कुछ
पुराने मित्रों को याद किया और कुछ नए मित्रों की सुध ली. इस बार का दशहरा,
दीपावली कुछ खाली-खाली सी नजर आई. इसके पार्श्व में कतिपय घटनाक्रमों का भी होना
रहा मगर उससे ज्यादा लोगों का अब सोशल मीडिया के द्वारा त्योहारों को मना लेना भी
रहा. हमारे परिवार सहित कुछ मित्रों के परिवारों में इन त्योहारों के दौरान दुखद
घटनाओं का घटित होना रहा, जिसके चलते वे पूरे उत्साह के साथ इन त्योहारों में शामिल
न हो सके, खुद हमारे साथ भी ऐसी मनःस्थिति रही. इसके बाद भी देखने में आया है कि
अब त्योहारों का मनाया जाना सोशल मीडिया पर होने लगा है.
इस
बार दशहरा पर कुछ इसी तरह की स्थिति रही. विजयादशमी की शुभकामनायें देने वाले लगभग
पांच सौ से अधिक सन्देश दिन भर मोबाइल की घंटी बजाते रहे मगर देर रात तक कोई एक
व्यक्ति भी मिलने न आया. चूँकि पिताजी और हम तीन भाइयों की दोस्ती, उनके संबंधों
का निर्वहन इस समय हम अकेले करने में लगे हैं. ऐसे में त्यौहार के मुख्य दिवस पर
कोशिश यही रहती है कि घर पर रहा जाये, जिससे कि किसी भी मिलने आने वाले को निराश न
लौटना पड़े. विगत वर्षों के अनुभव को देखते हुए इस बार विजयादशमी पर मात्र बीस पान
लगवा कर लाये थे. आश्चर्य की बात कहें या कि दुखद स्थिति कि सभी बीस के बीस पान हम
परिवार वालों ने ही ख़त्म किये. अपने आपमें बहुत दुखद महसूस हुआ साथ ही अपमानजनक भी
कि पूरे दिन में सैकड़ों सन्देश पाने वाले व्यक्ति के पास एक व्यक्ति मिलने न आया.
ऐसी
स्थिति कोई एक हमारे साथ नहीं है बल्कि हमारे लगभग सभी मित्रों के साथ यही स्थिति
देखने को मिलती है. सोशल मीडिया का संबंधों पर हावी होना स्पष्ट रूप से दिखाई देता
है. अब मिलने-मिलाने के बजाय लोगों का सम्बन्ध मोबाइल पर ही हो जाता है. त्योहारों
का आना-जाना मोबाइल की स्क्रीन पर सिमट गया है. ऐसे में स्पष्ट है कि आपसी संबंधों
में वह ऊष्मता नहीं रह जाएगी जो कभी हुआ करती थी. ऐसे में जिन्होंने पुराने दौर को
देखा और महसूस किया है उनके सामने असमंजस है. ऐसे लोगों के सामने समाज का खालीपन
भी है. ऐसे लोगों में एक हम ही नहीं हमारे तमाम मित्र भी हैं. लगता है जैसे अब
अपने हाथ में कुछ नहीं. वर्तमान को रोना-कोसना और अतीत को याद करते रहना ही रह गया
है. समझ नहीं आ रहा कि सुगम होते जा रहे सोशल मीडिया ने संबंधों को, रिश्तों को
किस कदर ख़त्म किया है, जटिल किया है.
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