क्या
आपने कभी बीच शहर में बाइक से स्टंटबाजी होते देखी है? शहर की उस सड़क पर ऐसा होते
देखा है जहाँ आवागमन बहुतायत में रहता हो? क्या ऐसा कारनामा सड़क पर नाबालिगों
द्वारा होते देखा है? बहुत से लोगों का जवाब इसके लिए न में होगा. आपमें से बहुतों
का जवाब भले ही न में हो मगर हमारा शहर ऐसा ही है. यहाँ ऐसा ही होता है, बीच सड़क
पर होता है, भीड़ भरी सड़क पर होता है, विद्यार्थियों द्वारा होता है. अंदाजा लगाइए,
शहर का मुख्य मार्ग, लोगों की पैदल आवाजाही के बीच वाहनों का
निर्बाध आवागमन और उसी के बीच स्टंट करते बाईकर्स. बाइक पर स्टंट करते ये लोग कोई व्यावसायिक
अथवा प्रशिक्षित स्टंटबाज नहीं होते हैं. ये किसी बाइक कंपनी का प्रचार करने वाले
भी नहीं हैं. इन स्टंट करने वालों को किसी भी तरह से बाइक बेचना नहीं है. किसी तरह
का कोई पारिश्रमिक भी नहीं मिलना है इसके लिए. इसके बाद भी इनकी स्टंटबाज़ी लगातार
ज़ारी रहती है. और तो और स्टंट करते समय ये बाइक पर अकेले भी नहीं होते हैं. इनका
कोई निश्चित समय भी नहीं होता है स्टंट करने का. तेज रफ़्तार, अनियंत्रित ढंग से सड़क पर बाइक दौड़ाते ये बाईकर्स किसी तरह के यातायात नियमों
का पालन भी नहीं करते हैं. चौंकिए नहीं, ये किसी फिल्म का,
किसी टीवी सीरियल का सीन नहीं बल्कि उरई की स्टेशन रोड का नित्य का हाल
है. सुबह हो या शाम, दोपहर हो या फिर रात सड़क खाली हो या फिर
लोगों से भरी, ये बाइकर्स अपनी-अपनी बाइक पर करतब दिखाते यहाँ
आसानी से दिख जाते हैं.
शहर
के प्रसिद्द चौराहा जो कभी नगर के प्रसिद्द व्यापारी मच्छर मल सिन्धी के नाम पर मच्छर
चौराहा के नाम से जाना जाता था अब इसे शहीद भगत सिंह चौराहा के नाम से जानते हैं,
यहाँ से रेलवे स्टेशन तक बाइक वाले स्टंटधारियों की कलाकारी दिखती है. यह कलाकारी
इतने तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि इससे बाद उसी सड़क पर राठ रोड नवनिर्मित ओवर ब्रिज
तक इनकी अनियंत्रित भागती बाइक को देखा जा सकता है. तेज गति से बाइक को दौड़ाना,
एकसाथ दो-दो, तीन-तीन लोगों का बैठना, पूरी सड़क पर लहरा-लहरा कर बाइक का भगाना, बाइक के साइड
स्टैंड को सड़क पर रगड़ करवा कर चिंगारी पैदा करना, कभी-कभी एक
पहिये के सहारे बाइक को चलाने का स्टंट करना, तेज एक्सीलेटर के
द्वारा फायरिंग की आवाज़ करवाना आदि को नियमित रूप से देखा जा सकता है. आश्चर्य की बात
ये कि ये सभी बाइकर्स किशोरावस्था के हैं. विद्यालयों में पढ़ने वाले ये विद्यार्थी
इस सड़क पर अपने करतब दिखाते नजर आते हैं. उन्हें न तो अपनी जान की परवाह रहती है और
न ही उस सड़क पर आवागमन करते नागरिकों की. इस कारण आये दिन इस सड़क पर हादसे होते रहते
हैं. कई बार यही बाइकर्स चोट-चपेट का शिकार बनते हैं तो कई बार ये आम नागरिकों को घायल
करते हैं. विडम्बना ये है कि स्टेशन रोड के आसपास रिहायशी नागरिकों द्वारा,
दुकानदारों द्वारा यदि इनको समझाने का प्रयास किया जाता है तो ये किशोर
बाइकर्स लड़ने-झगड़ने पर भी आमादा रहते हैं. अनेक बार दुकानदार, नागरिक इनकी हिंसा का शिकार भी हुए हैं.
ऐसा
नहीं है कि इस सड़क को प्रशासन द्वारा बाइक स्टंट के लिए अनुमति दी गई है. बच्चों के
बाइक पर स्टंट करने का एक कारण इस सड़क पर संचालित तमाम कोचिंग सेंटर्स, कॉलेज और फास्ट फ़ूड सेंटर्स हैं. यहाँ किशोरों की, युवाओं
की बहुतायत में आमद रहती है. इनके एकसाथ आने-जाने के कारण तमाम सारे छोटे-बड़े ग्रुप
सड़क पर अनियंत्रित ढंग से अपने क्रियाकलापों को संपन्न करते रहते हैं. इन बच्चों के
परिवार वाले तो जैसे इनके प्रति, इनकी सुरक्षा के प्रति आँखें
मूँदें ही हैं, प्रशासन भी इस सड़क पर इन बाइकर्स के खिलाफ किसी
भी तरह की सख्त कार्यवाही करने से बचता है. शहर भर में जगह-जगह आये दिन वाहनों की जांच
की जाती है. वहां चालकों के कानूनी कागजातों की जांच की जाती है. हेलमेट, सीट बेल्ट लगाये जाने के सन्देश प्रसारित किये जाते हैं. आये दिन स्कूल के
बच्चों के साथ यातायात नियमों के पालन करने सम्बन्धी रैलियाँ निकाली जाती हैं. इन सबके
बाद भी स्टेशन रोड प्रशासनिक सख्ती की आस निहारती रहती है. ये समझ से परे है कि आखिर
प्रशासन स्टेशन रोड पर होते स्टंट पर, तेज रफ़्तार दौड़ती बाइक
पर नियंत्रण क्यों नहीं कर रहा है? यहाँ बाइक दौड़ाते बच्चों के
ड्राइविंग लाइसेंस की जांच क्यों नहीं की जाती है? सोचने वाली
बात ये है कि इस सड़क की ये सारी गतिविधियाँ प्रशसन के संज्ञान में हैं. इसके बाद भी
ऐसा लगता है जैसे कार्यवाही के लिए वह किसी बहुत बड़े हादसे के इंतजार में है.
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