समाज
आधुनिकता की बात करने में लगा है, उसके द्वारा स्त्री-पुरुष समानता की बात की जा
रही है, चंद्रमा पर आदमी के उतरने की आहटें सुनाई दे रही हों तब चंद्रमा के द्वारा
किसी इन्सान की लम्बी उम्र की कामना किया जाना एक प्रक्रिया को हास्यास्पद बनाता
ही है. सबसे पहले तो यह स्पष्ट कर दिया जाये कि इस आलेख का उद्देश्य किसी भी रूप
में किसी की भावनाओं से, किसी की परंपरा से, किसी की श्रद्धा से खिलवाड़ करना नहीं
है. इसके द्वारा स्वयं अपने आपके तमाम सवालों के जवाब प्राप्ति का रास्ता तलाशना
है. प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में व्यक्तियों के पास खुद को प्रफुल्ल्ति रखने के,
लोगों से मेल-मिलाप बढ़ाने के तरीकों में पर्व-त्यौहार आदि ही हुआ करते थे. इनके
माध्यम से वह मेले, प्रदर्शनी आदि का आयोजन भी कर लिया करता था. जैसा कि कतिपय
कारणोंवश समाज में पर्दा प्रथा का आरम्भ हुआ, महिलाओं का घर के अन्दर रहना जैसे
अनिवार्य हो गया वैसे में उनके लिए ख़ुशी पाने का रास्ता त्योहारों, पर्वों, मेलों
आदि से ही गुजरता था.
ऐसे
में उनके द्वारा ही एक त्यौहार करवाचौथ के रूप में भी सामने आया होगा. इसे भी पति
की लम्बी उम्र से जोड़ने के भी अपने सामाजिक कारण रहे होंगे. यह हम सभी को
भली-भांति ज्ञात है कि समाज में आज भी विधवाओं के प्रति सोच में सकारात्मकता उस
स्तर तक नहीं आ सकी जिस स्तर तक समाज विकास कर चुका है. ऐसे में सोचा जा सकता है
कि दसियों साल पहले विधवाओं के प्रति किस तरह की मानसिकता समाज में व्याप्त रही
होगी. उस समय जबकि विज्ञान ने आम जनमानस के बीच अपनी पैठ नहीं बनाई होगी, तकनीक ने
अपनी स्थिति स्पष्ट न की होगी तब समाज में भगवान ही सबका पालनहार, तारणहार हुआ
करता था. ऐसे में किसी भी महिला के लिए अपनी स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए
आवश्यक था कि उसके पति की आयु लम्बी रहे. ऐसे में उसके सामने भगवान् ही एकमात्र सहारा
रहा होगा. उसके द्वारा इसी कारण सामाजिक मान्यताओं के अधीन बने करवाचौथ को सहज
स्वीकार कर लिया होगा.
आज
जबकि चंद्रमा के बारे में स्थिति सबके सामने है, किसी भी ग्रह, उपग्रह के द्वारा
किसी भी व्यक्ति की उम्र बढ़ने की असलियत के बारे में भी सबको जानकारी है तब
करवाचौथ मनाये जाने की स्थितियां पहले से कहीं अधिक भिन्न हैं. आज आधुनिकता के दौर
में न केवल त्यौहार-पर्व आधुनिक हुए हैं वरन परम्पराओं-संस्कृतियों ने भी आधुनिकता
का चोला ओढ़ लिया है. आज करवाचौथ का सामान्य सा सन्दर्भ पति की लम्बी उम्र से बहुत
कम लोग ही लगाया करते होंगे. आज करवाचौथ का सन्दर्भ एक त्यौहार के आयोजन सा है. इस
आयोजन में आधुनिक पति भी उसी तरह से अपनी पत्नी का सहयोग करते हैं, जैसी कि
स्त्री-पुरुष समानता के विचार में अपेक्षा की जाती है. आज के दौर में इस पर्व का सन्दर्भ
सजने-संवरने से, खरीददारी करने से, दाम्पत्य संबंधों की मधुरता से संदर्भित करके
देखा जाने लगा है. सभी को ज्ञात है कि उम्र बढ़ने के लिए संयमित जीवन-शैली,
नियंत्रित खानपान, उचित देखभाल की आवश्यकता है न कि किसी व्रत की.
आज
के दौर में जैसा कि देखने में आता है कि व्यक्ति आधुनिकता की आपाधापी से ऊब कर अब
पुनः प्राचीन मान्यताओं की तरफ, प्राचीन जीवन-शैली की तरफ, उसी रहन-सहन की तरफ
आकर्षित हो रहा है. कुछ इसी तरह का बदलाव अब नई पीढी में देखने को मिल रहा है.
नव-युगलों को हनीमून के नाम पर भले ही अपने शहर से कोसों दूर विचरण करते देखा जाता
हो मगर नव-युवतियों में मांग भरने, मंगलसूत्र पहनने, कलाई भर-भर चूड़ियाँ पहनने का
चलन सामान्य रूप से देखने को मिल रहा है. कपड़ों के नाम पर भले ही उनके साथ
आधुनिकता हो मगर इस तरह के श्रृंगार में अभी भी पारम्परिकता देखने को मिल रही है.
इसे भी नई पीढ़ी का पारंपरिक फैशन कहा जा सकता है.
कुछ
इसी तरह से ही करवाचौथ के व्रत को लिया जाना चाहिए. यह किसी भी व्यक्ति के लिए
उसका नितांत व्यक्तिगत मामला है. इसे न तो जबरिया मनवाया जाना चाहिए और न ही मनाये
जाने वालों की भावनाओं का मजाक बनाया जाना चाहिए. करवाचौथ का मनाया जाना अथवा न
मनाया जाना किसी भी रूप में स्त्री-विमर्श से संदर्भित नहीं किया जाना चाहिए. इसे
किसी भी महिला का व्यक्तिगत रुचि का मामला समझकर उसी पर छोड़ देना चाहिए. आज भी
समाज में लाखों महिलाएँ ऐसी हैं जिन्होंने पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत को मनाया
मगर आज वैधव्य को भोग रही हैं. बहुत सी महिलाएँ ऐसी होंगी जो आये दिन अपने पति के
हाथों प्रताड़ना का शिकार होती होंगी मगर फिर भी उसकी लम्बी आयु के लिए इस व्रत को
रखती होंगी. तमाम महिलाएँ ऐसी होंगी जो बिना ऐसे किसी व्रत के बहुत ही हंसी-ख़ुशी
से अपने दाम्पत्य जीवन का सुख भोग रही हैं. ऐसे में करवाचौथ व्रत को नितांत
व्यक्तिगत मसला समझकर उन्हीं पर छोड़ दिया जाना चाहिए. ये किसी भी महिला के या कहें
कि दंपत्ति के प्रसन्न रहने के, ख़ुशी तलाशने के अपने रास्ते हैं, जहाँ जबरन
हस्तक्षेप करने का किसी को कोई अधिकार नहीं.
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