प्रकृति के पास जाने को लालायित व्यक्ति ख़ुद ही प्रकृति को मिटाने पर लगा हुआ है. अनेक बार ऐसी स्थितियों को देखने समझने के बाद भी इस बारे में सकारात्मक सोच नहीं बना पा रहे हैं. विकास का नाम लेकर, आधुनिकता का नाम लेकर, आवश्यकता का नाम लेकर अनेक ऐसे क़दम बढ़ाए जाते हैं जो प्रकृति का विनाश करने में लगे हैं. जाने कितनी बार ऐसे क़दमों के बारे में सुनने को मिला मगर कई बार आँखों देखी हक़ीक़त को जानने के बाद भी समझना नहीं होता. ज़िन्दगी का अनुभव लेने के लिए नए क्षेत्र में उतरने के प्रयास ने देहरादून उपस्थित किया. रायफल शूटिंग का जाने कितने वर्षों का शौक़ प्रतियोगिता के रूप में परिवर्तित हुआ. प्रतियोगिता की अपनी औपचारिकताओं के बाद देहरादून से बाहर क़दम निकाल मसूरी पहुँचना हुआ.
पहाड़ों की रानी के रूप में प्रसिद्ध मसूरी देखने-घूमने को बहुतेरे लोग लालायित रहते हैं. इसी लालसा के पीछे लोगों का प्रकृति के नज़दीक जाना होता है या फिर बस अपनी भागदौड़ भरी दिनचर्या में से कुछ फ़ुर्सत के पल निकालना है? आख़िर व्यक्ति उसी प्रकृति की तरफ़ क्यों जाना चाह रहा है जिसका वो नाश करने में लगा है? अपने आसपास की प्रकृति का नाश करने के बाद नैसर्गिक प्राकृतिक सुंदरता को आत्मसात करने के साथ-साथ कहीं न कहीं उसका नाश भी करने में लगा है. घूमने, फ़ुर्सत पाने के नाम पर भीड़ का रेला इकट्ठा होना, सुविधाजनक ढाँचा बनाने के नाम पर मूलभूत ढाँचे को बिगाड़ना, खिली-खिली प्रकृति को गुमसुम बना देना किसी न किसी रूप में प्रकृति का ह्रास करना ही है.
पहाड़ों की रानी के रूप में प्रसिद्ध मसूरी देखने-घूमने को बहुतेरे लोग लालायित रहते हैं. इसी लालसा के पीछे लोगों का प्रकृति के नज़दीक जाना होता है या फिर बस अपनी भागदौड़ भरी दिनचर्या में से कुछ फ़ुर्सत के पल निकालना है? आख़िर व्यक्ति उसी प्रकृति की तरफ़ क्यों जाना चाह रहा है जिसका वो नाश करने में लगा है? अपने आसपास की प्रकृति का नाश करने के बाद नैसर्गिक प्राकृतिक सुंदरता को आत्मसात करने के साथ-साथ कहीं न कहीं उसका नाश भी करने में लगा है. घूमने, फ़ुर्सत पाने के नाम पर भीड़ का रेला इकट्ठा होना, सुविधाजनक ढाँचा बनाने के नाम पर मूलभूत ढाँचे को बिगाड़ना, खिली-खिली प्रकृति को गुमसुम बना देना किसी न किसी रूप में प्रकृति का ह्रास करना ही है.
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