13 दिसंबर 2019

पत्र सहेजे हैं भावनाओं का ख़जाना


कब किस बात पर मन ख़राब हो जाये, कब अचानक से बिना बात ही मूड उखड़ा-उखड़ा सा लगने लगे, कब अकारण ही कुछ अच्छा-अच्छा सा न लगे कहा नहीं जा सकता. इधर कुछ ऐसा ही चल रहा पिछले कई दिनों से. ऐसा नहीं कि कोई समस्या है, ऐसा भी नहीं कि किसी तरह की परेशानी है, ऐसा भी नहीं कि किसी संकट से गुजर रहे हैं मगर इसके बाद भी कुछ ऐसा है जो सही नहीं लग रहा. मन में अजीब तरह की बेचैनी है. दिल कुछ करने का होता है और फिर अगले ही पल लगता है कि न, ऐसा न किया जाये. कई बार मन होता है कि कैमरा उठाकर इधर-उधर की फोटो खींच ली जाएँ मगर अगले ही पल लगता है कि एक ही जगह की कितनी-कितनी बार फोटो निकाली जाएगी. कभी अचानक से बैठे-बैठे मन करता है कि ड्राइंग ही कर ली जाये, स्केचिंग कर ली जाये फिर मन इस तरफ भी नहीं लगता है. ऐसा अचानक से क्यों होता है, कहा नहीं जा सकता है.


मन की अपनी ही दुनिया है. कब बिगड़ जाये, कब संभल जाये पता नहीं. किस चीज से मन को बुरा लगने लगे और किस चीज से मन को ख़ुशी मिल जाये ये खुद को भी नहीं पता होता है. इसके बाद भी मन को खुश रखने का कोई न कोई उपाय सभी के पास होता है, सो हमारे पास भी है. वैसे तो हम जितनी देर जागते हैं, उतनी देर गीत-संगीत का माहौल आसपास बनाये रखते हैं. रेडियो पर, लैपटॉप पर, मोबाइल पर पुराने गाने, ग़ज़ल आदि बजते ही रहते हैं. मन को खुश रखने का हमारे पास सबसे आसान रास्ता यही है. इसके लिए किसी तरह का कार्य करने की आवश्यकता नहीं होती है. शांति से जिस पर मर्जी हो गाने चला दीजिये और चुपचाप आँख बंद करके बैठे-लेते रहिये. अपनी मनमर्जी के गीत-ग़ज़ल सुनकर जरा देर में सारा तनाव दूर हो जाता है. संगीत को ऐसे ही तनावमुक्त रहने का साधन नहीं माना गया है. ऐसे ही गीत-संगीत को हमारी संस्कृति में स्थान नहीं दिया गया है.

गीत-संगीत के अलावा एक और ऐसी दुनिया है जो हमें तनावमुक्त रखती है. आज की पीढ़ी के लिए इस दुनिया को समझना मुश्किल है. आज के तकनीकी भरे दौर में बहुतेरे लोग इस दुनिया से दूर होते चले जा रहे हैं. यह दुनिया है पत्रों की दुनिया. आज की पीढ़ी के लिए यह आश्चर्य का विषय हो सकता है कि पत्रों की भी कोई दुनिया होती होगी या होती है? इक्कीसवीं सदी के आरम्भ होने के पहले तक हो ऐसी दुनिया का अपना ही जलवा था. कागज-कलम के सहारे मन की, दिल की भावनाओं को उतार कर अपने प्रिय लोगों को पहुँचाया जाता था. पत्र का लिख कर भेजना और फिर उसके अगले दिन से ही उसके जवाब के आने का इंतजार करना. निश्चित समय पर आने वाले डाकिये की आहट को सुनना, अपने ही पत्र के होने की जिज्ञासा का समाधान करना. अपने प्रिय का पत्र न आने पर दुःख जैसी स्थिति का बनना और अपना पत्र मिलते ही ख़ुशी से ऐसे चहकना जैसे कि आसमान को अपनी मुट्ठी में कर लिया हो.

मन जब भी कुछ असहज स्थिति में होता है, अपने आपमें कुछ अकेलापन सा महसूस होता है, अपने प्रियजनों से दूरी का एहसास होता है तो यही पत्र हमारे साथी बनते हैं. आज भी हमारे पास हमारे बहुत से प्रियजनों के अनेक पत्र सुरक्षित रखे हुए हैं. ये हमारे उस दौर के साथ हैं जबकि आज के जैसी तीव्रतम संचार क्रांति नहीं हुई थी. ये हमारे दौर की उन भावनाओं को अपने आपमें संरक्षित किये हुए हैं जो आज की तरह एक क्लिक पर डिलीट नहीं होती. अपने प्रियजनों के इन संग्रहीत पत्रों की दुनिया में विचरण करते ही ऐसा लगता है मानो उन्हीं से बातचीत हो रही है, जैसे कि वे हमारे सामने बैठे हों. मन की दुविधा, मन का एकाकीपन जैसे हवा हो जाता है. खुद के बारे में ऐसा तो नहीं कहेंगे कि दूरदृष्टि रखते हैं मगर संभवतः दिल-दिमाग को ऐसा आभास रहा होगा कि आने वाला समय तकनीक का है, आभासी दुनिया का है जहाँ संबंधों, भावनाओं की स्थिति चंद पंक्तियों में सिमट जाएगी जो कब एक ऊँगली की गलती से गायब हो जाये, कह नहीं सकते. इसी आभास के कारण ही बहुत से पत्र आज भी हमारे पास सुरक्षित हैं. ये पत्र हमें उन अपने लोगों से कहीं न कहीं मुलाकात करवा देते हैं जो अब न तो हमारे पास हैं या फिर हमसे दूर हैं. पत्रों के इस भावनात्मक साथ को शायद ही आज की पीढ़ी समझ सके.


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