क्या
सपनों का कोई मतलब होता है? क्या देखे हुए सपनों में कोई सन्देश छिपा होता है या
फिर ये अचेतन मन की प्रतिक्रिया होती है? सपने महज मन की स्थिति नहीं होती होगी
क्योंकि जो कभी सोचा न जाये, जिसके बारे में कभी चर्चा न की जाये वह भी सपनों में
दिखाई पड़ जाता है. क्या माना जाये कि सपने किसी पूर्वाग्रह की तरफ इशारा करते हैं?
ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्तिगत हमारे साथ कई बार ऐसा हुआ कि जो कुछ सपने में देखा वह
एक-दो दिन के भीतर ही ज्यों का त्यों हमारे साथ गुजरा. कुछ सपने ऐसे भी सामने आये
जिनके होने का कोई मतलब समझ नहीं आया. सपनों में कुछ स्थितियां, कुछ घटनाएँ, कुछ
जगहें ऐसी हैं जो नियमित रूप से आती ही हैं. अतीत की कुछ बातें घूम-फिर कर बार-बार
सपनों के द्वारा दिखाई दे जाती हैं. कुछ सपने तो ऐसे हैं जो विगत कई वर्षों से
दिखाई दे रहे हैं और ज्यों के त्यों उतने ही दिखाई देते हैं. जहाँ से शुरू, जहाँ
से ख़त्म ठीक वैसे ही हर बार. वैसी ही एक सी कहानी, वैसी ही एक सी स्थिति. समझ नहीं
आता कि आखिर इस तरह के सपनों के द्वारा कोई शक्ति, मन, अचेतन अवस्था क्या सन्देश
देना चाहती है?
सपनों
का विस्तार करने बैठें तो न जाने कितना कुछ है लिखने को, बताने को. इधर कुछ दिन
पहले एक सपना देखा जिसका न तो ओर-छोर समझ आया और न उसके दिखाई देने का अर्थ पकड़
में आया. अपने सपने में अपनी ही मृत्यु को देखना. घर का बाहर वाला कमरा, उसमें
हमारी ही मृत देह पड़ी हुई है. तमाम लोग आसपास खड़े हैं, बैठे हैं और आश्चर्य देखिये
कि खुद हम भी उसी भीड़ में खड़े हुए हैं. ऐसे में अचानक हमारे एक मित्र का आना होता
है. उसका आना हमें आश्चर्य में डालता है. कुछ भी धुंधला सा नहीं है, सबकुछ
साफ़-साफ़. हम ही बात कर रहे, हम ही मृत पड़े हैं. उसी समय जेब में पड़ा मोबाइल बज
उठता है और हम बिना कोई बात किये बाहर निकल आते हैं. खुद अपनी मृत देह को उसी
स्थान पर लेटा छोड़ कर, दोस्त को खुद की देह के पास छोड़कर. मोबाइल बज रहा है, हम
रिसीव करना चाह रह मगर कॉल रिसीव नहीं हो रही. उसी में आँख खुल जाती है. असल में
सपने में मोबाइल का बजना उस एलार्म का बजना था जो हमने मोबाइल में लगा रखा है.
आँख
खुलने के बाद मन में अजीब-अजीब से ख्याल आते रहे. सुबह उठकर अपने अन्य कामों की
तरफ बढ़ना था सो उन ख्यालों में दिमाग ज्यादा न लगाते हुए नित्यकर्मों में जुट गए. बाकी,
सपनों का संसार लगातार विस्मृत करता रहता है, आश्चर्य में डालता रहता है. अबूझ
पहेली की तरह परेशान भी करता रहता है. एक हम हैं जो सभी सपनों को बस सपना समझ कर
भुलाने की कोशिश करते रहते हैं. आखिर करें भी क्या, क्योंकि इनका कोई अर्थ पकड़ में
आता नहीं है और परेशान होना भी हमें आता नहीं. सपनों की अजब दुनिया से बाहर निकल
कर आज रात फिर किसी नए सपने की सैर या फिर पुराने सपनों में से कोई एक सपना फिर
से?
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