01 नवंबर 2019

अनाज बैंक खुद को समाज से जोड़ने की पहल है


ये विचार करना और लाना अपने आपमें ही बहुत मुश्किल होता है कि कोई व्यक्ति कैसे सैकड़ों व्यक्तियों के भोजन की व्यवस्था अपनी आय से करता होगा. ये अपने आपमें सोच पाना भी दुष्कर है कि कोई व्यक्ति अपनी पूरी मासिक आय को बच्चों के पालन-पोषण में व्यय कर देता है. ये शायद आपकी कल्पना के बाहर हो कि कोई व्यक्ति सात सौ से अधिक बच्चों का पिता हो, वो भी आधिकारिक रूप से दस्तावेजों में. पर ऐसा सब कुछ सत्य है और इसी दुनिया में सत्य है, आज के घनघोर कहे जाने वाले कलियुग में सत्य है. बीएचयू के नाम से वैश्विक ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय के इतिहार विभाग के प्राध्यापक डॉ० राजीव श्रीवास्तव ऐसा ही काम कर रहे हैं. उनके द्वारा विगत लगभग तीस वर्षों से सामाजिक कार्यों का लेखा-जोखा यहाँ एक पोस्ट में नहीं दिया जा सकता मगर उनके बारे में इतना समझा जा सकता है कि उस एक व्यक्ति ने पिछले तीन दशकों में सामाजिक सेवा में अलग मानक स्थापित किये हैं. उन्हें समझने के लिए, जानने के लिए वाराणसी के इन्द्रेश नगर में जाना होगा, जहा सुभाष भवन आप सबकी वाट जोह रहा है.



बहरहाल, यदि राजीव जी के बारे में लिखने बैठे तो न तो समय शेष रहेगा न इस पोस्ट में जगह, सो जिस उद्देश्य के लिए आज की पोस्ट लेकर आये हैं, उसे साकार किया जाये. आज की पोस्ट का मंतव्य था राजीव जी के कार्यों से प्रेरित होकर किस तरह उरई में अनाज बैंक का शुभारम्भ किया गया और उसके द्वारा लगभग एक सैकड़ा महिलाओं को सहायता उपलब्ध करवाई गई. उरई के सनातन धर्म महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ० अमिता सिंह के परिवार में कुछ ऐसा घटित हुआ कि उन्होंने अपने सामाजिक कार्यों को, अपने पारिवारिक दायरे को और विस्तार देने का विचार किया. उनकी छोटी बहिन के असामयिक निधन के पश्चात् चंद दिनों तक वे संभवतः ऊहापोह की स्थिति में रही किन्तु कालांतर में अपने परिवार की सामाजिक प्रस्तिथि को देखते हुए वे अपने मूल स्वरूप में लौट आईं. डॉ० अमिता सिंह का परिवार लम्बे समय से किसी न किसी रूप में सामाजिक कार्यों के साथ जुड़ा हुआ था. पारिवारिक आधार पर उनके लिए अनाज बैंक की ईमारत को खड़ा करना सहज लगा. इसी सोच के साथ वे अनाज बैंक की एक शाखा उरई में संचालित करने में सफल रहीं. डॉ० अमिता सिंह के द्वारा उरई में अनाज बैंक की महज शाखा ही स्थापित न हुई वरन बुन्देलखण्ड जैसे क्षेत्र में भूख से लड़ने का एक आन्दोलन भी आरम्भ हुआ. इस आन्दोलन ने न केवल जालौन में बल्कि सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड में भूख के खिलाफ एक अभियान आरम्भ हुआ. इसी का परिणाम रहा कि बुन्देलखण्ड के पहले अनाज बैंक की स्थापना हुई उरई में, अनाज बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय के रूप में. 



अनाज बैंक, उरई की स्थापना के बाद से अद्यतन उसके उद्देश्य ‘कोई भी भूखा न सोये’ को वरीयता दी गई. समाज से जुड़े लोगों के किसी भी तरह के पारिवारिक आयोजनों में अनाज बैंक की लाभार्थी महिलाओं को जोड़ा गया, उन्हें एक परिवार की तरह मानते-स्वीकारते हुए धार्मिक आयोजनों में, पारिवारिक आयोजनों  में सहभागी बनाया गया. महिलाओं को सामान्य दिनों में अनाज वितरण के साथ-साथ धार्मिक आयोजनों में, विशेष पर्वों-त्योहारों में अतिरिक्त खाद्य-पदार्थों की व्यवस्था अनाज बैंक, उरई शाखा द्वारा की गई. महिलाओ की चिकित्सा, उनके आर्थिक सशक्तिकरण की व्यवस्था, बालिकाओं की शिक्षा आदि के सम्बन्ध में भी उरई शाखा द्वारा प्रयास किये जाते रहे. विगत दो वर्षों में एक सैकड़ा से अधिक महिलाएँ लाभान्वित रहीं, साथ ही उनमें से अधिसंख्यक महिलाओं को रोजगार की उपलब्धता भी करवाई गई. आज एक नवम्बर को अनाज बैंक, उरई के दो वर्ष पूरे होने पर तथा दीदी अनिला राणावत की पुण्यतिथि के तीन साल हो जाने पर लाभार्थी महिलाओं को अनाज वितरण के साथ-साथ भोजन भी करवाया गया. इसके पीछे महज यही सोच थी कि समूचा समाज एक परिवार है. ऐसे में किसी एक सदस्य के जाने के साथ-साथ अनेक सदस्यों का जुड़ना होता है. शायद अनिला दीदी के प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि उन्होंने अपने स्वरूप में अनेक महिलाओं को हम सभो से जोड़ दिया.

आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको सादर श्रद्धांजलि.





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें