समय जब साथ नहीं होता है तो कुछ भी सही से नहीं चलता है. न सामान्य से काम सहज लगते हैं और न ही असामान्य काम करने की हिम्मत होती है. इस काम न करने की मानसिकता का असर ये रहा कि विगत कई दिनों से कोई पोस्ट लिखने का भी मन नहीं किया. इस बारे में एक तो कुछ अच्छा न लगना रहा साथ ही लैपटॉप का ख़राब होना भी रहा. लैपटॉप लेने के बारे में विगत कुछ माह से विचार चल रहा है मगर उस पर अंतिम मुहर न लग सकी है. इधर अपने अभिन्न मित्रों से लगातार मुलाकात होती रही, चर्चा होती रही जो इसी व्यापार से जुड़े हुए हैं. लैपटॉप या अन्य कोई सामान लेने पर उनकी राय को वरीयता दी जाती है. इधर देखने में आया कि बाजार जैसे खामोश है. बहुतेरे लोग इसका कारण मंदी को बता सकते हैं, केंद्र सरकार की नीतियों को बता सकते हैं मगर असलियत इससे कुछ अलग ही है. पिछले कुछ सालों से जिस तरह से ऑनलाइन मार्केटिंग की तरफ लोगों का बढ़ना हुआ है, ऑनलाइन मार्केटिंग से जुड़ी बहुत सी कंपनियों के लुभावने और सस्ते ऑफर लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने में लगे हैं. जिस तरह की और जितनी योजनायें इनके द्वारा चलाई जा रही हैं, उतनी किसी भी दुकानदार के द्वारा, किसी भी व्यापारी के द्वारा नहीं चलाई जा सकती हैं. ऐसे में स्पष्ट है कि आम नागरिक जो एक-एक पैसे को बचाने में विश्वास करता है, वह ऑनलाइन मार्केटिंग की तरफ ही दौड़ेगा. ऐसे में इन व्यापारियों का, दुकानदारों का घाटे में चले जाना, दिन भर बिना किसी व्यापार के बैठे रहना स्वाभाविक है.
ऐसे में सरकार को चाहिए कि कुछ कदम इन व्यापारियों के, दुकानदारों के हितार्थ भी उठाये. ध्यान रखना चाहिए कि भारत का बाजार अभी ऐसा नहीं है कि यहाँ सभी काम ऑनलाइन मार्केटिंग के द्वारा चलते रहें. आज भले ही बाजार में गलाकाट प्रतियोगिता सहजता से चलती दिख रही हो, उसमें किसी को कुछ गलत न दिख रहा हो मगर ऐसा मानवीय मूल्यों के पक्ष में नहीं है. दुकानदार, व्यापारी किसी भी प्रतियोगिता में भले हो मगर वह पहले एक आम नागरिक है. उसे भी व्यापार करने का, अपनी आजीविका चलाने का पूरा अधिकार है. यहाँ सरकारों को ध्यान देना चाहिए कि यदि किसी भी तरह से इनका शोषण हो रहा है तो उसे रोका जाये. अब इसे सरकार तय करे कि कैसे इस देश में एकसाथ ऑनलाइन मार्केटिंग और बाजार के दुकानदार-व्यापारी अपने-अपने हितों का संरक्षण कर सकें.
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