आखिरकार लम्बे इंतजार के बाद कुछ सच्ची कुछ झूठी का
प्रकाशन हो ही गया. विगत दो-तीन वर्षों से लगातार प्रकाशन की, लेखन की, संपादन की
स्थिति में होने के कारण हमारा यह ड्रीम प्रोजेक्ट थमा हुआ था. रुका हुआ नहीं कह
सकते क्योंकि इस पर लगातार काम चल रहा था. जब स्थिति खुद पर लिखने की हो, अपने
जीवन को कागज़ पर उतार कर सार्वजनिक करने की हो तब अनेक तरह की ऊहापोह जैसी
स्थितियां भी सामने आने लगती हैं. इस पुस्तक के लिए एक लम्बे समय से दिमाग काम कर
रहा था और दिल भी इसके लिए समान रूप से दिमाग का साथ दे रहा था. ऐसे में विभिन्न
घटनाओं को लिखना, तमाम घटनाओं को जानबूझ कर छोड़ना, बहुत सी घटनाओं पर काल्पनिकता
का आवरण ओढ़ाना, बहुत सी बातों को एक आवरण के सहारे नए रंग में पेश करना आदि ऐसे
कदम थे जो अपनाने थे. इस बारे में हमारा मानना यह रहा है कि अपने जीवन को सार्वजनिक
करने का यह मंतव्य कतई नहीं होना चाहिए कि दूसरे के जीवन में उथल-पुथल मच जाये. इसी
कारण से सब कुछ सच्ची-सच्ची होने के बाद भी उसमें ऐसा झूठ चढ़ाया गया जो सच होने के
बाद भी सच न लगे.
बहरहाल, अब जबकि अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज से
इसका प्रकाशन हो चुका है. यह पुस्तक अमेज़न पर भी बिक्री के लिए
उपलब्ध है तो आप सभी से अपेक्षा है कि इसे पढ़ेंगे और हमारे बारे में हमें ही बताने
का कष्ट करेंगे.
अंजुमन प्रकाशन के बारे में जानकारी नीचे की लिंक पर दी गई
है. वीनस केसरी जी ने पूरी तन्मयता से हमारे ड्रीम प्रोजेक्ट को सफल बनाने का
प्रयास किया है, उनका आभार.
अमेज़न की लिंक भी नीचे दी जा रही
है. आप यहाँ से कुछ सच्ची कुछ झूठी को मंगवा सकते हैं.
आप सभी का स्नेह अपेक्षित है.
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