25 जुलाई 2019

दोस्ती जिन्दाबाद, दोस्त जिन्दाबाद


तीन रूपों में एक व्यक्ति. एक रिश्ता, एक सोच. हो सकता है ऐसा लिखना बहुत से लोगों को बुरा लगे. ऐसा इसलिए क्योंकि समय के साथ बहुत से लोग मिलते रहे, बिछड़ते रहे. इसी मिलने-बिछड़ने के क्रम में बहुत से लोग ऐसे भी रहे जो कभी हमसे अलग हुए ही नहीं. ऐसे लोगों में संदीप और अभिनव को रखा जा सकता है. अभिनव से मिलना हुआ कक्षा छह के दौरान, जबकि हम दोनों एक ही कक्षा में साथ-साथ पढ़ते नजर आये. इसके उलट संदीप किसी भी स्कूल में, किसी भी क्लास में हमारे साथ नहीं पढ़ा मगर आत्मीयता कहीं से भी कम न रही. उससे मिलना हुआ एक कोचिंग के दौरान, जिसे उस समय हम ट्यूशन के नाम से संबोधित करते थे. उसमें उसके सरल स्वभाव के चलते मिलना हुआ और फिर जो रिश्ता बना वो आजतक बना हुआ है. 


बहुत से लोग हैं जो दोस्ती के, दोस्तों के अर्थ को तलाशते घूमते हैं. असल में ऐसा लगता है जैसे उन लोगों ने दोस्ती को, दोस्तों को समझा ही नहीं. दोस्ती का, दोस्तों का अर्थ समझने के लिए इस तिकड़ी को समझना होगा. ऐसा नहीं है कि इस तिकड़ी के अलावा और कोई नहीं मगर सभी के अपने-अपने महत्त्व हैं. इन दो के अलावा और भी बहुत मित्र हैं जो किसी न किसी रूप में हमसे जुड़े हैं. हम इसे ऐसे देखते हैं जैसे किसी भी शरीर के लिए एक-एक अंग की अपनी महत्ता है, ऐसे ही हमारे जीवन में एक-एक मित्र की महत्ता है. कोई आँख बना है, कोई कान, कोई मुंह बना है, कोई जीभ, कोई साँस है तो कोई धड़कन, कोई दिल है तो कोई दिमाग. हमारे लिए कोई मित्र किसी से कम नहीं. यहाँ इस तिकड़ी का जिक्र इसलिए क्योंकि महीनों आपस में न मिलने के बाद भी, दसियों दिन आपस में बातचीत न होने के बाद भी एक-दूसरे की एक-एक ख़बर रहती है. ये वो विश्वास है जो एक बार जन्मने के बाद कभी कम हुआ ही नहीं. कोई कितना भी कहे मगर आपस में बना सम्बन्ध कभी अविश्वास की स्थिति में आया ही नहीं. हम तीनों के बीच लात-जूता कभी न हुआ, अब भी नहीं होता पर बिना गाली-गलौज के, बिना हड़काए, बिना गरियाए काम भी न चलता, मिलने पर. मिलने पर कोई बाहरी देखे तो लगे कि किसी बात का तकाजा हो रहा है, ऐसे चिल्ला-चोट मचती है.

फिलहाल, अभी इन्हीं दो के साथ क्योंकि एक लम्बे अरसे के बाद मिलना हुआ था हम तीनों का. बाकियों के बारे में भी समय-समय पर जानकारी देते रहेंगे. तब तक जय दोस्ती, दोस्त जिंदाबाद.


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