कई बार ज़िन्दगी स्वप्न जैसी महसूस होती है तो कई बार ज़िन्दगी अपने आप में ऐसी वास्तविकता समझ आती है जिसे समझ पाना सम्भव नहीं लगता. समय के हाथों में संचालित ज़िन्दगी तमाम सारे उच्चावचनों के साथ हँसाते-रुलाते आगे ले जाती है. उठते-गिरते रास्तों में ज़िन्दगी भटकते हुए कब किस मंज़िल पर खड़ा कर दें, ये समझना मुश्किल होता है. ये भटकन उन तमाम पक्षों से जुड़ी होती है जो किसी भी व्यक्ति का जीवन कहा जा सकता है. खिली धूप के बीच अचानक से काले बादलों का घिर आना, बारिश के बीच कहीं से झाँकती धूप की तरह सुखद और दुखद पल किसी भी व्यक्ति के जीवन में आते-जाते रहते हैं. यहाँ समझना यह होता है कि उस आए हुए पल को कैसे गुज़ारा जाए?
सत्य यह है कि व्यक्ति अपने जीवन में ही अपने जीवन का मालिक नहीं. उसकी ज़िन्दगी अपनी होने के बाद भी उसकी अपनी नहीं. हाँ, जीवन को बिताने का ढंग, ज़िन्दगी को गुज़ारने का तरीक़ा उसका अपना हो सकता है. यही रास्ता, यही तरीक़ा ही व्यक्ति के जीवन में सुख-दुःख की स्थिति के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है. संसार भर के सभी व्यक्तियों के पास एकसमान समय है, दिन-रात की अवधि एकसमान है. ऐसे में संसाधनों में भिन्नता हो सकती है पर संसाधनों की उपलब्धता कुछ समय को भौतिक सुखों की पूर्ति करवा सकती है किंतु व्यक्ति के ख़ुश होने, दुखी होने का निर्धारण नहीं करवा सकती. कई बार व्यक्ति सब कुछ होने के बाद भी किसी बहुत सी छोटी बात के लिए दुखी रहता है, कभी कोई कुछ भी न होने के बाद भी एक पल की ख़ुशी में तमाम अवधि तक प्रसन्न बना रहता है.
समझना होगा कि मन की अवस्था हमारे सुख-दुःख का आधार बनती है. बाहरी तत्त्वों की उपलब्धता के बजाय मन की, दिल की उपलब्धता के आधार पर ख़ुशियों को जोड़ने का काम किया जाना चाहिए. हो सकता है कि कुछ कारक इसमें बाधक बनें किंतु उनसे भी मन, दिल की अवस्था से ही निपटा जा सकता है. बिना इस सोच के ख़ुशियों को दीर्घकाल तक अपने पास रोक पाना सम्भव नहीं.
सत्य यह है कि व्यक्ति अपने जीवन में ही अपने जीवन का मालिक नहीं. उसकी ज़िन्दगी अपनी होने के बाद भी उसकी अपनी नहीं. हाँ, जीवन को बिताने का ढंग, ज़िन्दगी को गुज़ारने का तरीक़ा उसका अपना हो सकता है. यही रास्ता, यही तरीक़ा ही व्यक्ति के जीवन में सुख-दुःख की स्थिति के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है. संसार भर के सभी व्यक्तियों के पास एकसमान समय है, दिन-रात की अवधि एकसमान है. ऐसे में संसाधनों में भिन्नता हो सकती है पर संसाधनों की उपलब्धता कुछ समय को भौतिक सुखों की पूर्ति करवा सकती है किंतु व्यक्ति के ख़ुश होने, दुखी होने का निर्धारण नहीं करवा सकती. कई बार व्यक्ति सब कुछ होने के बाद भी किसी बहुत सी छोटी बात के लिए दुखी रहता है, कभी कोई कुछ भी न होने के बाद भी एक पल की ख़ुशी में तमाम अवधि तक प्रसन्न बना रहता है.
समझना होगा कि मन की अवस्था हमारे सुख-दुःख का आधार बनती है. बाहरी तत्त्वों की उपलब्धता के बजाय मन की, दिल की उपलब्धता के आधार पर ख़ुशियों को जोड़ने का काम किया जाना चाहिए. हो सकता है कि कुछ कारक इसमें बाधक बनें किंतु उनसे भी मन, दिल की अवस्था से ही निपटा जा सकता है. बिना इस सोच के ख़ुशियों को दीर्घकाल तक अपने पास रोक पाना सम्भव नहीं.
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