से हुई इसके बाद उनके चले जाने की सूचना. जैसा कि घर का माहौल बना हुआ था, जैसा कि अपने पिता से एक संस्कारित रिश्ता बना हुआ था कुछ वैसा ही अपने श्वसुर साहब से भी था. आने-जाने के दौरान चंद शब्दों की बातचीत ही हुआ करती थी. जितना उनके द्वारा पूछा-बताया गया, उतना ही वार्तालाप हुआ. बहुत लम्बा समय भी उनके साथ नहीं बिताया गया था मगर संस्कारों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं के द्वारा उनके साथ एक रिश्ता तो बना ही था. परिवार में एक बड़े व्यक्ति के होने का भाव बना हुआ था. वह भाव, वह स्थान अब रिक्त सा लग रहा था.

फिलहाल, ईश्वरीय सत्ता के सामने किसी की चली नहीं है सो सब कुछ स्वीकारते हुए अंतिम नमन करके, अंतिम विदाई देकर हम सब वापस लौट आये. आँखों की बारिश को, आसमानी बारिश के आँचल में छिपा कर खाली हाथ लौट आये. 

आज, 31 दिसम्बर को पुण्यतिथि पर सादर नमन.

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