28 अक्तूबर 2019

विश्वास को अविश्वास में बदलने से रोकें


विश्वास और अविश्वास के बीच एक अक्षर का अंतर है मगर दोनों की प्रकृति में जमीन आसमान का अंतर है. विश्वास के द्वारा व्यक्ति अपनी प्रस्थिति को मजबूत बना पाता है वहीं अविश्वास के कारण उसके व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. विश्वास और अविश्वास के बीच के बारीक अंतर को किसी व्यक्ति के सन्दर्भ में उसके साथ के लोगों द्वारा सहजता से जाना-समझा जा सकता है. वर्षों के सम्बन्ध, वर्षों का विश्वास एक झटके में अविश्वास में बदल जाता है. सोचने-समझने वाली बात यह है कि आखिर किसी का विश्वास क्यों और कैसे अविश्वास में बदल जाता है? क्यों वर्षों से चले आ रहे विश्वासपूर्ण संबंधों में अचानक अविश्वास का जहर घुल जाता है? संबंधों का, रिश्तों का विश्वासपूर्ण स्थितियों से अविश्वासपूर्ण स्थितियों में बदलने के अपने-अपने कारण हो सकते हैं. इसके बाद भी कहा जा सकता है कि जिस व्यक्ति के साथ वर्षों से विश्वास भरे सम्बन्ध रहे हों, उसके साथ अविश्वास जैसी स्थिति का बनना पूर्व की स्थितियों पर सवालिया निशान लगाना होता है. क्या अभी तक चले आ रहे सम्बन्ध किसी स्वार्थ में लिप्त थे? क्यों अभी तक व्यक्ति के विश्वास पर अविश्वास ने अपना साया न डाला था?

सामाजिक स्थिति में संबंधों का बनाया जाना आसान है मगर संबंधों का निर्वहन कठिन होता है, कुछ उसी तरह से विश्वास का बनाया जाना सरल भले होता है मगर उसका चिरकाल तक अविश्वसनीय बने रहना बहुत कठिन कार्य होता है. ऐसा आज के दौर में और भी कठिन होता जा रहा है जबकि जरा-जरा सी बात पर संबंधों में दरार आने लगी है. छोटी-छोटी बातें बड़े-बड़े रिश्तों, संबंधों के समाप्ति का कारण बनने लगी हैं. ऐसे में समझना मुश्किल होता है कि कब कौन किसका उपयोग कर रहा है, कब कौन किसके साथ संबंधों का निर्वहन कर रहा है. संबंधों के प्रति यही असमंजस की स्थिति ही अविश्वास को जन्म देती है. ऐसे में आवश्यक है कि किसी के बीच के संबंधों में जितना आवश्यक अपनेपन का होना है, उतना ही आवश्यक विश्वास का निष्कलंक होना भी है. इसमें भी ये और भी महत्त्वपूर्ण है कि संबंधों के आपसी निर्वहन, समन्वय का स्तर क्या है. यदि दो लोगों के बीच किसी भी तरह का स्वार्थ काम करता है तो उनके बीच किसी न किसी दिन संबंधों में अविश्वास आ ही जाता है. आज जबकि संबंधों में किसी न किसी स्तर पर स्वार्थ का समावेश होने लगा है, तब अविश्वास का जन्म होना स्वाभाविक है.

विश्वास को अविश्वास में बदलने से रोकने के लिए सबसे पहले संबंधों, रिश्तों को स्वार्थमय होने से रोकना होगा. इनका स्वार्थपूर्ण होने ने ही बहुत सारी समस्याओं को जन्म दिया है.

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