01 अक्तूबर 2019

हम भी भीगना चाहते हैं


आज दोपहर फिर खूब बारिश हुई, खूब जोरों की बारिश हुई. सभी की तरह हमारा भी मन किया भीगने का, झमाझम बरसती बारिश में दिल तक भिगो डालने का. ठीक उसी तरह भीगने का जैसे कि और लोग भी भीगा करते हैं. कभी सड़क पर झूमते हुए, कभी खाली गीली सड़क पर अपनी बाइक लहराते हुए, कभी तेज बरसती बूंदों के साथ अटखेलियाँ करते. बारिश के साथ इस तरह से भीगना हमारे हिस्से क्यों नहीं आता है? क्यों हमें बाइक को बारिश की रफ़्तार के साथ होड़ लगाने की अनुमति नहीं मिलती है? क्यों हमारा भीगना घर की छत से बाहर नहीं निकल पाता है? हमने भी देखा है शहर के बाहर से गुजरते हुए हरे-भरे हाईवे को. हमने भी महसूस किया है उस हाईवे पर बरसती बारिश की बूंदों को. ठीक है, हमने उस बारिश का भी आनंद लिया है मगर कब तक एक बंधन में बंधी हुई आज़ादी का आनंद हम लेटे रहेंगे? कब तक हम आज़ादी का आभासी एहसास करते रहेंगे? आखिर हम भी एक व्यक्तित्व हैं. हमें भी अपने आपको साबित करना आता है. ऐसे में आखिर कब तक हम महज एक बोझ की तरह सबके सामने लाये जाते रहेंगे? 


कोई और न समझे, दुनिया के वे चार लोग न समझें जो कुछ न कुछ कहने लगते हैं, समाज के लोग न समझें मगर आप तो समझिये. आप तो हमारे अपने हैं, आप महज वे चार लोग नहीं जिनका नाम लिया जाता है, आप सवालिया निशान उठाने वाले समाज नहीं. आप हमारा समाज हैं. हम आपसे हैं और आप भी हमसे ही हैं फिर हम पर सवालिया निशान क्यों? आपकी शिक्षायें ही हमारा आधार हैं फिर आप हम पर शंका कर रहे हैं या फिर अपनी शिक्षाओं पर? आपको बताएं, हम भी आनंद लेना चाहते हैं बारिश का. हम भी सुखद अनुभूति लेना चाहते हैं बारिश की आज़ादी का. हम भी दौड़ाना चाहते हैं तेज रफ़्तार से अपनी बाइक को. हम भी भीगना चाहते हैं हाईवे की आज़ाद बरसती बूंदों के साथ.

हमें भली-भांति जानकारी है अपनी आज़ादी की. हमें अच्छे से जानकारी है अपनी स्वतंत्रता की. हम समझते हैं अपनी उड़ान को. हमें मालूम है कि हमारी आज़ादी बारिश की बूंदों से अधिक नहीं होगी, इसके बाद भी हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम बारिश की बूंदों की आज़ादी को बाधित नहीं करेंगे. हम आपको विश्वास दिलाते है कि हम अपनी बाइक के सहारे बाकी किसी की बाइक की रफ़्तार को कम न होने देंगे. हम ये भी विश्वास दिलाते हैं कि हमारा भीगना किसी और को शर्मसार नहीं करेगा. हम बस भीगना चाहते हैं बारिश में. हम बस आनंद लेना चाहते हैं मौसम का. हम बस महसूस करना चाहते हैं अपनी आज़ादी का. हम बस स्वीकार करना चाहते हैं अपने व्यक्तित्व का. कम से कम समाज के और लोग तो नहीं पर आप तो इसे महसूस करो. हम आपसे ही हैं इसे आभासित तो होने दो. एक बार बरसती बूंदों को हमारे लिए बरसना समझ कर हमें घर की छत से आज़ाद होने दो. हम विश्वास दिलाते हैं कि हम भीगना चाहते हैं घनघोर मगर आपको आंसुओं में भीगने न देंगे. बस हम भीगना चाहते हैं, सिर्फ और सिर्फ भीगना चाहते हैं.



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