ज़िन्दगी को आनंद, मस्ती, ज़िंदादिली के साथ जीने की चाह ने कभी निराश न होने दिया. कई क्षण ऐसे भी आए जबकि लगा कि सबकुछ शून्य होने वाला है किंतु ज़िन्दगी को अपनी तरह से जिए जाने की सोच ने ऐसा न होने दिया. इसी सोच ने हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहने का जज़्बा जगाए रखा, कुछ न कुछ अलग हटकर करने का मन बनाए रखा. इसी के चलते वर्षों पुराने शौक़ को मित्र सुभाष द्वारा हवा दी गई. उस हवा में और तेज़ी तब आई जबकि उरई में शूटिंग रेंज का खुलना हुआ. निशानेबाज़ी या कहें कि बंदूक़बाज़ी के शौक़ को पूरा करने का मंच दिखाई दिया. इस शौक़-शौक़ के खेल को जल्द ही नई उड़ान मिलने वाली थी, ये पता न था.
मई 2019 से रेंज की शुरुआत का सुखद पड़ाव उस समय आया जबकि ज्ञात हुआ कि देहरादून में राज्य स्तरीय रायफल शूटिंग प्रतियोगिता में सम्मिलित होना है. क़तई अंदेशा न था कि देहरादून आना अत्यंत सुखद रहेगा. दो इवेंट में अपनी इंट्री दर्ज करवाई और शौक़ को खेल में बदलने देहरादून पहुँच गए. विगत कई वर्षों में देहरादून जाने के कार्यक्रमों, अवसरों को हक़ीक़त में न बदला जा सका था. इस बार स्थितियाँ अलग थीं, माहौल अलग था शायद इसी कारण देहरादून जाना हो गया. ज़िन्दगी के खेल के साथ शौक़ के खेल का तारतम्य मिलाते हुए जसपाल राणा शूटिंग रेंज पहुँच ही गए. खेल चल ही रहा था. नियंत्रण आवश्यक होता है, हर जगह चाहे खेल हो या ज़िन्दगी. उसी नियंत्रण को बनाते हुए ख़ुद को संयमित किया और शौक़ का आनंद एक रजत पदक के साथ और नेशनल के लिए क्वालीफ़ाई होने के रूप में उठाया. हाँ, कुछ ख़ाली-ख़ाली सा अवश्य रहा, रहना भी था. ख़ैर... यही ज़िन्दगी है, यही खेल है.
रेंज से वापसी करते समय एक बात याद आ रही थी कि कॉलेज में खेल-खेल में एथलीट बने थे, इस बार शौक़-शौक़ में शूटर भी बन गए. एक ख़ालीपन के साथ ख़ुशी, आनंद समेटे फिर अपनी ज़िन्दगी को शौक़ में बदलने निकल पड़े.
मई 2019 से रेंज की शुरुआत का सुखद पड़ाव उस समय आया जबकि ज्ञात हुआ कि देहरादून में राज्य स्तरीय रायफल शूटिंग प्रतियोगिता में सम्मिलित होना है. क़तई अंदेशा न था कि देहरादून आना अत्यंत सुखद रहेगा. दो इवेंट में अपनी इंट्री दर्ज करवाई और शौक़ को खेल में बदलने देहरादून पहुँच गए. विगत कई वर्षों में देहरादून जाने के कार्यक्रमों, अवसरों को हक़ीक़त में न बदला जा सका था. इस बार स्थितियाँ अलग थीं, माहौल अलग था शायद इसी कारण देहरादून जाना हो गया. ज़िन्दगी के खेल के साथ शौक़ के खेल का तारतम्य मिलाते हुए जसपाल राणा शूटिंग रेंज पहुँच ही गए. खेल चल ही रहा था. नियंत्रण आवश्यक होता है, हर जगह चाहे खेल हो या ज़िन्दगी. उसी नियंत्रण को बनाते हुए ख़ुद को संयमित किया और शौक़ का आनंद एक रजत पदक के साथ और नेशनल के लिए क्वालीफ़ाई होने के रूप में उठाया. हाँ, कुछ ख़ाली-ख़ाली सा अवश्य रहा, रहना भी था. ख़ैर... यही ज़िन्दगी है, यही खेल है.
रेंज से वापसी करते समय एक बात याद आ रही थी कि कॉलेज में खेल-खेल में एथलीट बने थे, इस बार शौक़-शौक़ में शूटर भी बन गए. एक ख़ालीपन के साथ ख़ुशी, आनंद समेटे फिर अपनी ज़िन्दगी को शौक़ में बदलने निकल पड़े.
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहर देश में तू हर भेष में तू