26 दिसंबर 2019

इस नहीं दिखे सूर्यग्रहण से उस दिखे सूर्यग्रहण तक

आज 26 दिसम्बर को वर्ष 2019 का अंतिम सूर्यग्रहण हुआ. जबसे इस बारे में जानकारी हुई, उसी समय से कैमरा, मोबाइल,चश्मे आदि दुरुस्त करके रख लिए थे. सीधे-सीधे सूर्यग्रहण देखने की मनाही थी, इस बारे में समझाया भी जा रहा था मगर मन में था कि कम से कम कैमरे के द्वारा उस पल को कैद अवश्य कर लेंगे. इधर कुछ दिनों से पड़ती जबरदस्त ठण्ड और शीत लहर की परवाह किये बिना सुबह से सूर्यग्रहण से परिचित होने के लिए तैयार बैठे थे. कैमरा, मोबाइल, लेंस, चश्मा आदि भी हमारा साथ देने को तैयार थे. छत पर चढ़े तो बस मौसम ही साथ देने के मूड में नहीं था. जैसी की सम्भावना व्यक्त की गई थी कि इस तरफ पूर्ण सूर्यग्रहण जैसा कुछ नहीं दिखेगा मगर मन में था कि कुछ न कुछ तो अवश्य ही दिखेगा. इस कुछ न कुछ दिखने की जगह कुछ भी न दिखने वाली स्थिति सामने आ गई. सूर्यग्रहण तो अलग रहा सूर्य ही नहीं दिखाई दे रहा था. आसमान को बादलों ने, हलके-फुलके कोहरे ने इस तरह अपने आगोश में ले रखा था कि कहीं से भी सूर्य की एक झलक भी दिखाई नहीं दे रही थी. कहीं से भी सूर्य की रौशनी का कोई एक अंश भी नहीं दिखाई दे रहा था न ही उसका आभास हो रहा था. 

26-12-2019 के आसमान में खेलते पक्षी 

छत पर अपने कैमरा लटकाए मौसम की कलाकारियाँ, चिड़ियों की चहल-पहल को कैद करने लगे और इसके साथ ही याद आने लगा वर्ष 1995 का अक्टूबर माह में पड़ा खग्रास सूर्यग्रहण. दीपावली या शायद उसके बाद का दिन था. उरई में चाचा-चाची लोग भी मौजूद थे. सभी भाई-बहिन भी धमाचौकड़ी के साथ उपस्थित थे. हम सभी बच्चों को बड़ों की तरफ से ख़ास हिदायत दे रखी गई थी कि कोई भी छत पर नहीं जायेगा. कोई भी सूर्यग्रहण नहीं देखेगा. आँखों के नुकसान, रौशनी चले जाने जैसी स्थितियों से डराया भी जा रहा था. इन सब धमकियों, डरावने माहौल के बीच हमने अपने मित्र अश्विनी से एक दिन पहले ही पूरी योजना बना रखी थी.


सूर्यग्रहण वाला दिन आया. सुबह-सुबह की गुलाबी सी ठंडक मौसम को ठंडा बनाये ही थी, हम अपनी योजना के क्रियान्वित करने की राह देख रहे थे. सभी लोग टीवी के सामने जमे बैठे थे. हम बच्चे भी टीवी पर सूर्यग्रहण की तमाम स्थितियों को गौर से देखने का मन बनाये बैठ चुके थे. इधर हमारा मन टीवी के बजाय छत की तरफ लगा हुआ था. घर में हमारे सबसे बड़े होने के चलते सारे छोटे भाई-बहिन हमारे कदम की प्रतीक्षा करने में लगे थे. खबरों से इतनी जानकारी थी कि खग्रास सूर्यग्रहण होना है, किसी डायमंड रिंग जैसी स्थिति भी बननी है. हम किसी भी कीमत पर इस स्थिति को देखने से नहीं चूकना चाहते थे. अपने मित्र के साथ बनाई योजना में तमाम सारे काले चश्मे इकठ्ठा कर लिए गए थे. एक्स-रे प्लेट की कई-कई परतों वाले अनेक चश्मे (सभी बच्चों और बड़ों के हिसाब से) तैयार करके पहले से रख लिए थे. हमें अंदाजा था कि एक बार भले ही डांट पड़ जाये मगर अपनी आँखों से साक्षात् पूर्ण सूर्यग्रहण देखने का मोह कोई न छोड़ सकेगा.

कुछ ऐसी बनी थी उस दिन भी डायमंड रिंग

उधर टीवी में जैसे ही सूर्यग्रहण आरम्भ होने की स्थिति बनती दिखी, हमने सभी भाई-बहिनों को इशारा किया और अपने दोस्त के साथ चुपचाप छत पर सरक गए. आँखों में स्व-निर्मित चश्मे चढ़ा कर उस स्थिति को देखा तो आश्चर्य में डूब गए. सुबह की चमक एकदम से गायब हो गई. आसमान में कुछ तारे भी चमकने लगे. घरों के आसपास और घरों में घोंसले बनाये पंछी अचानक अँधेरा होने से अजीब सी चहचहाहट के साथ उड़ान भरने लगे. हम बच्चे शोरगुल के साथ सूर्यग्रहण का आनन्द ले रहे थे. हमने सभी को पहले से ही सचेत कर दिया था कि कोई भी दो-चार सेकेण्ड से ज्यादा एक बार में सूरज की तरफ नहीं देखेगा. हम सबका शोर सुनकर घर के सभी बड़े लोग भी छत पर आ गए. आसपास के घरों से भी कुछ लोग छत पर आकर सूर्यग्रहण का नजारा देखने लगे. डायमंड रिंग का बनना अपने आपमें अद्भुत था. चंद मिनट के इस अलौकिक नज़ारे को देखने के बाद जैसा कि सोचा था हलकी सी डांट हमारी ही पड़ी मगर सबने बाद में हमारे कदम के लिए यह भी माना कि इसी के चलते यह दृश्य बजे टीवी के साक्षात् देखने को मिला.

1995 के बाद से तमाम बार सूर्यग्रहण देखने का अवसर मिला पर उस दिन जैसा दृश्य देखने को नहीं मिला. उस समय आज की तरह हर हाथ में मोबाइल कैमरे भी नहीं हुआ करते थे सो उस समय की खुद की खींची कोई फोटो भी नहीं है मगर वो दृश्य आज भी ज्यों का त्यों दिल-दिमाग में बना है. आज यही सोचा था कि जैसा भी दृश्य होगा बिटिया रानी को दिखाया जायेगा मगर आसमान के बादलों ने ऐसा न होने दिया. अगली बार सही, हाँ, इस न दिखे सूर्यग्रहण ने उस दिखाई दिए सूर्यग्रहण तक अवश्य पहुँचा दिया.




1 टिप्पणी:

  1. हमारे यहाँ आसमान काफ़ी कुछ साफ़ था। पुरानी तकनीक एक्सरे फ़िल्म लगा कर वलयाकार सूर्य भगवान का नज़ारा किया। पोस्ट में बजे टी वी के पहले समय गायब है।

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