07 अक्तूबर 2019

तनाव मुक्त वातावरण का निर्माण हो पहले


पिछले दिनों वर्तमान परिदृश्य में तनाव मुक्त शिक्षा विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में सहभागिता करने का अवसर मिला. ऐसे विषय जो किसी न किसी रूप में मनोविज्ञान से जुड़े होते हैं, उन पर चर्चा करना, उनका अध्ययन करना शुरू से हमें पसंद आता रहा है. महाविद्यालय के विद्यार्थियों के बीच इस विषय पर अपनी बात रखनी थी. बच्चों ने अपनी बातें रखीं, तनाव से सम्बंधित, शिक्षा से सम्बंधित, परीक्षाओं से सम्बंधित अनेक बिन्दुओं पर अपने विचार रखे. तनाव मुक्त शिक्षा की प्राप्ति कैसे हो, तनाव से कैसे बचा जाए इस पर भी उनके द्वारा सुझाव दिए गए. कार्यक्रम में अपने स्तर से संक्षिप्त समय में जितना संभव हो सकता था, बच्चों को बताया, समझाया.


इस बिंदु ‘तनाव मुक्त शिक्षा’ पर हमारा अलग तरह से सोचना है. असल में शिक्षा तनाव भरी नहीं है बल्कि उसके आसपास का माहौल तनाव भरा है. शिक्षा तो आज भी उसी तरह से लोगों को ज्ञान देने का काम कर रही है जैसे कि सदियों पहले करती थी. इधर यदि अन्तर आया है तो महज इसका कि अब शिक्षा लेने वाले पहले दिन से ही दिमाग में नौकरी का कीड़ा घूमने लगता है. किसी भी संस्थान में प्रवेश लेने के पहले दिन से ही सारा ध्यान इसी पर रहता है कि कैसे इस कोर्स के करने के बाद नौकरी मिले. दिमाग में पढ़ाई के साथ-साथ यही उथल-पुथल मची रहती है कि इस कोर्स को करने से कोई लाभ है या नहीं. इसमें कितने नंबर लाये जा सकते हैं. कोर्स समाप्त होने के बाद नौकरी मिलेगी या नहीं. इस कोर्स की फीस के रूप में लगाया गया धन कहीं बर्बाद तो न हो जायेगा. ऐसे सवालों के बीच जाहिर है कि तनाव होगा ही और ऐसे तनाव में न तो पढ़ाई संभव है और न ही परीक्षा. साफ़ सी बात है कि इससे परीक्षा परिणाम पर नकारात्मक असर पड़ता है. इसी नकारात्मकता के चलते कई बार विद्यार्थियों द्वारा गलत कदम उठा लिए जाते हैं. 


यहाँ सोचना होगा कि हमें तनाव मुक्त शिक्षा से ज्यादा तनाव मुक्त माहौल बनाने की आवश्यकता है. एक बात सच है कि परीक्षा का, पढ़ाई का तनाव तो रहता ही रहता है. लाख कोशिशों के बाद भी लगभग सभी विद्यार्थियों को परीक्षाओं के समय तनाव जैसी स्थिति से गुजरना पड़ता है. भली-भांति पढ़ने के बाद भी, सबकुछ यथावत याद होने के बाद भी बहुत से बच्चों में एक तरह का डर देखने को मिलता है. परीक्षा-कक्ष के माहौल का भय अपने आप तनाव पैदा करता है. इसके अलावा अभिभावकों का, शिक्षकों का ज्यादा से ज्यादा अंक लाने का दबाव, परीक्षा में सबसे आगे रहने का दबाव भी तनाव की स्थिति पैदा करता है. इनके बीच खुले में खेलने की अनुपलब्धता, मैदानों के खेल से बच्चों का दूर होते जाना, मोबाइल पर ही अपनी सक्रियता को दिखाते रहने की विवशता या रुचि, अनियमित दिनचर्या, जंक फ़ूड की अतिशय उपलब्धता ने भी बच्चों में तनाव जैसी स्थिति को जन्म दिया है. ऐसे माहौल में शिक्षा स्वतः ही तनावग्रस्त हो जाएगी. स्पष्ट है कि यदि तनाव रहित माहौल बनाये जाने का प्रयास किया जाये तो बच्चों में नकारात्मकता भी जन्म न लेगी और उनकी शिक्षा, परीक्षा अपने आप तनाव मुक्त हो जाएगी.

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