इधर
कई महीनों से कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है. ब्लॉग पर किसी तरह की बंदिश नहीं है
इसलिए कुछ न कुछ थोडा बहुत लिख देते हैं. इसी न लिखने की मानसिकता के चलते न तो
समाचार-पत्रों में कोई आलेख भेजा है और न ही किसी पत्रिका में. इस दौरान लगातार
पढ़ना हो रहा है. आदत भी ऐसी बन गई है कि कितनी भी व्यस्तता हो मगर सोने से पहले
कुछ न कुछ अवश्य ही पढ़ते रहते हैं. पढ़ने की इसी आदत के क्रम में आजकल एक बार फिर
ओशो की मैं मृत्यु सिखाता हूँ का पढ़ना हो रहा है. इस बार यह किताब तीसरी बार पढ़ी
जा रही है. जितनी बार पढ़ो, उतनी बार नई सी समझ आती है. इस पुस्तक का जब शीर्षक
देखा था तो अपने आपमें कौतूहल सा हुआ था कि ओशो मौत के बारे में कैसे सिखा सकते
हैं. इस व्यक्ति ने हमेशा प्रेम के बारे में समझाया है, बताया है. इस पुस्तक को
पढ़ना शुरू किया. जैसे-जैसे पढ़ना शुरू किया, आगे बढ़ना शुरू किया, समझना शुरू किया
तो मालूम पड़ा कि ओशो किसी न किसी रूप में प्रेम की ही बात कर रहे हैं. असल में वे
मौत को नहीं वरन जीवन को जीना सिखा रहे हैं. और वैसे भी ओशो अपने किसी और विषय के बारे में ज्यादा चर्चित रहे हैं बजाय प्रेम के या फिर मृत्यु के. इस कारण से भी बहुतेरे लोगों के लिए आज भी ओशो न पढ़ने वाले लोगों में शामिल हैं.
इस
पुस्तक को पढ़ने के बारे में उत्कंठा उस समय और जोरों से हुई जबकि हम खुद एक
दुर्घटना में मौत से सीधे साक्षात्कार कर चुके थे. मन में ख्याल आया कि आखिर प्रेम
सिखाने वाला व्यक्ति किस तरह मौत सिखाता होगा, इसे भी जानना चाहिए. इसे आधार बनाकर
जब पुस्तक को पढ़ना शुरू किया तो लगा कि ओशो बहुत सो बातें वही कह रहे हैं, समझा
रहे हैं जो हम अपने दोस्तों के बीच कहते हैं. हम भी मौत को लेकर, ज़िन्दगी को लेकर
अपने दोस्तों के बीच बहुत ही अलग अंदाज़ में अपनी बात रखते रहते हैं. यहाँ ओशो के
अंदाज और उदाहरणों में और हमारे उदाहरणों में नितान्त अंतर है मगर किसी न किसी रूप
में उसका मूल लगभग एक जैसा ही है. सत्यता तो यही है कि मौत किसी भी तरह से डराने
वाली बात नहीं है बल्कि उससे सीखने वाली बात है. असल में मौत ज़िन्दगी को सिखाने
वाली एक स्थिति है.
बाकी
इस बारे में किसी और दिन कहा जायेगा. अभी तो बस इतना ही कि मौत और ज़िन्दगी एक ही
सिक्के के दो पहलू हैं, बिना एक के दूसरे को कोई न पूछेगा. एक के बिना जीवन का सिक्का
ही खोटा है. बस याद रखना होगा कि मौत से डर कर ज़िन्दगी का आनंद उठाना बंद नहीं
करना है. ज़िन्दगी का असल आनंद तभी है जबकि मौत को गले लगाने का ज़ज्बा अन्दर पैदा
हो जाये.
Wow such great
जवाब देंहटाएंThanks for sharing such valuable information with us.
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