सोशल
मीडिया पर पुलिस-वकील झड़प के कई वीडियो देखने को मिले. वकीलों का जिस तरह का
आक्रोशित स्वरूप दिखा वह अकल्पनीय नहीं कहा जायेगा. ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है
जबकि वकीलों और पुलिस में झड़प हुई हो और वकीलों ने कानून को अपने हाथों में लेकर
पुलिस वालों के साथ मारपीट की हो. ऐसा वकीलों द्वारा कई बार होता रहा है. ऐसा नहीं
है कि पुलिस भी ऐसे मामलों में दूध की धुली हो. उसके द्वारा भी अपनी वर्दी का
अहंकार समय-समय पर जनता पर निकलता ही रहता है. इसी अहंकार में कई बार वकील भी
चपेटे में आ जाते हैं. असल में दोनों ही अपनी-अपनी वर्दी में कानून का साथ लिए घूमते
हैं. एक को अपने आपमें ये अहंकार है कि किसी भी मामले की शिकायत के लिए उसी के पास
आया जायेगा. ठीक इसी तरह दूसरे पक्ष को भी इसका अहंकार है कि मामला तो उसी के
क्षेत्र में आकर निपटेगा. ऐसी स्थिति में दोनों पक्ष खुद को कानून का पालन करवाने
वाले या उसका अमल करवाने नहीं बल्कि खुद को कानून समझते हैं.
हालिया
जिस झड़प की चर्चा चारों तरफ फैली है, उसके मूल में पार्किंग है. एक कार को
पार्किंग में खड़े करने को लेकर शुरू हुई बहस इस तरह रास्ता पकड़ लेगी, इसका अंदाजा
तो उन दोनों को नहीं होगा. एक कार की पार्किंग में काले कोट और खाकी वर्दी की बहद
ने देशव्यापी विवाद खड़ा करवा दिया. यहाँ इस घटना से स्पष्ट है कि जब अधिकारों का,
शक्ति का आधिक्य व्यक्ति के पास हो जाता है तो वह संतुलन बना पाने में कामयाब नहीं
रहता है. देखा जाये तो शक्ति का, कानून का, अधिकारों का आधिक्य पुलिस, वकील दोनों
के पास है. दोनों ही किसी रूप में खुद को किसी से कम मानने को तैयार नहीं रहते.
ऐसे में इस तरह के उपद्रव आम बात हैं. आज जबकि समाज में किसी भी रूप में शक्ति
प्रदर्शन का, सत्ता की सामर्थ्य का, खुद के बाहुबल का प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण बनता
जा रहा है वैसे में खुद को कानून से ऊपर मान बैठना न तो पुलिस के लिए मुश्किल है,
न ही वकीलों के लिए. ऐसे में दोनों पक्षों का टकराना और आपस में लात-जूता करना सहज
प्रक्रिया है. यहाँ इस सन्दर्भ में याद रखना चाहिए कि एक ही क्षेत्र से संदर्भित
बार-बेंच विवाद को निपटाने की सलाह लगातार दी जाती रहती है मगर शायद ही कहीं ये
विवाद सुलझता दिखता हो. ऐसे में पुलिस और वकील दो अलग-अलग क्षेत्र हैं, दो अलग-अलग
विधान हैं तब उनमें विवाद का न दिखना अपने आपमें आश्चर्य ही कहा जायेगा.
बहरहाल,
पुलिस जनता की रक्षा के लिए है, कानून को अमली जामा पहनाने के लिए है, कानूनी
प्रक्रिया का पालन करवाने के लिए है. इसी तरह वकील उसी कानून की सही व्याख्या करने
के लिए, कानून के सही प्रयोग के द्वारा निर्दोष को सजा-मुक्त करवाने और दोषी को
सजा दिलवाने के लिए है. इसके बाद भी दोनों पक्ष अपने आपको ही कानून मान बैठते हैं.
पुलिस का जनता के साथ किया जाने वाला व्यवहार स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वे खुद
को क्या समझते हैं और उनकी निगाह में जनता की कीमत क्या है. सीधी सी बात है जब तक
ये दोनों पक्ष खुद को कानून मान कर चलते रहेंगे या फिर खुद को कानून से ऊपर मानते
रहेंगे तब तक ऐसी घटनाएँ सामने आती रहेंगी. कभी वकील पुलिस पर हावी रहेंगे, कभी
पुलिस वकील पर हावी रहेगी. इन सबसे अलग सबसे बड़ा सत्य यह है कि इन दोनों के बीच
भले ही कोई विवाद न हो मगर ये दोनों हमेशा ही आम जनता पर भारी पड़ते रहेंगे. उस पर
कानूनी दांव-पेंच चलाते रहेंगे.
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